Thursday, June 28, 2018

जरा सोचना

बन्दरों का एक समूह था,
 जो फलो के बगिचों मे फल तोड़ कर खाया करते थे। 
माली की मार और डन्डे भी खाते थे, 
रोज पिटते भी थे ।
उनका एक सरदार भी था 
जो सभी बंदरो से ज्यादा समझदार था। एक दिन बन्दरों के कर्मठ और जुझारू सरदार ने सब बन्दरों से विचार-विमर्श कर निश्चय किया 
कि रोज माली के डन्डे खाने से बेहतर है 
कि यदि हम अपना फलों का बगीचा लगा लें 
तो इतने फल मिलेंगे की हर एक के हिस्से मे 15-15 फल आ सकते है, 
हमे फल खाने मे कोई रोक टोक भी नहीं होगी और हमारे
 अच्छे दिन आ जाएंगे ।
सभी बन्दरों को यह प्रस्ताव बहुत पसन्द आया । 
जोर शोर से गड्ढे खोद कर फलो के बीज बो दिये गये ।
पूरी रात बन्दरों ने बेसब्री से इन्तज़ार किया 
और सुबह देखा तो फलो के पौधे 
भी नहीं आये थे ! 
जिसे देखकर बंदर भड़क गए 
और सरदार को गरियाने लगे 
और नारे लगाने लगे, "कहा है हमारे 15-15 फल"???
 "क्या यही अच्छे दिन है?" 
सरदार ने इनकी मुर्खता पर अपना सिर पिट लिया
 और हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए बोला, " अभी तो हमने बीज बोया है, 
मुझे थोड़ा समय और दे दो, 
फल आने मे थोड़ा समय लगता है।" 
इस बार तो बंदर मान गए।
दो चार दिन बन्दरों ने और इन्तज़ार किया, परन्तु पौधे नहीं आये, अब 
मुर्ख बन्दरों से नही रहा  गया 
तो उन्होंने मिट्टी हटाई - देखा 
फलो के बीज जैसे के तैसे मिले ।
बन्दरों ने कहा - सरदार फेकु है, 
झूठ बोलते हैं । 
हमारे कभी अच्छे दिन नही आने वाले । 
हमारी किस्मत में तो माली के डन्डे ही 
लिखे हैं और बन्दरों ने सभी गड्ढे खोद कर फलो के बीज निकाल निकाल कर फेंक दिये । पुन: अपने भोजन के लिये माली की मार और डन्डे खाने लगे ।
 जरा सोचना कहीं हम भी तो  बन्दरों वाली हरकत तो नहीं कर रहे हो..?

Sunday, June 24, 2018

मन की हालत

एक बार एक सेठ ने पंडित जी को निमंत्रण किया पर पंडित जी का एकादशी का व्रत था तो  पंडित जी नहीं जा सके पर पंडित जी ने अपने दो शिष्यो को सेठ के यहाँ भोजन के लिए भेज दिया.

पर जब दोनों शिष्य वापस लौटे तो उनमे एक शिष्य दुखी और दूसरा प्रसन्न था!

पंडित जी को देखकर आश्चर्य हुआ और पूछा बेटा क्यो दुखी हो -- क्या सेठ नेभोजन मे अंतर कर दिया ? 

"नहीं गुरु जी" 

क्या सेठ ने आसन मे अंतर कर दिया ? 

"नहीं गुरु जी" 

क्या सेठ ने दच्छिना मे अंतर कर दिया ? 

"नहीं गुरु जी ,बराबर दच्छिना दी 2 रुपये मुझे और 2 रुपये दूसरे को"

अब तो गुरु जी को और भी आश्चर्य हुआ और पूछा फिर क्या कारण है ? 
जो तुम दुखी हो ?

तब दुखी चेला बोला गुरु जी मे तो सोचता था सेठ बहुत बड़ा आदमी है कम से कम 10 रुपये दच्छिना देगा पर उसने 2 रुपये दिये इसलिए मे दुखी हू !!

