Friday, October 14, 2016

माँ बाप का प्यार

एक छोटे बालक को आम का पेड बहोत पसंद था। जब भी फुर्सत मिलती वो तुरंत आम के पेड के पास पहुंच जाता। पेड के उपर चढना, आम खाना और खेलते हुए थक जाने पर आम की छाया मे ही सो जाना। बालक और उस पेड के बीच एक अनोखा संबंध बंध गया था।
*
बच्चा जैसे जैसे बडा होता गया वैसे वैसे उसने पेड के पास आना कम कर दिया।
 कुछ समय बाद तो बिल्कुल ही बंद हो गया।
आम का पेड उस बालक को याद करके अकेला रोता रहता।
एक दिन अचानक पेड ने उस बच्चे को अपनी और आते देखा। आम का पेड खुश हो गया।
*
बालक जैसे ही पास आया  तुरंत पेड ने कहा, "तु कहां चला गया था? मै रोज़ तुम्हे याद किया करता था। चलो आज दोनो खेलते है।"
बच्चा अब बडा हो चुका था, उसने आम के पेड से कहा, अब मेरी खेलने की उम्र नही है। मुझे पढना है,
पर मेरे पास फी भरने के लिए पैसे नही है।"
पेड ने कहा, "तु मेरे आम लेकर बाजार मे जा और बेच दे,
 इससे जो पैसे मिले अपनी फीस भर देना।"
*
उस बच्चे ने आम के पेड से सारे आम उतार लिए, पेड़ ने भी ख़ुशी ख़ुशी दे दिए,और वो बालक उन सब आमो को लेकर वहा से चला गया।
*
उसके बाद फिर कभी वो दिखाई नही दिया।
 आम का पेड उसकी राह देखता रहता।
 एक दिन अचानक फिर वो आया और कहा,
अब मुझे नौकरी मिल गई है, मेरी शादी हो चुकी है, मेरा संसार तो चल रहा है पर मुझे मेरा अपना घर बनाना है इसके लिए मेरे पास अब पैसे नही है।"
*
आम के पेड ने कहा, " तू चिंता मत कर अभी में हूँ न,
तुम मेरी सभी डाली को काट कर ले जा,
उसमे से अपना घर बना ले।"
उस जवान ने पेड की सभी डाली काट ली और ले के चला गया।
*
आम का पेड के पास कुछ नहीं था वो  अब बिल्कुल बंजर हो गया था।
कोई उसके सामने भी नही देखता था।
 पेड ने भी अब वो बालक/ जवान उसके पास फिर आयेगा यह आशा छोड दी थी।
*
फिर एक दिन एक वृद्ध वहां आया। उसने आम के पेड से कहा,
 तुमने मुझे नही पहचाना, पर मै वही बालक हूं जो बारबार आपके पास आता और आप उसे हमेशा अपने टुकड़े काटकर भी मेरी मदद करते थे।"
आम के पेड ने दु:ख के साथ कहा,
"पर बेटा मेरे पास अब ऐसा कुछ भी नही जो मै तुझे दे सकु।"
वृद्ध ने आंखो मे आंसु के साथ कहा,
 "आज मै कुछ लेने नही आया हूं, आज तो मुझे तुम्हारे साथ जी भरके खेलना है, तुम्हारी गोद मे सर रखकर सो जाना है।"
*
ईतना कहते वो रोते रोते आम के पेड से लिपट गया और आम के पेड की सुखी हुई डाली फिर से अंकुरित हो उठी।
*
वो वृक्ष हमारे माता-पिता समान है, जब छोटे थे उनके साथ खेलना अच्छा लगता था।
जैसे जैसे बडे होते गये उनसे दुर होते गये।पास तब आये जब जब कोई जरूरत पडी, कोई समस्या खडी हुई।

आज भी वे माँ बाप उस बंजर पेड की तरह अपने बच्चों की राह देख रहे है।

आओ हम जाके उनको लिपटे उनके गले लग जाये जिससे उनकी वृद्धावस्था फिर से अंकुरित हो जाये।

यह कहानी पढ कर थोडा सा भी किसी को एहसास हुआ हो और अगर अपने माता-पिता से थोडा भी प्यार करते हो तो...
माँ बाप आपको सिर्फ प्यार प्यार प्यार  देंगे.

Thursday, October 13, 2016

अच्छे लोग

एक बहुत बड़ा सरोवर था। उसके तट पर मोर रहता था, और वहीं पास एकमोरनी भी रहती थी। एक दिन मोरने मोरनी से प्रस्ताव रखा कि- "हम तुम विवाह कर लें, तो कैसा अच्छा रहे?" मोरनी ने पूछा- "तुम्हारे मित्र कितने है ?" मोर ने कहा उसका कोई मित्र नहीं है।
तो मोरनी ने विवाह से इनकार कर दिया। मोर सोचने लगा सुखपूर्वक रहने के लिए मित्र बनाना भी आवश्यक है। उसने एक सिंह से.., एक कछुए से.., और सिंह के लिए शिकार का पता लगाने वाली टिटहरी से.., दोस्ती कर लीं। जब उसने यह समाचार मोरनी को सुनाया, तो वह तुरंत विवाह के लिए तैयार हो गई। पेड़ पर घोंसला बनाया और उसमें अंडे दिए, और भी कितने ही पक्षी उस पेड़ पर रहते
थे। एक दिन शिकारी आए। दिन भर कहीं शिकार न मिला तो वे उसी पेड़ की छाया में ठहर गए और सोचने लगे, पेड़ पर चढ़कर अंडे- बच्चों से भूख बुझाई जाए। मोर दंपत्ति को भारी चिंता हुई, मोर मित्रों के पास सहायता के लिए दौड़ा। बस फिर क्या था.., टिटहरी ने जोर- जोर से चिल्लाना शुरू किया। सिंह समझ गया, कोई शिकार है। वह उसी पेड़ के नीचे चला.., जहाँ शिकारी बैठे थे। इतने में कछुआ भी पानी से निकलकर बाहर आ गया। सिंह से डरकर भागते हुए शिकारियों ने कछुए को ले चलने की बात सोची। जैसे ही हाथ बढ़ाया कछुआ पानी में खिसक गया। शिकारियों के पैर दलदल में फँस गए। इतने में सिंह आ पहुँचा और उन्हें ठिकाने लगा दिया। मोरनी ने कहा- "मैंने विवाह से पूर्व मित्रों की संख्या पूछी थी, सो बात काम की निकली न, यदि मित्र न होते, तो आज हम सबकी खैर न थी।”
मित्रता सभी रिश्तों में अनोखा और आदर्श रिश्ता होता है। और मित्र किसी भी व्यक्ति की अनमोल पूँजी होते है। अगर गिलास दुध से भरा हुआ है तो आप उसमे और दुध नहीं डाल सकते । लेकिन आप उसमे शक्कर डाले । शक्कर अपनी जगह बना लेती है और अपना होने का अहसास दिलाती है उसी प्रकार अच्छे लोग हर किसी के दिल में अपनी जगह बना लेते हैं.... 

