Sunday, May 17, 2015

कोई काम छोटा-बड़ा नहीं होता

महान साहित्यकार शेक्सपियर की उम्र उस वक्त बहुत कम थी, जब उनके पिता का देहांत हो गया। इसके बाद अचानक उनके नाजुक कंधों पर पूरे परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी आ गई। इतना भारी काम कैसे हो सकेगा, यह सोचकर वह बहुत उदास रहने लगे। एक दिन बाइबिल पढ़ते समय उनकी नजर एक पंक्ति पर ठहर गई-'कोई काम छोटा-बड़ा नहीं होता। जो दायित्व मिले उसे पूरी निष्ठा व मनोयोग से करो, सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी। कठिन परिश्रम ही सफलता का द्वार है।'

इस वाक्य से उन्हें बहुत संबल मिला। उन्होंने काम पाने के लिए खूब भागदौड़ शुरू कर दी। काफी कोशिशों के बाद उन्हें एक नाटक कंपनी में घोड़ों की देखभाल का काम मिला। काम के साथ-साथ शेक्सपियर समय मिलने पर पुस्तकें भी पढ़ते रहते थे। एक नाटककार ने जब उन्हें मनोयोग से पढ़ते हुए देखा तो वह समझ गए कि यह व्यक्ति कुछ अलग तरह का है। शेक्सपियर को नाटक देखना भी बहुत अच्छा लगता था। यह देखकर नाटक कंपनी के मालिक ने एक दिन शेक्सपियर को नाटकों के अंशों को साफ-साफ लिखने का काम सौंप दिया।

दूसरों के नाटकों के अंश लिखते-लिखते शेक्सपियर ने धीरे-धीरे खुद भी लिखने का प्रयास शुरू कर दिया। एक दिन उन्होंने अपनी एक डायरी नाटक कंपनी के मालिक को दिखाई तो उन्होंने शेक्सपियर की पीठ थपथपाते हुए कहा, 'तुम तो बहुत अच्छा लिखते हो, जरा इसे पूरा करके दिखाओ। यदि वह अच्छा लगा तो हमारी नाटक कंपनी इसे मंच पर प्रस्तुत करेगी।' शेक्सपियर का लिखा नाटक काफी पसंद किया गया। उनके लेखन की हर जगह प्रशंसा होने लगी। बस फिर क्या था, शेक्सपियर अपनी लगन और प्रतिभा के बल पर अंग्रेजी के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकारों में गिने जाने लगे।

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