अब दूसरे से पूछा तुम क्यो प्रसन्न हो ?

तो दूसरा बोला गुरु जी मे जानता था सेठ बहुत कंजूस है आठ आने से ज्यादा दच्छिना नहीं देगा पर उसने 2 रुपए दे दिये तो मे प्रसन्न हू ...!

बस यही हमारे मन का हाल है संसार मे घटनाए समान रूप से घटती है पर कोई उनही घटनाओ से सुख प्राप्त करता है कोई दुखी होता है ,पर असल मे न दुख है न सुख ये हमारे मन की स्थिति पर निर्भर है!

इसलिए मन प्रभु चरणों मे लगाओ ,क्योकि - कामना पूरी न हो तो दुख और कामना पूरी हो जाये तो सुख पर यदि कोई कामना ही न हो तो आनंद ...
जिस शरीर को लोग सुन्दर समझते हैं।
मौत के बाद वही शरीर सुन्दर क्यों नहीं लगता ? 
उसे घर में न रखकर जला क्यों दिया जाता है ? 
जिस शरीर को सुन्दर मानते हैं।
जरा उसकी चमड़ी तो उतार कर देखो।
तब हकीकत दिखेगी कि भीतर क्या है ?  
भीतर तो बस 
रक्त, 
रोग, 
मल 
और 
कचरा 
भरा पड़ा है ! 
फिर यह शरीर सुन्दर कैसे हुआ.?
शरीर में कोई सुन्दरता नहीं है ! 
सुन्दर होते हैं 
व्यक्ति के कर्म, 
उसके विचार, 
उसकी वाणी, 
उसका व्यवहार, 
उसके  संस्कार, 
और 
उसका चरित्र !  
जिसके जीवन में यह सब है।
वही इंसान दुनियां का सबसे सुंदर शख्स है .... !!

Sunday, June 17, 2018

प्रायश्चित

एक बार वृन्दावन गए वहाँ कुछ दिन घूमे फिरे दर्शन किए
जब वापस लौटने का मन किया तो सोचा भगवान् को भोग लगा कर कुछ प्रसाद लेता चलूँ..
संत ने रामदाने के कुछ लड्डू ख़रीदे मंदिर गए.. प्रसाद चढ़ाया और आश्रम में आकर सो गए.. सुबह ट्रेन पकड़नी थी
अगले दिन ट्रेन से चले.. सुबह वृन्दावन से चली ट्रेन को मुगलसराय स्टेशन तक आने में शाम हो गयी..
संत ने सोचा.. अभी पटना तक जाने में तीन चार घंटे और लगेंगे.. भूख लग रही है.. मुगलसराय में ट्रेन आधे घंटे रूकती है.. 
चलो हाथ पैर धोकर संध्या वंदन करके कुछ पा लिया जाय..
संत ने हाथ पैर धोया और लड्डू खाने के लिए डिब्बा खोला..
उन्होंने देखा लड्डू में चींटे लगे हुए थे.. उन्होंने चींटों को हटाकर एक दो लड्डू खा लिए
बाकी बचे लड्डू प्रसाद बाँट दूंगा ये सोच कर छोड़ दिए
पर कहते हैं न संत ह्रदय नवनीत समाना
बेचारे को लड्डुओं से अधिक उन चींटों की चिंता सताने लगी..
सोचने लगे.. ये चींटें वृन्दावन से इस मिठाई के डिब्बे में आए हैं..
बेचारे इतनी दूर तक ट्रेन में मुगलसराय तक आ गए
कितने भाग्यशाली थे.. इनका जन्म वृन्दावन में हुआ था, 
अब इतनी दूर से पता नहीं कितने दिन या कितने जन्म लग जाएँगे इनको वापस पहुंचने में..!
पता नहीं ब्रज की धूल इनको फिर कभी मिल भी पाएगी या नहीं..!!
मैंने कितना बड़ा पाप कर दिया.. इनका वृन्दावन छुड़वा दिया
नहीं मुझे वापस जाना होगा..
और संत ने उन चींटों को वापस उसी मिठाई के डिब्बे में सावधानी से रखा.. और वृन्दावन की ट्रेन पकड़ ली।
उसी मिठाई की दूकान के पास गए डिब्बा धरती पर रखा.. और हाथ जोड़ लिए
मेरे भाग्य में नहीं कि तेरे ब्रज में रह सकूँ तो मुझे कोई अधिकार भी नहीं कि जिसके भाग्य में ब्रज की धूल लिखी है उसे दूर कर सकूँ
दूकानदार ने देखा तो आया..
महाराज चीटें लग गए तो कोई बात नहीं आप दूसरी मिठाई तौलवा लो..
संत ने कहा.. भईया मिठाई में कोई कमी नहीं थी
इन हाथों से पाप होते होते रह गया उसी का प्रायश्चित कर रहा हूँ..!
दुकानदार ने जब सारी बात जानी तो उस संत के पैरों के पास बैठ गया.. भावुक हो गया
इधर दुकानदार रो रहा था... उधर संत की आँखें गीली हो रही थीं!!