Monday, October 10, 2016

जीवन की सीख

एक बार गोपाल राव अपने बड़े भाई गोविंद राव के साथ कबड्डी खेल रहे थे। गोविंद राव विरोधी टीम में थे। गोविंद राव कबड्डी खेलते हुए गोपाल राव के खेमे की तरफ आए और उन्होंने गोपाल राव को इशारा कर के कहा कि वे उन्हें न पकड़ें और नंबर लेने दें, परंतु गोपाल राव को यह बात ठीक नहीं लगी। उन्होंने खेल को पूरी न्याय भावना के साथ खेलना उचित समझा और अपने बड़े भाई गोविंद राव को पकड़ने के लिए पूरी ताकत लगा दी। आखिरकार उन्होंने उसे पकड़ ही लिया। इस तरह गोविंद राव आउट हो गए।
यह बात गोविंद राव को अच्छी नहीं लगी और उन्होंने घर लौटने पर गोपाल राव से कहा,'गोपाल, जब मैंने तुझे मना किया था कि मुझे मत पकड़ना, तब भी तूने मुझे पकड़ ही लिया। तू मेरा कैसा भाई है रे, जो अपने बड़े भाई की इतनी सी बात भी न मान सका।' गोविंद राव की बात सुनकर गोपाल राव अपने भाई के आगे आकर बोले,'भैया, आपके प्रति मेरे मन में पूरी श्रद्धा है। आप जो भी कहेंगे, वह मैं अवश्य करके दिखाऊंगा, चाहे इसके लिए मुझे अपनी जान की बाजी ही क्यों न लगानी पड़ जाए? किंतु मैं बेईमानी नहीं कर सकता।
खेल भी हमें पूरी ईमानदारी व निष्ठा से खेलना चाहिए क्योंकि खेल-खेल में अपनायी गई भावना ही आगे हमारे विचारों व भावों को पुष्ट करती है। मैं नहीं चाहता कि बड़े होने पर मेरे अंदर झूठ बोलने या गलत कार्य करने की आदत पड़ जाए।' अपने से पांच साल छोटे भाई की बात सुनकर गोविंद राव ने उसी समय अपने को सुधारने का प्रण कर लिया।

Friday, October 7, 2016

माँ तो माँ होती है

पति के घर में प्रवेश करते ही पत्नी का गुस्सा फूट पड़ा  पूरे दिन कहाँ रहे? आफिस में पता कीया, वहाँ भी नहीं पहुँचे ! मामला क्या है ? वो-वो… मैं  पती की हकलाहट पर झल्लाते हुए पत्नी फिर बरसी, बोलते नही ? कहां चले गये थे ये गंन्दा बक्सा और कपड़ों की पोटली किसकी उठा लाये ? वो मैं माँ को लाने गाँव चला गया था।
पती थोड़ी हिम्मत करके बोला क्या कहा? तुम मां को यहां ले आये? शर्म नहीं आई तुम्हें? तुम्हारे भाईयों के पास इन्हें क्या तकलीफ है? आग बबूला थी पत्नी! उसने पास खड़ी फटी सफेद साड़ी से आँखें पोंछती बीमार वृद्धा की तरफ देखा तक नहीं इन्हें मेरे भाईयों के पास नहीं छोड़ा जा सकता तुम समझ क्यों नहीं रही । पती ने दबी जुबान से कहा । क्यों, यहाँ कोई कुबेर का खजाना रखा है ? तुम्हारी सात हजार रूपल्ली की पगार में बच्चों की पढ़ाई और घर खर्च कैसे चला रही हूँ, मैं ही जानती हूँ ! पत्नी का स्वर उतना ही तीव्र था अब ये हमारे पास ही रहेगी पति ने कठोरता अपनाई । मैं कहती हूँ, इन्हें इसी वक्त वापिस छोड़ कर आओ । वरना मैं इस घर में एक पल भी नहीं रहूंगी और इन महा रानी जी को भी यहाँ आते जरा सी भी लाज नहीं आई ? कह कर पत्नी ने बूढी औरत की तरफ देखा, तो पाँव तले से जमीन ही सरक गयी ! झेंपते हुए पत्नी बोली: “मां, तुम ?” हाँ बेटा ! तुम्हारे भाई और भाभी ने मुझे घर से निकाल दिया । दामाद जी को फोन कीया, तो ये मुझे यहां ले आये ।
बुढ़िया ने कहा, तो पत्नी ने गद्गगद नजरों से पति की तरफ देखा और मुस्कराते हुए बोली । आप भी बड़े वो हो, डार्लिंग ! पहले क्यों नहीं बताया कि मेरी मां को लाने गये थे ?इस मैसेज को इतना शेयर करो, कि हर औरत तक पहुंच सके !कि माँ तो माँ होती है! क्या मेरी, क्या तेरी?

