किसी
गाँव में किसी कुंए के पास एक सर्प रहता था. वह बहुत ही दुष्ट सर्प था और
हर किसी को परेशान करता रहता था. गाँव के लोग उस सर्प के डर से कुंए के पास
जाने से भी डरते थे. एक दिन एक महात्मा उस गाँव में आये और गाँव वालों ने
महात्मा जी को इस परेशानी के बारे में बताया. महात्मा जी उस सर्प के पास गए
और उसे समझाया मगर सर्प ने उनकी बातों को गंभीरता से नहीं समझा. नाराज
होकर महात्मा जी ने उस सर्प को श्राप दिया कि आज से तुम्हारे जहर की शक्ति
नष्ट हो जायेगी. महात्मा जी के श्राप से उस सर्प की जहर की शक्ति चली गई और
तभी से सर्प बहुत शांत रहने लगा.
इस घटना के बाद जब से सर्प शांत रहने लगा और उसने लोगों को डरना और
फुसकारना बंद कर दिया तब से ही बच्चे उस सर्प को परेशान करने लगे. हर कोई
आकर उस सर्प को छेड़ता.
सर्प परेशान रहने लगा और वह अधिकांश समय अपने बिल में रहने लगा.
संयोग से कुछ वर्षों बाद वही महात्मा फिर से गाँव में आये जिन्होंने सर्प
को श्राप दिया था. सर्प ने महात्मा जी को अपनी दुःख भरी कहानी सुनाई और
इसका उपाय पूछा. महात्मा जी ने कहा कि तुम्हारे बुरे कर्मों के कारण
तुम्हारी जहर की शक्ति तो चली गई है परन्तु तुम्हारे फुस्कारने की शक्ति
अभी भी कायम है. तुम फुसकार कर ही लोगों के मन में अपना डर कायम रख सकते हो
ताकि लोग बाग तुम्हे परेशान न कर सकें.
महात्मा जी कि बात मानकर उसी दिन से सर्प ने अपने फन और फुसकार द्वारा
लोगों को डराना शुरू कर दिया, इससे लोगों ने उसे परशान करना बंद कर दिया और
सर्प सुखी जीवन जीने लगा.
दोस्तों, इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि आज के जमाने में बहुत
अधिक सीधे बने रहने का समय नहीं है क्योंकि सीधे आदमी को हर कोई परेशान
करता है. जो आदमी लोगों में अपना थोडा बहुत डर या भय बना कर रखता है लोग
उससे डरते हैं, उसे परेशान नहीं करते और वो व्यक्ति सुखी रहता है.
सादगी ऐसी भी ना हो कि लोग आपको उल्लू बना कर लूट लें.
बहुत अधिक सीधापन या सादगी भी कई बार हमें ले डूबती है. जहाँ
जिस तरीके से व्यवहार करने की जरुरत हो वैसे व्यवहार करना चाहिए. कहीं ऐसा
न हो कि लोग आपकी सज्जनता और भलमनसाहत को आपकी मुर्खता और बेवकूफी समझ कर
आपका नाजायज फायदा उठा रहे हों. अगर ऐसा है तो आप तुरंत सावधान हो जाईये और
अपनी सज्जनता और भलमन साहत का दूसरों को गलत उपयोग ना करने दीजिये
ै.
प्रथम विश्वयुद्ध (First world war) चल रहा था. चरों ओर मार काट मची थी.
लाखों लोगों को मौत अपने चंगुल में फंसा चूका था और अनगिनत लोग अपाहिज होते
चले जा रहे थे. इस भीषण माहोल में यह Engineer भी रूस की ओर से इस world
war में शामिल हुआ. दुर्भाग्य से युद्ध में उसे अपना एक पैर गंवाना पड़ा.
महीनों तक वह Hospital में रहा. जब ठीक हुआ तो Doctors ने सलाह दी कि नकली
पैर लगवा लें ताकि चलने फिरने में और अन्य कार्य करने में असुविधा न हो.
उसने Doctors की सलाह मान कर नकली पैर लगवा लिया. अब वह easily चल फिर सकता
था. एक दिन वह घायल लोगों को देखने गया. उसने पाया कि अंग-भंग हुए लोगों
में पूर्णत: निराशा के भाव हैं तो उसने उनकी हौसला अफजाई की और कहा कि देखो
मैं ने नकली पैर लगवा लिया है, अब मुझे कोई परिशानी नहीं है और तो और इस
नकली पैर का सबसे बड़ा लाभ यह है कि चोट लगने पर उसका बिलकुल भी एहसास नहीं
होता. यह कह कर उसने एक आदमी को बेंत देकर उसके पैर पर मारने के लिए कहा.
उस आदमी ने कास कर बेंत मारी.