Thursday, June 14, 2018

स्वर्ग का सेब

 एक बार स्वर्ग से घोषणा हुई कि भगवान सेब बॉटने आ रहे है सभी लोग भगवान के प्रसाद के लिए तैयार हो कर लाइन लगाकर खड़े हो गए। एक छोटी बच्ची बहुत उत्सुक थी क्योंकि वह पहली बार भगवान को देखने जा रही थी।एक बड़े और सुंदर सेब के साथ साथ भगवान के दर्शन की कल्पना से ही खुश थी।अंत में प्रतीक्षा समाप्त हुई। बहुत लंबी कतार में जब उसका नम्बर आया तो भगवान ने उसे एक बड़ा और लाल सेब दिया। लेकिन जैसे ही उसने सेब पकड़कर लाइन से बाहर निकली उसका सेब हाथ से छूटकर कीचड़ में गिर गया। बच्ची उदास हो गई।अब उसे दुबारा से लाइन में लगना पड़ेगा। दूसरी लाइन पहली से भी लंबी थी।लेकिन कोई और रास्ता नहीं था। सब लोग ईमानदारी से अपनी बारी बारी से सेब लेकर जा रहे थे।
        अन्ततः वह बच्ची फिर से लाइन में लगी और अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगी।आधी क़तार को सेब मिलने के बाद सेब ख़त्म होने लगे। अब तो बच्ची बहुत उदास हो गई। उसने सोचा कि उसकी बारी आने तक तो सब सेब खत्म हो जाएंगे। लेकिन वह ये नहीं जानती थी कि भगवान के भंडार कभी ख़ाली नही होते।जब तक उसकी बारी आई तो और भी नए सेब आ गए ।
    भगवान तो अन्तर्यामी होते हैं। बच्ची के मन की बात जान गए।उन्होंने इस बार बच्ची को सेब देकर कहा कि पिछली बार वाला सेब एक तरफ से सड़ चुका था। तुम्हारे लिए सही नहीं था इसलिए मैने ही उसे तुम्हारे हाथों गिरवा दिया था। दूसरी तरफ लंबी कतार में तुम्हें इसलिए लगाया क्योंकि नए सेब अभी पेडों पर थे। उनके आने में समय बाकी था। इसलिए  तुम्हें अधिक प्रतीक्षा करनी पड़ी। 
ये सब अधिक लाल, सुंदर और तुम्हारे लिए उपयुक्त है। भगवान की बात सुनकर बच्ची संतुष्ट हो कर गई 
इसी प्रकार यदि आपके किसी काम में विलंब हो रहा है तो उसे भगवान की इच्छा मानकर स्वीकार करें। भगवान अपने बच्चों को वही देंगे जो उनके लिए उत्तम होगा। ईमानदारी से अपनी बारी की प्रतीक्षा करने में सबकी भलाई है। 

Monday, June 11, 2018

देखने का नज़रिया

एक माँ अपने पूजा-पाठ से फुर्सत पाकर अपने विदेश में रहने वाले बेटे से विडियो चैट करते वक्त पूछ बैठी-

"बेटा! कुछ पूजा-पाठ भी करते हो या नहीं?"