Thursday, October 6, 2016

स्वयं से सवाल

एक पाँच छे. साल का मासूम सा बच्चा अपनी छोटी बहन को लेकर मंदिर के एक तरफ कोने में बैठा हाथ जोडकर भगवान से न जाने क्या मांग रहा था.
कपड़े में मेल लगा हुआ था मगर निहायत साफ, उसके नन्हे नन्हे से गाल आँसूओं से भीग चुके थे।
बहुत लोग उसकी तरफ आकर्षित थे और वह बिल्कुल अनजान अपने भगवान से बातों में लगा हुआ था।
जैसे ही वह उठा एक अजनबी ने बढ़ के उसका नन्हा सा हाथ पकड़ा और पूछा-
"क्या मांगा भगवान से"
उसने कहा-
"मेरे पापा मर गए हैं उनके लिए स्वर्ग,
मेरी माँ रोती रहती है उनके लिए सब्र,
मेरी बहन माँ से कपडे सामान मांगती है उसके लिए पैसे"।
"तुम स्कूल जाते हो"
 अजनबी का सवाल स्वाभाविक सा सवाल था।
"हां जाता हूं" उसने कहा।
"किस क्लास में पढ़ते हो ?" अजनबी ने पूछा
"नहीं अंकल पढ़ने नहीं जाता, मां चने बना देती है वह स्कूल के बच्चों को बेचता हूँ, बहुत सारे बच्चे मुझसे चने खरीदते हैं, हमारा यही काम धंधा है" बच्चे का एक एक शब्द मेरी रूह में उतर रहा था ।
"तुम्हारा कोई रिश्तेदार"
न चाहते हुए भी अजनबी बच्चे से पूछ बैठा।
"पता नहीं, माँ कहती है गरीब का कोई रिश्तेदार नहीं होता,
माँ झूठ नहीं बोलती,
पर अंकल,
मुझे लगता है मेरी माँ कभी कभी झूठ बोलती है,
जब हम खाना खाते हैं हमें देखती रहती है,
जब कहता हूँ
माँ तुम भी खाओ, तो कहती है मेंने खा लिया था, उस समय लगता है झूठ बोलती है "
"बेटा अगर तुम्हारे घर का खर्च मिल जाय तो पढाई करोगे ?"
"बिल्कुलु नहीं"
"क्यों"
"पढ़ाई करने वाले गरीबों से नफरत करते हैं अंकल,
हमें किसी पढ़े हुए ने कभी नहीं पूछा - पास से गुजर जाते हैं"
अजनबी हैरान भी था और शर्मिंदा भी।
फिर उसने कहा
" हर दिन इसी इस मंदिर में आता हूँ, कभी किसी ने नहीं पूछा - यहा सब आने वाले मेरे पिताजी को जानते थे - मगर हमें कोई नहीं जानता
"बच्चा जोर-जोर से रोने लगा" अंकल जब बाप मर जाता है तो सब अजनबी क्यों हो जाते हैं ?"
मेरे पास इसका कोई जवाब नही था और ना ही मेरे पास बच्चे के सवाल का जवाब है।
ऐसे कितने मासूम होंगे जो हसरतों से घायल हैं
बस एक कोशिश कीजिये और अपने आसपास ऐसे ज़रूरतमंद यतिमो, बेसहाराओ को ढूंढिये और उनकी मदद किजिए......................... मंदिर मे सीमेंट या अन्न की बोरी देने से पहले अपने आस - पास किसी गरीब को देख लेना शायद उसको आटे की बोरी की ज्यादा जरुरत हो।

Saturday, October 1, 2016

ईश्वर पर विश्वास

जाड़े का दिन था और शाम होने को आई। आसमान में बादल छाए थे। एक नीम के पेड़ पर बहुत से कौए बैठे थे। वे सब बार-बार कांव-कांव कर रहे थे और एक-दूसरे से झगड़ भी रहे थे। इसी समय एक मैना आई और उसी पेड़ की एक डाल पर बैठ गई। मैना को देखते हुए कई कौए उस पर टूट पड़े। बेचारी मैना ने कहा- बादल बहुत हैं इसीलिए आज अंधेरा हो गया है। मैं अपना घोंसला भूल गई हूँ। इसीलिए आज रात मुझे यहां बैठने दो।

कौओं ने कहा- नहीं यह पेड़ हमारा है तू यहां से भाग जा।मैना बोली- पेड़ तो सब ईश्वर के बनाए हुए हैं। इस सर्दी में यदि वर्षा पड़ी और ओले पड़े तो ईश्वर ही हमें बचा सकते हैं। मैं बहुत छोटी हूँ, तुम्हारी बहन हूँ, तुम लोग मुझ पर दया करो और मुझे भी यहां बैठने दो।कौओं ने कहा- हमें तेरी जैसी बहन नहीं चाहिए। तू बहुत ईश्वर का नाम लेती है तो ईश्वर के भरोसे यहां से चली क्यों नहीं जाती। तू नहीं जाएगी तो हम सब तुझे मारेंगे।कौओं को कांव-कांव करके अपनी ओर झपटते देखकर बेचारी मैना वहां से उड़ गई और थोड़ी दूर जाकर एक आम के पेड़ पर बैठ गई।


रात को आंधी आई, बादल गरजे और बड़े-बड़े ओले बरसने लगे। कौए कांव-कांव करके चिल्लाए। इधर से उधर थोड़ा-बहुत उड़े परन्तु ओलों की मार से सबके सब घायल होकर जमीन पर गिर पड़े। बहुत से कौए मर गए। मैना जिस आम पर बैठी थी उसकी एक डाली टूट कर गिर गई। डाल टूटने पर उसकी जड़ के पास पेड़ में एक खोंडर हो गया। छोटी मैना उसमें घुस गई और उसे एक भी ओला नहीं लगा। सवेरा हुआ और दो घड़ी चढऩे पर चमकीली धूप निकली। मैना खोंडर में से निकली पंख फैला कर चहक कर उसने भगवान को प्रणाम किया और उड़ी। पृथ्वी पर ओले से घायल पड़े हुए कौए ने मैना को उड़ते देख कर बड़े कष्ट से पूछा- मैना बहन! तुम कहां रही तुम को ओलों की मार से किसने बचाया।

मैना बोली- मैं आम के पेड़ पर अकेली बैठी भगवान से प्रार्थना करती रही और भगवान ने मेरी मदद की।दुख में पड़े असहाय जीव को ईश्वर के सिवाय कौन बचा सकता है। जो भी ईश्वर पर विश्वास करता है और ईश्वर को याद करता है, उसे ईश्वर सभी आपत्ति-विपत्ति में सहायता करते हैं और उसकी रक्षा करते हैं। ईश्वर के कृत्य अनोखे होते हैं। हमारे समझने में कमी हो सकती है, परंतु उनके करने में नहीं। -

Sunday, September 25, 2016

नि:स्वार्थ भाव

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में दो लड़के पढ़ते थे। एक समय उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई। अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्होंने महान पियानो वादक इगनैसी पैडरेस्की को बुलाने की सोची। पैडरेस्की के मैनेजर ने 2000 डॉलर की गारंटी मांगी। उन्होंने गारंटी के लिए 1600 डॉलर जमा कर लिए और 400 डॉलर बाद में चुकाने का करारनामा दे दिया। लेकिन वे शेष राशि इकट्ठा नहीं कर पाए।

पैडरेस्की को यह पता चला तो उन्होंने करारनामा फाड़ा और 1600 डॉलर लौटाते हुए कहा-'मुझे पढ़ाई के प्रति लगनशील बच्चों से कुछ नहीं चाहिए। इसमें से अपने खर्चे के लायक डॉलर निकाल लो और बची रकम में से 10 प्रतिशत अपने मेहनताने के तौर पर रख लो। बाकी रकम मैं रख लूंगा।' दोनों लड़के पैडरेस्की की महानता के आगे नतमस्तक हो गए।