Engineer मुस्कुरा कर बोला- देखो, मुझे ज़रा भी दर्द नहीं हो रहा.
उसके इस Actions पर उपस्थित Patients के मन से निराशा, Disappointment के भाव जाते रहे.
जब Engineer बहार निकला तो उसके चेहरे पर पीड़ा के भाव उभर आए.
क्यूंकि गलती से आदमी ने उसके असली पैर पर बेंत मर दी थी किन्तु अगले ही पल वह दोबारा मुस्कुरा कर आगे बढ़ गया.
Actually
दुर्दशा को प्राप्त लोगों में जीवन के प्रति आशा जगाने के लिए कई बार स्वंय
भी कष्ट सहन करना पड़ता है. लेकिन इससे हमेशा सकरात्मक परिणाम, Positive
results ही सामने आता है.
याद रखें: वृक्ष तने से काटे जाने के बाद भी पुनः कोंपलों के माध्यम से फुट पड़ता है और एक दिन पहले से भी अधिक घाना होकर सामने आता है.
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किसी
गाँव में किसी कुंए के पास एक सर्प रहता था. वह बहुत ही दुष्ट सर्प था और
हर किसी को परेशान करता रहता था. गाँव के लोग उस सर्प के डर से कुंए के पास
जाने से भी डरते थे. एक दिन एक महात्मा उस गाँव में आये और गाँव वालों ने
महात्मा जी को इस परेशानी के बारे में बताया. महात्मा जी उस सर्प के पास गए
और उसे समझाया मगर सर्प ने उनकी बातों को गंभीरता से नहीं समझा. नाराज
होकर महात्मा जी ने उस सर्प को श्राप दिया कि आज से तुम्हारे जहर की शक्ति
नष्ट हो जायेगी. महात्मा जी के श्राप से उस सर्प की जहर की शक्ति चली गई और
तभी से सर्प बहुत शांत रहने लगा.
इस घटना के बाद जब से सर्प शांत रहने लगा और उसने लोगों को डरना और
फुसकारना बंद कर दिया तब से ही बच्चे उस सर्प को परेशान करने लगे. हर कोई
आकर उस सर्प को छेड़ता.
पूरी कहानी पढ़ें:
सर्प परेशान रहने लगा और वह अधिकांश समय अपने बिल में रहने लगा.
संयोग से कुछ वर्षों बाद वही महात्मा फिर से गाँव में आये जिन्होंने सर्प
को श्राप दिया था. सर्प ने महात्मा जी को अपनी दुःख भरी कहानी सुनाई और
इसका उपाय पूछा. महात्मा जी ने कहा कि तुम्हारे बुरे कर्मों के कारण
तुम्हारी जहर की शक्ति तो चली गई है परन्तु तुम्हारे फुस्कारने की शक्ति
अभी भी कायम है. तुम फुसकार कर ही लोगों के मन में अपना डर कायम रख सकते हो
ताकि लोग बाग तुम्हे परेशान न कर सकें.
महात्मा जी कि बात मानकर उसी दिन से सर्प ने अपने फन और फुसकार द्वारा
लोगों को डराना शुरू कर दिया, इससे लोगों ने उसे परशान करना बंद कर दिया और
सर्प सुखी जीवन जीने लगा.
दोस्तों, इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि आज के जमाने में बहुत
अधिक सीधे बने रहने का समय नहीं है क्योंकि सीधे आदमी को हर कोई परेशान
करता है. जो आदमी लोगों में अपना थोडा बहुत डर या भय बना कर रखता है लोग
उससे डरते हैं, उसे परेशान नहीं करते और वो व्यक्ति सुखी रहता है.
सादगी ऐसी भी ना हो कि लोग आपको उल्लू बना कर लूट लें.
Friends, इस Hindi Motivational Story का अभिप्राय ये है कि अति हर चीज की
बुरी होती है. बहुत अधिक सीधापन या सादगी भी कई बार हमें ले डूबती है. जहाँ
जिस तरीके से व्यवहार करने की जरुरत हो वैसे व्यवहार करना चाहिए. कहीं ऐसा
न हो कि लोग आपकी सज्जनता और भलमनसाहत को आपकी मुर्खता और बेवकूफी समझ कर
आपका नाजायज फायदा उठा रहे हों. अगर ऐसा है तो आप तुरंत सावधान हो जाईये और
अपनी सज्जनता और भलमन साहत का दूसरों को गलत उपयोग ना करने दीजिये
ै.
प्रथम विश्वयुद्ध (First world war) चल रहा था. चरों ओर मार काट मची थी.