बेटा बोला-

"माँ, मैं एक जीव वैज्ञानिक हूँ। मैं अमेरिका में मानव के विकास पर काम कर रहा हूँ। विकास का सिद्धांत, चार्ल्स डार्विन.. क्या आपने उसके बारे में सुना भी है?"

उसकी माँ मुस्कुराई और बोली.....
"मैं डार्विन के बारे में जानती हूँ बेटा.. उसने जो भी खोज की, वह वास्तव में सनातन-धर्म के लिए बहुत पुरानी खबर है।"
“हो सकता है माँ!” बेटे ने भी व्यंग्यपूर्वक कहा।
“यदि तुम कुछ समझदार हो, तो इसे सुनो..” उसकी माँ ने प्रतिकार किया। “क्या तुमने दशावतार के बारे में सुना है? 
विष्णु के दस अवतार?”
बेटे ने सहमति में कहा...
"हाँ! पर दशावतार का मेरी रिसर्च से क्या लेना-देना?"
माँ फिर बोली-
"लेना-देना है.. मैं तुम्हें बताती हूँ कि तुम और मि. डार्विन क्या नहीं जानते हो ?"

“पहला अवतार था 'मत्स्य', यानि मछली। ऐसा इसलिए कि जीवन पानी में आरम्भ हुआ। यह बात सही है या नहीं?”
बेटा अब ध्यानपूर्वक सुनने लगा..
“उसके बाद आया दूसरा अवतार 'कूर्म', अर्थात् कछुआ। क्योंकि जीवन पानी से जमीन की ओर चला गया.. 'उभयचर (Amphibian)', तो कछुए ने समुद्र से जमीन की ओर के विकास को दर्शाया।” 

“तीसरा था 'वराह' अवतार, यानी सूअर। जिसका मतलब वे जंगली जानवर, जिनमें अधिक बुद्धि नहीं होती है। तुम उन्हें डायनासोर कहते हो।”
बेटे ने आंखें फैलाते हुए सहमति जताई..

“चौथा अवतार था 'नृसिंह', आधा मानव, आधा पशु। जिसने दर्शाया जंगली जानवरों से बुद्धिमान जीवों का विकास।”

“पांचवें 'वामन' हुए, बौना जो वास्तव में लंबा बढ़ सकता था। क्या तुम जानते हो ऐसा क्यों है? क्योंकि मनुष्य दो प्रकार के होते थे- होमो इरेक्टस(नरवानर) और होमो सेपिअंस (मानव), और होमो सेपिअंस ने विकास की लड़ाई जीत ली।”
बेटा दशावतार की प्रासंगिकता सुन के स्तब्ध रह गया..

माँ ने बोलना जारी रखा-
“छठा अवतार था 'परशुराम', जिनके पास शस्त्र (कुल्हाड़ी) की ताकत थी। वे दर्शाते हैं उस मानव को, जो गुफा और वन में रहा.. गुस्सैल और असामाजिक।”

“सातवां अवतार थे 'मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम', सोच युक्त प्रथम सामाजिक व्यक्ति। जिन्होंने समाज के नियम बनाए और समस्त रिश्तों का आधार।”

“आठवां अवतार थे 'भगवान श्री कृष्ण', राजनेता, राजनीतिज्ञ, प्रेमी। जिन्होंने समाज के नियमों का आनन्द लेते हुए यह सिखाया कि सामाजिक ढांचे में रहकर कैसे फला-फूला जा सकता है।”
बेटा सुनता रहा, चकित और विस्मित..