समय गुजरता गया। पहला विश्वयुद्ध हुआ और समाप्त हो गया। पैडरेस्की अब पोलैंड के प्रधानमंत्री थे और अपने देश के हजारों भूख से तड़पते लोगों के लिए भोजन जुटाने का संघर्ष कर रहे थे। उनकी मदद केवल यू.एस फूड एंड रिलीफ ब्यूरो का अधिकारी हर्बर्ट हूवर कर सकता था। हूवर ने बिना देर किए हजारों टन अनाज वहां भिजवा दिया। पैडरेस्की हर्बर्ट हूवर को धन्यवाद देने के लिए पेरिस पहुंचे।

उन्हें देखकर हूवर बोला,'सर, धन्यवाद की कोई जरूरत नहीं है। कॉलेज में आपने मेरी पढ़ाई जारी रखने में मदद की थी। यदि उस समय मेरी मदद न होती तो आज मैं इस पद पर नहीं होता।' यह सुनकर पैडरेस्की की आंखें नम हो गईं। उन्हें दो विद्यार्थियों की पुरानी बात याद आ गई और वह बोले,'किसी ने सच ही कहा है कि नि:स्वार्थ भाव से की गई मदद का मूल्य कई गुना होकर लौटता है।'

Saturday, September 24, 2016

तकलीफ का स्वाद

एक बादशाह अपने कुत्ते के साथ नाव में यात्रा कर रहा था । उस नाव में अन्य यात्रियों के साथ एक दार्शनिक भी था ।
कुत्ते ने कभी नौका में सफर नहीं किया था, इसलिए वह अपने को सहज महसूस नहीं कर पा रहा था । वह उछल-कूद कर रहा था और किसी को चैन से नहीं बैठने दे रहा था ।
मल्लाह उसकी उछल-कूद से परेशान था कि ऐसी स्थिति में यात्रियों की हड़बड़ाहट से नाव डूब जाएगी । वह भी डूबेगा और दूसरों को भी ले डूबेगा । परन्तु कुत्ता अपने स्वभाव के कारण उछल-कूद में लगा था । ऐसी स्थिति देखकर बादशाह भी गुस्से में था । पर, कुत्ते को सुधारने का कोई उपाय उन्हें समझ में नहीं आ रहा था ।
नाव में बैठे दार्शनिक से रहा नहीं गया । वह बादशाह के पास गया और बोला - "सरकार ! अगर आप इजाजत दें तो मैं इस कुत्ते को भीगी बिल्ली बना सकता हूँ ।" बादशाह ने तत्काल अनुमति दे दी । दार्शनिक ने दो यात्रियों का सहारा लिया और उस कुत्ते को नाव से उठाकर नदी में फेंक दिया । कुत्ता तैरता हुआ नाव के खूंटे को पकड़ने लगा । उसको अब अपनी जान के लाले पड़ रहे थे । कुछ देर बाद दार्शनिक ने उसे खींचकर नाव में चढ़ा लिया ।
वह कुत्ता चुपके से जाकर एक कोने में बैठ गया । नाव के यात्रियों के साथ बादशाह को भी उस कुत्ते के बदले व्यवहार पर बड़ा आश्चर्य हुआ । बादशाह ने दार्शनिक से पूछा - "यह पहले तो उछल-कूद और हरकतें कर रहा था, अब देखो कैसे यह पालतू बकरी की तरह बैठा है 
दार्शनिक बोला -
"खुद तकलीफ का स्वाद चखे बिना किसी को दूसरे की विपत्ति का अहसास नहीं होता है । इस कुत्ते को जब मैंने पानी में फेंक दिया तो इसे पानी की ताकत और नाव की उपयोगिता समझ में आ गयी ।"
*भारत में रहकर भारत को गाली देने वालों के लिए*.

Friday, September 23, 2016

इच्छापूर्ति वृक्ष

एक घने जंगल में एक इच्छापूर्ति वृक्ष था उसके नीचे बैठ कर किसी भी चीज की इच्छा करने से वह तुरंत पूरी हो जाती थी यह बात बहुत कम लोग जानते थे.. क्योंकि उस घने जंगल में जाने की कोई हिम्मत ही नहीं करता था एक बार संयोग से एक थका हुआ इंसान उस वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए बैठ गया उसे पता ही नहीं चला कि कब उसकी नींद लग गई जब वह जागा तो उसे बहुत भूख लग रही थी
उसने आस पास देखकर कहा ' काश कुछ खाने को मिल जाए ! तत्काल स्वादिष्ट पकवानों से भरी थाली हवा में तैरती हुई उसके सामने आ गई उस इंसान ने भरपेट खाना खाया और भूख शांत होने के बाद सोचने लगा..  काश कुछ पीने को मिल जाए.. तत्काल उसके सामने हवा में तैरते हुए कई तरह के शरबत आ गए शरबत पीने के बाद वह आराम से बैठ कर सोचने लगा ' कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूँ
हवा में से खाना पानी प्रकट होते पहले कभी नहीं देखा ' न ही सुना.. जरूर इस पेड़ पर कोई भूत रहता है जो मुझे खिला पिला कर बाद में मुझे खा लेगा  ऐसा सोचते ही तत्काल उसके सामने एक भूत आया और उसे खा गया. इस प्रसंग से आप यह सीख सकते है कि हमारा मस्तिष्क ही इच्छापूर्ति वृक्ष है आप जिस चीज की प्रबल कामना करेंगे ' वह आपको अवश्य मिलेगी अधिकांश लोगों को जीवन में बुरी चीजें इसलिए मिलती हैं.. क्योंकि वे बुरी चीजों की ही कामना करते हैं इंसान ज्यादातर समय सोचता है..  कहीं बारिश में भीगने से मै बीमार न हों जाँऊ और वह बीमार हो जाता हैं.. इंसान सोचता है ' कहीं मुझे व्यापार में घाटा न हों जाए? और घाटा हो जाता हैं.. इंसान सोचता है ' मेरी किस्मत ही खराब है ' और उसकी किस्मत सचमुच खराब हो जाती हैं . इंसान सोचता है ' कहीं मेरा बाँस मुझे नौकरी से न निकाल दे.. और बाँस उसे नौकरी से निकाल देता है इस तरह आप देखेंगे कि आपका अवचेतन मन इच्छापूर्ति वृक्ष की तरह आपकी इच्छाओं को ईमानदारी से पूर्ण करता है इसलिए आपको अपने मस्तिष्क में विचारों को सावधानी से प्रवेश करने की अनुमति देनी चाहिए
 अगर गलत विचार अंदर आ जाएगे तो गलत परिणाम मिलेंगे. विचारों पर काबू रखना ही अपने जीवन पर काबू करने का रहस्य है
*आपके विचारों से ही आपका जीवन या तो.. स्वर्ग बनता है या नरक.. उनकी बदौलत ही आपका जीवन.. 
सुखमय या दुखमय बनता है..
विचार जादूगर की तरह होते है '
जिन्हें बदलकर आप अपना जीवन बदल सकते है..