लाखों लोगों को मौत अपने चंगुल में फंसा चूका था और अनगिनत लोग अपाहिज होते
चले जा रहे थे. इस भीषण माहोल में यह Engineer भी रूस की ओर से इस world
war में शामिल हुआ. दुर्भाग्य से युद्ध में उसे अपना एक पैर गंवाना पड़ा.
महीनों तक वह Hospital में रहा. जब ठीक हुआ तो Doctors ने सलाह दी कि नकली
पैर लगवा लें ताकि चलने फिरने में और अन्य कार्य करने में असुविधा न हो.
उसने Doctors की सलाह मान कर नकली पैर लगवा लिया. अब वह easily चल फिर सकता
था. एक दिन वह घायल लोगों को देखने गया. उसने पाया कि अंग-भंग हुए लोगों
में पूर्णत: निराशा के भाव हैं तो उसने उनकी हौसला अफजाई की और कहा कि देखो
मैं ने नकली पैर लगवा लिया है, अब मुझे कोई परिशानी नहीं है और तो और इस
नकली पैर का सबसे बड़ा लाभ यह है कि चोट लगने पर उसका बिलकुल भी एहसास नहीं
होता. यह कह कर उसने एक आदमी को बेंत देकर उसके पैर पर मारने के लिए कहा.
उस आदमी ने कास कर बेंत मारी.
Engineer मुस्कुरा कर बोला- देखो, मुझे ज़रा भी दर्द नहीं हो रहा.
उसके इस Actions पर उपस्थित Patients के मन से निराशा, Disappointment के भाव जाते रहे.
जब Engineer बहार निकला तो उसके चेहरे पर पीड़ा के भाव उभर आए.
क्यूंकि गलती से आदमी ने उसके असली पैर पर बेंत मर दी थी किन्तु अगले ही पल वह दोबारा मुस्कुरा कर आगे बढ़ गया.
Actually
दुर्दशा को प्राप्त लोगों में जीवन के प्रति आशा जगाने के लिए कई बार स्वंय
भी कष्ट सहन करना पड़ता है. लेकिन इससे हमेशा सकरात्मक परिणाम, Positive
results ही सामने आता है.
याद रखें: वृक्ष तने से काटे जाने के बाद भी पुनः कोंपलों के माध्यम से फुट पड़ता है और एक दिन पहले से भी अधिक घाना होकर सामने आता है.
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प्रथम विश्वयुद्ध (First world war) चल रहा था. चरों ओर मार काट मची थी.
लाखों लोगों को मौत अपने चंगुल में फंसा चूका था और अनगिनत लोग अपाहिज होते
चले जा रहे थे. इस भीषण माहोल में यह Engineer भी रूस की ओर से इस world
war में शामिल हुआ. दुर्भाग्य से युद्ध में उसे अपना एक पैर गंवाना पड़ा.
महीनों तक वह Hospital में रहा. जब ठीक हुआ तो Doctors ने सलाह दी कि नकली
पैर लगवा लें ताकि चलने फिरने में और अन्य कार्य करने में असुविधा न हो.
उसने Doctors की सलाह मान कर नकली पैर लगवा लिया. अब वह easily चल फिर सकता
था. एक दिन वह घायल लोगों को देखने गया. उसने पाया कि अंग-भंग हुए लोगों
में पूर्णत: निराशा के भाव हैं तो उसने उनकी हौसला अफजाई की और कहा कि देखो
मैं ने नकली पैर लगवा लिया है, अब मुझे कोई परिशानी नहीं है और तो और इस
नकली पैर का सबसे बड़ा लाभ यह है कि चोट लगने पर उसका बिलकुल भी एहसास नहीं
होता. यह कह कर उसने एक आदमी को बेंत देकर उसके पैर पर मारने के लिए कहा.
उस आदमी ने कास कर बेंत मारी.
Engineer मुस्कुरा कर बोला- देखो, मुझे ज़रा भी दर्द नहीं हो रहा.
उसके इस Actions पर उपस्थित Patients के मन से निराशा, Disappointment के भाव जाते रहे.
जब Engineer बहार निकला तो उसके चेहरे पर पीड़ा के भाव उभर आए.
क्यूंकि गलती से आदमी ने उसके असली पैर पर बेंत मर दी थी किन्तु अगले ही पल वह दोबारा मुस्कुरा कर आगे बढ़ गया.
Actually
दुर्दशा को प्राप्त लोगों में जीवन के प्रति आशा जगाने के लिए कई बार स्वंय
भी कष्ट सहन करना पड़ता है. लेकिन इससे हमेशा सकरात्मक परिणाम, Positive
results ही सामने आता है.
याद रखें: वृक्ष तने से काटे जाने के बाद भी पुनः कोंपलों के माध्यम से फुट पड़ता है और एक दिन पहले से भी अधिक घाना होकर सामने आता है.
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