माँ ने ज्ञान की गंगा प्रवाहित रखी -
“नवां अवतार थे 'महात्मा बुद्ध', वे व्यक्ति जिन्होंने नृसिंह से उठे मानव के सही स्वभाव को खोजा। उन्होंने मानव द्वारा ज्ञान की अंतिम खोज की पहचान की।”

“..और अंत में दसवां अवतार 'कल्कि' आएगा। वह मानव जिस पर तुम काम कर रहे हो.. वह मानव, जो आनुवंशिक रूप से श्रेष्ठतम होगा।”
बेटा अपनी माँ को अवाक् होकर देखता रह गया..

अंत में वह बोल पड़ा-
“यह अद्भुत है माँ.. हिंदू दर्शन वास्तव में अर्थपूर्ण है!”

वेद, पुराण, ग्रंथ, उपनिषद इत्यादि सब अर्थपूर्ण हैं। सिर्फ आपका देखने का नज़रिया होना चाहिए। फिर चाहे वह धार्मिक हो या वैज्ञानिकता...!

Friday, June 8, 2018

लीला और शक्ति

एक गाँव में एक वृद्ध स्त्री रहती थीं । उसका कोई
नहीं था, वो गोबर के उपले बनाकर बेचती थी और उसी से
अपना गुजारा चलाती थीं | पर उस स्त्री की एक
विशेषता थी वो कृष्ण भक्त थीं , उठते बैठते कृष्ण नामजप
किया करती थीं यहाँ तक उपले बनाते समय भी | उस
गाँव के कुछ दुष्ट लोग उसकी भक्ति का उपहास करते और
एक दिन तो उन दुष्टों ने एक रात उस वृद्ध स्त्री के सारे
उपले चुरा लिए और आपस में कहने लगे कि अब देखें कृष्ण कैसे
इसकी सहयता करते हैं | सुबह जब वह उठीं तो देखती है
कि सारे उपले किसी ने चुरा लिए | वे मन ही मन हंसने
लगी और अपने कान्हा को कहने लगीं , “पहले माखन
चुराता था और मटकी फोड़
गोपियों को सताता था अब इस बुढ़िया के उपले
छुपा मुझे सताता है, ठीक है जैसी तेरी इच्छा” यह कह
उसने अगले दिन के लिए उपले बनाना आरंभ कर दिये |
दोपहर हो चली तो भूख लग गयी पर घर में कुछ खाने
को नहीं था, दो गुड की डली थीं अतः एक अपने मुह में
डाल पानी के कुछ घूंट ले लेटने चली गयी | भगवान
तो भक्त वत्सल होते हैं अतः अपने भक्त को कष्ट
होता देख वे विचलित हो जाते हैं , उनसे उस वृद्ध
साधिका के कष्ट सहन नहीं हो पाये |
सोचा उसकी सहायता करने से पहले उसकी परीक्षा ले
लेता हूँ अतः वे एक साधू का वेश धारण कर उसके घर पहुँच कुछ खाने को मांगने लगे , वृद्ध स्त्री को अपने घर आए एक साधू को देख आनंद तो हुआ पर घर में कुछ खाने को न था यह सोच दुख भी हुआ उसने गुड
की इकलौती डली बाबा को शीतल जल के साथ खाने
को दे दी | बाबा उस स्त्री के त्याग को देख प्रसन्न
हो गए और जब वृद्ध स्त्री ने
बाबा को अपना सारा वृतांत सुनाया तो बाबा उन्हें
सहायता का आश्वासन दे चले गए और गाँव के सरपंच के यहाँ पहुंचे | सरपंच से कहा , “सुना है इस गाँव के बाहर जो वृद्ध स्त्री रहती है उसके उपले किसी ने चुरा लिए, मेरे पास एक सिद्धि है यदि गाँव के सभी लोग अपने उपले ले आयें तो मैं अपनी सिद्धि के बल पर उस वृद्ध स्त्री के सारे उपले अलग कर दूंगा” | सरपंच एक भला व्यक्ति था उसे भी वृद्ध स्त्री के उपले चोरी होने का दुख था अतः उन्होने साधू बाबा रूपी कृष्ण की बात तुरंत
मान ली और गाँव में ढिंढोरा पिटवा दिया कि सब
अपने घर के उपले तुरंत गाँव की चौपाल पर लाकर रखें | जिन दुष्ट लोगों ने चोरी की थी उन्होंने भी वृद्ध स्त्री के
उपले अपने उपलों में मिलाकर उस ढेर में एकत्रित कर दिये |
उन्हें लगा कि सब उपले तो एक जैसे होते हैं अतः साधू
बाबा कैसे पहचान पाएंगे | दुर्जनों को ईश्वर
की लीला और शक्ति दोनों पर ही विश्वास
नहीं होता | साधू वेशधारी कृष्ण ने सब उपलों को कान
लगाकर वृद्ध स्त्री के उपले अलग कर दिये | वृद्ध स्त्री अपने उपलों को तुरंत पहचान गयी और
उसकी प्रसन्नता का तो ठिकाना ही नहीं था , वो
अपने उपले उठा , साधू बाबा को नमस्कार कर
चली गयी | जिन दुष्टों ने वृद्ध स्त्री के उपले चुराए थे उन्हें यह समझ में नहीं आया कि बाबा ने कान लगाकर उन
उपलों को कैसे पहचाना, अतः जब बाबा गाँव से कुछ दूर निकल आए तो वे दुष्ट, बाबा से इसका कारण जानने
पहुंचे , बाबा ने सरलता से कहा कि “वृद्ध स्त्री सतत ईश्वर
का नाम जप करती थी और उसके नाम में इतनी आर्तता थी कि वह उपलों में भी चला गया , कान लगाकर वे यह सुन रहे थे कि किन उपलों से कृष्ण का नाम
निकलता है और जिनसे कृष्ण का नाम निकल
रहा था उन्होने उन्हे अलग कर दिया” ।