Thursday, September 22, 2016

हमारे ज़माने में मोबाइल

चश्मा साफ़ करते हुए उस बुज़ुर्ग ने अपनी पत्नी से कहा : हमारे ज़माने में मोबाइल नहीं थे..
पत्नी : पर ठीक पाँच बजकर पचपन मिनट पर मैं पानी का ग्लास लेकर दरवाज़े पे आती और आप आ पहुँचते..
पति : हाँ मैंने तीस साल नौकरी की पर आज तक मैं ये नहीं समझ पाया कि मैं आता इसलिए तुम पानी लाती थी या तुम पानी लेकर आती थी इसलिये मैं आता था.. पत्नी : हाँ.. और याद है.. तुम्हारे रिटायर होने से पहले जब तुम्हें डायबीटीज़ नहीं थी और मैं तुम्हारी मनपसन्द खीर बनाती तब तुम कहते कि आज दोपहर में ही ख़याल आया कि खीर खाने को मिल जाए तो मज़ा आ जाए.. पति : हाँ.. सच में.. ऑफ़िस से निकलते वक़्त जो भी सोचता, घर पर आकर देखता कि तुमने वही बनाया है.. पत्नी : और तुम्हें याद है जब पहली डिलीवरी के वक़्त मैं मैके गई थी और जब दर्द शुरु हुआ मुझे लगा काश.. तुम मेरे पास होते.. और घंटे भर में तो जैसे कोई ख़्वाब हो, तुम मेरे पास थे.. पति : हाँ.. उस दिन यूँ ही ख़याल आया कि ज़रा देख लूँ तुम्हें !! पत्नी : और जब तुम मेरी आँखों में आँखें डाल कर कविता की दो लाइनें बोलते.. पति : हाँ और तुम शर्मा के पलकें झुका देती और मैं उसे कविता की 'लाइक' समझता !! पत्नी : और हाँ जब दोपहर को चाय बनाते वक़्त मैं थोड़ा जल गई थी और उसी शाम तुम बर्नोल की ट्यूब अपनी ज़ेब से निकाल कर बोले, इसे अलमारी में रख दो.. पति : हाँ.. पिछले दिन ही मैंने देखा था कि ट्यूब ख़त्म हो गई है,पता नहीं कब ज़रूरत पड़ जाए, यही सोच कर मैं ट्यूब ले आया था !! पत्नी : तुम कहते आज ऑफ़िस के बाद तुम वहीं आ जाना सिनेमा देखेंगे और खाना भी बाहर खा लेंगे..पति : और जब तुम आती तो जो मैंने सोच रखा हो तुम वही साड़ी पहन कर आती..फिर नज़दीक जा कर उसका हाथ थाम कर कहा : हाँ हमारे ज़माने में मोबाइल नहीं थे..पर.."हम दोनों थे !!" पत्नी : आज बेटा और उसकी बहू साथ तो होते हैं पर  बातें नहीं व्हाट्सएप होता है.. लगाव नहीं टैग होता है केमिस्ट्री नहीं कमेन्ट होता है.. लव नहीं लाइक होता है.. मीठी नोकझोंक नहीं अनफ़्रेन्ड होता है.. उन्हें बच्चे नहीं कैन्डीक्रश सागा, टैम्पल रन और सबवे सर्फ़र्स चाहिए.. पति : छोड़ो ये सब बातें.. हम अब वायब्रंट मोड पे हैं हमारी बैटरी भी 1 लाइन पे है.. अरे..!! कहाँ चली..? पत्नी : चाय बनाने.. पति : अरे मैं कहने ही वाला था कि चाय बना दो ना.. पत्नी : पता है.. मैं अभी भी कवरेज में हूँ और मैसेज भी आते हैं.. दोनों हँस पड़े.. पति : हाँ हमारे ज़माने में मोबाइल नहीं थे..!!

Tuesday, September 20, 2016

जैसी भावना वैसी मनोकामना

एक बार भगवान बुद्ध एक शहर में प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने प्रवचन के बाद आखिर में कहा, 'जागो! समय हाथ से निकला जा रहा है।' इस तरह उस दिन की प्रवचन सभा समाप्त हो गई।
सभा के बाद तथागत ने अपने शिष्य आनंद से कहा, थोड़ी दूर घूम कर आते हैं। आनंद, भगवान बुद्ध के साथ चल दिए। अभी वे विहार के मुख्य द्वार तक ही पहुंचे ही थे कि एक किनारे रुक कर खड़े हो गये।
प्रवचन सुनने आये लोग एबाहर निकल रहे थे, इसलिए भीड़ का माहौल था, लेकिन उसमें से निकल कर एक स्त्री तथागत से मिलने आई। उसने कहा, 'तथागत मैं नर्तकी हूं'। आज नगर के श्रेष्ठी के घर मेरे नृत्य का कार्यक्रम पहले से तय था, लेकिन मैं उसके बारे में भूल चुकी थी। आपने कहा, ' जागो समय निकला जा रहा है तो मुझे तुरंत इस बात की याद आई।'
उसके बाद एक डाकू भगवान बुद्ध से मिला उसने कहा, 'तथागत मैं आपसे कोई बात छिपाऊंगा मै भूल गया था कि आज मुझे एक जगह डाका डालने जाना था कि आज उपदेश सुनते ही मुझे अपनी योजना याद आ गई।'
इस तरह एक बूढ़ा व्यक्ति बुद्ध के पास आया वृद्ध ने कहा, 'तथागत! जिन्दगी भर दुनिया भर की चीजों के पीछे भागता रहा। अब मौत का सामना करने का दिन नजदीक आता जा रहा है, तब मुझे लगता है कि सारी जिन्दगी यूं ही बेकार हो गई।
आपकी बातों से आज मेरी आंखें खुल गईं। आज से मैं अपने सारे मोह छोड़कर निर्वाण के लिए कोशिश करूंगा। जब सब लोग चले गए तो भगवान बुद्ध ने कहा, 'आनंद! प्रवचन मैंने एक ही दिया, लेकिन उसका हर किसी ने अलग अलग मतलब निकाला

