भगवान बुद्ध को प्यास लगी थी। आनन्द पास के पहाड़ी झरने पर पानी लेने गया किन्तु देखा कि झरने से अभी-अभी बैलगाडियाँ गुजरी हैं और सारा जल गन्दा हो गया है।
वापस लौट आए और भगवान से बोले-"मैं पीछे छुट गई नदी पर जल लेने जाता हूँ,इस झरने का पानी बैलगाडि यों के कारण गन्दा हो गया है।"
किन्तु भगवान ने आन्नद को वापस उसी झरने पर भेजा ।तब भी पानी साफ नहीं हुआ था और आन्नद लौट आए।ऐसा तीन बार हुआ। परन्तु चौथी बार आन्नद हैरान रह गये। तब सडे -गले पत्ते नीचे बैठ चुके थे,काई सिमटकर दूर जा चुकी थी और पानी आईने की भाँति चमक रहा था।इस बार वे पानी सहित लौटे।
भगवान ने तब कहा-" आन्नद,हमारे जीवन के जल को भी विचारों की बैलगाडियाँ रोज-रोज गन्दा करती हैं और हम जीवन से भाग खडे होते हैं। किन्तु हम भागें नहीं,मन की झील के शान्त होने की थोडी प्रतीक्षा कर लें,तो सब कुछ स्वच्छ हो जाता है,उसी झरने की तरह"
वापस लौट आए और भगवान से बोले-"मैं पीछे छुट गई नदी पर जल लेने जाता हूँ,इस झरने का पानी बैलगाडि यों के कारण गन्दा हो गया है।"
किन्तु भगवान ने आन्नद को वापस उसी झरने पर भेजा ।तब भी पानी साफ नहीं हुआ था और आन्नद लौट आए।ऐसा तीन बार हुआ। परन्तु चौथी बार आन्नद हैरान रह गये। तब सडे -गले पत्ते नीचे बैठ चुके थे,काई सिमटकर दूर जा चुकी थी और पानी आईने की भाँति चमक रहा था।इस बार वे पानी सहित लौटे।
भगवान ने तब कहा-" आन्नद,हमारे जीवन के जल को भी विचारों की बैलगाडियाँ रोज-रोज गन्दा करती हैं और हम जीवन से भाग खडे होते हैं। किन्तु हम भागें नहीं,मन की झील के शान्त होने की थोडी प्रतीक्षा कर लें,तो सब कुछ स्वच्छ हो जाता है,उसी झरने की तरह"
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