Saturday, June 4, 2016

मानव सेवा

नई नवेली दुल्हन जब ससुराल में आई तो उसकी  सास बोली :बींदणी कल  माता के मन्दिर में चलना है। बहू ने पूछा : सासु माँ एक  तो ' माँ ' जिसने मुझ जन्म दिया और एक ' आप ' हो  और कोन सी माँ है ?  सास बडी खुश हुई कि मेरी  बहू तो बहुत सीधी है ।  सास ने कहा - बेटा पास के मन्दिर में दुर्गा माता है  सब औरतें जायेंगी हम भी चलेंगे ।  सुबह होने पर दोनों एक साथ मन्दिर जाती है ।  आगे सास पीछे बहू । जैसे ही मन्दिर आया तो बहू ने मन्दिर में गाय की मूर्ति को देखकर कहा : माँ जी देखो ये गाय का बछड़ा दूध पी रहा है , मैं बाल्टी लाती हूँ और दूध निकालते है । सास ने अपने सिर पर हाथ पीटा कि बहू तो " पागल " है और बोली :-,बेटा ये स्टेच्यू है और ये दूध नही दे सकती।  चलो आगे । मन्दिर में जैसे ही प्रवेश किया तो एक शेर की मूर्ति दिखाई दी ।
फिर बहू ने कहा - माँ आगे मत जाओ ये शेर खा जायेगा सास को चिंता हुई की मेरे बेटे का तो भाग्य फूट गया ।
और बोली - बेटा पत्थर का शेर कैसे खायेगा ?  चलो अंदर चलो मन्दिर में, और सास बोली - बेटा ये माता है और इससे मांग लो , यह माता तुम्हारी मांग पूरी करेंगी ।  बहू ने कहा - माँ ये तो पत्थर की है ये क्या दे सकती है ? ,
जब पत्थर की गाय दूध नही दे सकती ? पत्थर का बछड़ा दूध पी नही सकता ? पत्थर का शेर खा नही सकता ?
तो ये पत्थर की मूर्ति क्या दे सकती है ? अगर कोई दे सकती है तो आप ......... है  " आप मुझे आशीर्वाद दीजिये " । तभी सास की आँखे खुली !  वो बहू पढ़ी लिखी थी, तार्किक थी, जागरूक थी , तर्क और विवेक के सहारे बहु ने सास को जाग्रत कर दिया ! अगर मानवता की प्राप्ति करनी है तो पहले असहायों , जरुरतमंदों , गरीबो की सेवा करो  परिवार , समाज में लोगो की मदद करे । "अंधविश्वास और पाखण्ड को हटाना ही मानव सेवा है " ।
बाकी मंदिर , मस्जिद , गुरुद्वारे, चर्च तो मानसिक गुलामी के केंद्र हैं  ना कि ईश्वर प्राप्ति के
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मानव का सफर पत्थर से शुरु हुआ था। पत्थरों को ही महत्व देता है और आज पत्थर ही बन कर रह गया -

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