Saturday, September 17, 2016

प्रेम ही सफल जीवन का राज

एक औरत ने तीन संतों को अपने घर के सामने देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी। औरत ने कहा – “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।” संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?” औरत – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।” संत –“हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर हों।” शाम को उस औरत का पति घर आया और औरत ने उसे यह सब बताया। पति – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।” औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के लिए कहा। संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ नहीं जाते।”“पर क्यों?” – औरत ने पूछा। उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है” फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा – “इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं। हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है। आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।” औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया। उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और बोला –“यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए। हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।” पत्नी – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को आमंत्रित करना चाहिए।” उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी। वह उनके पास आई और बोली – “मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।” “तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम को ही बुलाना चाहिए” – उसके माता-पिता ने कहा। औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा – “आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में  प्रवेश कर भोजन गृहण करें।” प्रेम घर की ओर बढ़ चले। बाकी के दो संत भी उनके पीछे चलने लगे। औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – “मैंने तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था। आप लोग भीतर क्यों जा रहे हैं?” उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता तो केवल वही भीतर जाता। आपने प्रेम को आमंत्रित किया है। प्रेम कभी अकेला नहीं जाता। प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं। 
इस कहानी को एक बार, 2 बार, 3 बार पढ़ें ........
अच्छा लगे तो प्रेम के साथ रहें,  प्रेम बाटें, प्रेम दें और प्रेम लें क्यों कि प्रेम ही सफल जीवन का राज है। 

Thursday, September 15, 2016

एक ब्राम्हण

एक ब्राम्हण था, कृष्ण के मंदिर में बड़ी सेवा किया करता था। उसकी पत्नी इस बात से  हमेशा चिढ़ती थी कि हर बात  में वह पहले भगवान को लाता। भोजन हो, वस्त्र हो या हर चीज  पहले भगवान को समर्पित करता। एक दिन घर में लड्डू बने। ब्राम्हण ने लड्डू लिए और भोग लगाने चल दिया। पत्नी इससे नाराज हो गई,  कहने लगी कोई पत्थर की  मूर्ति जिंदा होकर तो खाएगी नहीं  जो हर चीज लेकर मंदिर की तरफ  दौड़ पड़ते हो।  अबकी बार बिना खिलाए न  लौटना, देखती हूं कैसे भगवान खाने आते हैं। बस ब्राम्हण ने भी पत्नी के  ताने सुनकर ठान ली कि बिना  भगवान को खिलाए आज मंदिर  से लौटना नहीं है। मंदिर में जाकर धूनि लगा ली। भगवान के सामने लड्डू रखकर विनती करने लगा। एक घड़ी बीती। आधा दिन बीता, न तो भगवान आए न ब्राम्हण हटा। आसपास देखने वालों की भीड़ लग गई।  सभी कौतुकवश देखने  लगे कि आखिर होना क्या है। मक्खियां भिनभिनाने लगी  ब्राम्हण उन्हें उड़ाता रहा।  मीठे की गंध से चीटियां  भी लाईन लगाकर चली आईं।  ब्राम्हण ने उन्हें भी हटाया,  फिर मंदिर के बाहर खड़े आवारा  कुत्ते भी ललचाकर आने लगे।  ब्राम्हण ने उनको भी खदेड़ा।  लड्डू पड़े देख मंदिर के  बाहर बैठे भिखारी भी आए गए।  एक तो चला सीधे  लड्डू उठाने तो ब्राम्हण ने  जोर से थप्पड़ रसीद कर दिया।  दिन ढल गया, शाम हो गई।  न भगवान आए, न ब्राम्हण उठा।  शाम से रात हो गई। लोगों ने सोचा ब्राम्हण देवता पागल हो गए हैं,  भगवान तो आने से रहे।  धीरे-धीरे सब घर चले गए।  ब्राम्हण को भी गुस्सा आ गया। लड्डू उठाकर बाहर फेंक दिए।  भिखारी, कुत्ते,चीटी, मक्खी तो दिनभर से ही इस घड़ी क इंतजार कर रहे थे, सब टूट पड़े।  उदास ब्राम्हण भगवान को कोसता हुआ घर लौटने लगा।  इतने सालों की सेवा बेकार चली गई।कोई फल नहीं मिला।  ब्राम्हण पत्नी के ताने सुनकर सो गया। रात को सपने में भगवान आए।  बोले-तेरे लड्डू खाए थे मैंने।  बहुत बढिय़ा थे, लेकिन अगर सुबह  ही खिला देता तो ज्यादा अच्छा होता। कितने रूप धरने पड़े  तेरे लड्डू खाने के लिए। मक्खी, चीटी, कुत्ता, भिखारी।  पर तुने हाथ नहीं धरने दिया।  दिनभर इंतजार करना पड़ा। आखिर में लड्डू खाए लेकिन जमीन से उठाकर खाने में थोड़ी मिट्टी लग गई थी।  अगली बार लाए तो अच्छे से खिलाना।  भगवान चले गए। ब्राम्हण की नींद खुल गई।  उसे एहसास हो गया।  भगवान तो आए थे खाने  लेकिन मैं ही उन्हें पहचान नहीं पाया।  बस, ऐसे ही हम भी भगवान के संकेतों को समझ नहीं पाते हैं।
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****मुझमें राम ,तुझमें राम
सबमें राम समाया,
सबसे करलो प्रेम जगतमें ,
कोई नहीं पराया....

Tuesday, September 13, 2016

भगवान के संकेत

एक ब्राम्हण था, कृष्ण के  मंदिर में बड़ी सेवा किया करता था।  उसकी पत्नी इस बात से  हमेशा चिढ़ती थी कि हर बात  में वह पहले भगवान को लाता।  भोजन हो, वस्त्र हो या हर चीज  पहले भगवान को समर्पित करता। एक दिन घर में लड्डू बने।  ब्राम्हण ने लड्डू लिए और भोग लगाने चल दिया। पत्नी इससे नाराज हो गई,  कहने लगी कोई पत्थर की  मूर्ति जिंदा होकर तो खाएगी नहीं जो हर चीज लेकर मंदिर की तरफ  दौड़ पड़ते हो।  अबकी बार बिना खिलाए न  लौटना, देखती हूं कैसे भगवान खाने आते हैं।  बस ब्राम्हण ने भी पत्नी के ताने सुनकर ठान ली कि बिना  भगवान को खिलाए आज मंदिर  से लौटना नहीं है।  मंदिर में जाकर धूनि लगा ली।  भगवान के सामने लड्डू रखकर विनती करने लगा।  एक घड़ी बीती। आधा दिन बीता, न तो भगवान आए न ब्राम्हण हटा। आसपास देखने वालों
की भीड़ लग गई।  सभी कौतुकवश देखने  लगे कि आखिर होना क्या है।.मक्खियां भिनभिनाने लगी  ब्राम्हण उन्हें उड़ाता रहा।  मीठे की गंध से चीटियां भी लाईन लगाकर चली आईं।  ब्राम्हण ने उन्हें भी हटाया, फिर मंदिर के बाहर खड़े आवारा  कुत्ते भी ललचाकर आने लगे। ब्राम्हण ने उनको भी खदेड़ा।  लड्डू पड़े देख मंदिर के  बाहर बैठे भिखारी भी आए गए। एक तो चला सीधे  लड्डू उठाने तो ब्राम्हण ने जोर से थप्पड़ रसीद कर दिया।  दिन ढल गया, शाम हो गई।  न भगवान आए, न ब्राम्हण उठा।  शाम से रात हो गई। लोगों ने सोचा
ब्राम्हण देवता पागल हो गए हैं, भगवान तो आने से रहे।  धीरे-धीरे सब घर चले गए। ब्राम्हण को भी गुस्सा आ गया। लड्डू उठाकर बाहर फेंक दिए।  भिखारी, कुत्ते,चीटी, मक्खी तो दिनभर से ही इस घड़ी का इंतजार कर रहे थे, सब टूट पड़े। उदास ब्राम्हण भगवान को
कोसता हुआ घर लौटने लगा। इतने सालों की सेवा बेकार  चली गई।कोई फल नहीं मिला। ब्राम्हण पत्नी के ताने सुनकर सो गया। रात को सपने में भगवान आए। बोले-तेरे लड्डू खाए थे मैंने। बहुत बढिय़ा थे, लेकिन अगर सुबह ही खिला देता तो ज्यादा अच्छा होता। कितने रूप धरने पड़े तेरे लड्डू खाने के लिए। मक्खी, चीटी, कुत्ता, भिखारी। पर तुने हाथ नहीं धरने दिया। दिनभर इंतजार करना पड़ा। आखिर में लड्डू खाए लेकिन जमीन से उठाकर  खाने में थोड़ी मिट्टी लग गई थी। अगली बार लाए तो अच्छे से खिलाना। भगवान चले गए।
ब्राम्हण की नींद खुल गई। उसे एहसास हो गया।  भगवान तो आए थे खाने  लेकिन मैं ही उन्हें पहचान नहीं पाया।  बस, ऐसे ही हम भी भगवान के संकेतों को समझ नहीं पाते हैं।
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मुझमें राम ,तुझमें राम
सबमें राम समाया,
सबसे करलो प्रेम जगतमें ,
कोई नहीं पराया....

Friday, September 9, 2016

तीन बीबीयाँ

गुरूजी विद्यालय से घर लौट रहे थे । रास्ते में एक नदी पड़ती थी ।  नदी पार करने लगे तो ना जाने क्या सूझा ,
एक पत्थर पर बैठ अपने झोले में से पेन और कागज निकाल अपने वेतन का  हिसाब  निकालने लगे अचानक हाथ से पेन फिसला और डु बुक पानी में डूब गया । गुरूजी परेशान । आज ही सुबह पूरे पांच रूपये खर्च कर खरीदा था । कातर दृष्टि से कभी इधर कभी उधर देखते , पानी में उतरने का प्रयास करते , फिर डर कर कदम खींच लेते । एकदम नया पेन था , छोड़ कर जाना भी मुनासिब न था । अचानक. पानी में एक तेज लहर उठी ,
और साक्षात् वरुण देव सामने थे । गुरूजी हक्के -बक्के । कुल्हाड़ी वाली कहानी याद आ गई । वरुण देव ने कहा , ”गुरूजी, क्यूँ इतने परेशान हैं । प्रमोशन , तबादला , वेतनवृद्धि ,क्या चाहिए ? गुरूजी अचकचाकर बोले , ” प्रभु ! आज ही सुबह एक पेन खरीदा था । पूरे पांच रूपये का । देखो ढक्कन भी मेरे हाथ में है । यहाँ पत्थर पर बैठा लिख रहा था कि पानी में गिर गया प्रभु बोले , ” बस इतनी सी बात ! अभी निकाल लाता हूँ ।”प्रभु ने डुबकी लगाई , और चाँदी का एक चमचमाता पेन लेकर बाहर आ गए । बोले – ये है आपका पेन ? गुरूजी बोले – ना प्रभु । मुझ गरीब को कहाँ ये चांदी का पेन नसीब । ये मेरा नाहीं । प्रभु बोले – कोई नहीं , एक डुबकी और लगाता हूँ
डुबुक  इस बार प्रभु सोने का रत्न जडित पेन लेकर आये। बोले – “लीजिये गुरूजी , अपना पेन ।” गुरूजी बोले – ” क्यूँ मजाक करते हो प्रभु । इतना कीमती पेन और वो भी मेरा । मैं टीचर हूँ । थके हारे प्रभु ने कहा , ” चिंता ना करो गुरुदेव ।अबके फाइनल डुबकी होगी । डुबुक  बड़ी देर बाद प्रभु उपर आये । हाथ में गुरूजी का जेल पेन लेकर बोले – ये है क्या ? गुरूजी चिल्लाए – हाँ यही है , यही है । प्रभु ने कहा – आपकी इमानदारी ने मेरा दिल जीत
लिया गुरूजी । आप सच्चे गुरु हैं । आप ये तीनों पेन ले लो । गुरूजी ख़ुशी – ख़ुशी घर को चले ।

कहानी अभी बाकी है दोस्तों —

गुरूजी ने घर आते ही सारी कहानी पत्नी जी को सुनाई चमचमाते हुवे कीमती पेन भी दिखाए । पत्नी को विश्वास ना हुवा , बोली तुम किसी का चुरा कर लाये हो । बहुत समझाने पर भी जब पत्नी जी ना मानी
तो गुरूजी उसे घटना स्थल की ओर ले चले । दोनों उस पत्थर पर बैठे , गुरूजी ने बताना शुरू किया कि कैसे – कैसे सब हुवा पत्नी एक एक कड़ी को किसी शातिर पुलिसिये की तरह जोड़ रही थी कि  अचानक …….
डुबुक !!! पत्नी का पैर फिसला , और वो गहरे पानी में समा गई । गुरूजी की आँखों के आगे तारे नाचने लगे ।
ये क्या हुवा ! जोर -जोर से रोने लगे । तभी अचानक  पानी में ऊँची ऊँची लहरें उठने लगी । नदी का सीना चीरकर साक्षात वरुण देव प्रकट हुवे । बोले – क्या हुआ गुरूजी ? अब क्यूँ रो रहे हो ? गुरूजी ने रोते हु story प्रभु को सुनाई । प्रभु बोले – रोओ मत। धीरज रखो । मैं अभी आपकी पत्नी को निकाल कर लाता हूँ।  प्रभु ने डुबकी लगाईं , और ….. थोड़ी देर में वो सनी लियोनी को लेकर प्रकट हुवे ।
बोले –गुरूजी । क्या यही आपकी पत्नी जी है ?? गुरूजी ने एक क्षण सोचा , और चिल्लाए – हाँ यही है , यही है ।
अब चिल्लाने की बारी प्रभु की थी । बोले – दुष्ट मास्टर । ठहर तुझे श्राप देता हूँ । गुरूजी बोले – माफ़ करें प्रभु मेरी कोई गलती नहीं । अगर मैं इसे मना करता तो आप अगली डुबकी में प्रियंका चोपड़ा को लाते । मैं फिर भी मना करता तो आप मेरी पत्नी को लाते । फिर आप खुश होकर तीनों मुझे दे देते । अब आप ही बताओ भगवन ,
इस महंगाई के जमाने में  7th pay Commission ने भी रुला दिया अब मैं तीन – तीन बीबीयाँ कैसे पालता ।
सो सोचा , सनी से ही काम चला लूँगा । और इस ठंड में आप भी डुबकियां लगा लगा कर थक गये होंगे ।
जाइये विश्राम करिए

छपाक …

एक आवाज आई ।

प्रभु बेहोश होकर पानी में गिर गए थे ।

गुरूजी सनी का हाथ थामे
सावधानीपूर्वक धीरे – धीरे नदी पार कर रहे थे ।

Tuesday, September 6, 2016

भारतीय नर्क

एक बार एक व्यक्ति मरकर नर्क में पहुँचा, तो वहाँ उसने देखा कि प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी देश के नर्क में जाने की छूट है । उसने सोचा, चलो अमेरिका वासियों के नर्क में जाकर देखें, जब वह वहाँ पहुँचा तो द्वार पर पहरेदार से उसने पूछा - क्यों भाई अमेरिकी नर्क में क्या-क्या होता है ? पहरेदार बोला - कुछ खास नहीं, सबसे पहले आपको एक इलेक्ट्रिक चेयर पर एक घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा, फ़िर एक कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर
आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे बरसायेगा...  ! यह सुनकरवह व्यक्ति बहुत घबराया और उसने रूस के नर्क की ओर रुख किया, और वहाँ के पहरेदार से भी वही पूछा, रूस के पहरेदार ने भी लगभग वही वाकया सुनाया जो वह अमेरिका के नर्क में सुनकर आया था । फ़िर वह व्यक्ति एक- एक करके सभी देशों के नर्कों के दरवाजे जाकर आया, सभी जगह उसे  भयानक किस्से सुनने को मिले । अन्त में जब वह एक जगह पहुँचा, देखा तो दरवाजे पर लिखा था "भारतीय नर्क" और उस दरवाजे के बाहर उस नर्क में जाने के लिये लम्बी लाईन लगी थी, लोग भारतीय नर्क में जाने को उतावले हो रहे थे, उसने सोचा कि जरूर यहाँ सजा कम मिलती होगी... तत्काल उसने पहरेदार से पूछा कि सजा क्या है ? पहरेदार ने कहा - कुछ खास नहीं...सबसे पहले आपको एक इलेक्ट्रिक चेयर पर एक घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा, फ़िर एक कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे बरसायेगा...  ! चकराये हुए व्यक्ति ने उससे पूछा - यही सब तो बाकी देशों के नर्क में भी हो रहा है, फ़िर यहाँ इतनी भीड क्यों है ? पहरेदार बोला - इलेक्ट्रिक चेयर तो वही है, लेकिन बिजली नहीं है, कीलों वाले बिस्तर में से कीलें कोई निकाल ले गया है, और कोडे़ मारने वाला दैत्य सरकारी कर्मचारी है, आता है, दस्तखत करता है और चाय-नाश्ता करने चला जाता है...और कभी गलती से
जल्दी वापस आ भी गया तो एक-दो कोडे़ मारता है और पचास लिख देता है...चलो आ
जाओ अन्दर !!!

Sunday, September 4, 2016

समोसे की दुकान

एक बडी कंपनी के गेट के सामने एक प्रसिद्ध समोसे की दुकान थी.
लंच टाइम मे अक्सर कंपनी के कर्मचारी वहा आकर समोसे खाया करते थे.
एक दिन कंपनी के एक मॅनेजर समोसे खाते खाते समोसेवाले से मजाक के मूड मे आ गये.
मॅनेजर साहब ने समोसेवाले से कहा, "यार गोपाल, तुम्हारी दुकान तुमने बहुत अच्छेसे मेंटेन की है. लेकीन क्या तुम्हे नही लगता के तुम अपना समय और टॅलेंट समोसे बेचकर बर्बाद कर रहे हो.? सोचो अगर तुम मेरी तरह इस कंपनी मे काम कर रहे होते तो आज कहा होते.. हो सकता है शायद तुम भी आज मॅनेजर होते मेरी तरह.."
इस बात पर समोसेवाले गोपाल ने बडा सोचा. और बोला, " सर ये मेरा काम अापके काम से कही बेहतर है. 10 साल पहले जब मै टोकरी मे समोसे बेचता था तभी आपकी जाॅब लगी थी. तब मै महीना हजार रुपये कमाता था और आपकी पगार थी १० हजार.
इन 10 सालो मे हम दोनो ने खूब मेहनत की..
आप सुपरवाइजर से मॅनेजर बन गये.
और मै टोकरी से इस प्रसिद्ध दुकान तक पहुच गया.
आज आप महीना ५०,००० कमाते है
 और मै महीना २,००,०००
 लेकीन इस बात के लिए मै मेरे काम को आपके काम से बेहतर नही कह रहा हूँ.
ये तो मै बच्चो के कारण कह रहा हूँ.
जरा सोचिए सर मैने तो बहुत कम कमाइ पर धंदा शुरू किया था. मगर मेरे बेटे को यह सब नही झेलना पडेगा.
मेरी दुकान मेरे बेटे को मिलेगी. मैने जिंदगी मे जो मेहनत की है, वो उसका लाभ मेरे बच्चे उठाएंगे.
जबकी आपकी जिंदगी भर की मेहनत का लाभ आपके मालिक के बच्चे उठाएंगे..
अब आपके बेटे को आप डिरेक्टली अपनी पोस्ट पर तो नही बिठा सकते ना..
उसे भी आपकी ही तरह झीरो से शुरूआत करनी पडेगी.. और अपने कार्यकाल के अंत मे वही पहुच जाएगा जहा अभी आप हो.
जबकी मेरा बेटा बिजनेस को यहा से और आगे ले जाएगा..
और अपने कार्यकाल मे हम सबसे बहुत आगे निकल जाएगा..
अब आप ही बताइये किसका समय और टॅलेंट बर्बाद हो रहा है? "
मॅनेजर साहब ने समोसेवाले को २ समोसे के २० रुपये दिये और बिना कुछ बोले वहा से खिसक लिये.