Wednesday, June 6, 2018

तीन बीबीयाँ

गुरूजी विद्यालय से घर लौट रहे थे । रास्ते में एक नदी पड़ती थी । नदी पार करने लगे तो ना जाने क्या सूझा ,
एक पत्थर पर बैठ अपने झोले में से पेन और कागज निकाल अपने वेतन का  हिसाब  निकालने लगे । अचानक…..,
हाथ से पेन फिसला और डुबुक …. पानी में डूब गया । गुरूजी परेशान । आज ही सुबह पूरे पांच रूपये खर्च कर खरीदा था । कातर दृष्टि से कभी इधर कभी उधर देखते , पानी में उतरने का प्रयास करते , फिर डर कर कदम खींच लेते ।
एकदम नया पेन था , छोड़ कर जाना भी मुनासिब न था । अचानक……. पानी में एक तेज लहर उठी , और साक्षात् वरुण देव सामने थे । गुरूजी हक्के -बक्के । कुल्हाड़ी वाली कहानी याद आ गई । वरुण देव ने कहा , ”गुरूजी, क्यूँ इतने परेशान हैं । प्रमोशन , तबादला , वेतनवृद्धि ,क्या चाहिए ? गुरूजी अचकचाकर बोले , ” प्रभु ! आज ही सुबह एक पेन खरीदा था । पूरे पांच रूपये का । देखो ढक्कन भी मेरे हाथ में है । यहाँ पत्थर पर बैठा लिख रहा था कि पानी में गिर गया  प्रभु बोले , ” बस इतनी सी बात ! अभी निकाल लाता हूँ ।” प्रभु ने डुबकी लगाई , और चाँदी का एक चमचमाता पेन लेकर बाहर आ गए । बोले – ये है आपका पेन ? गुरूजी बोले – ना प्रभु । मुझ गरीब को कहाँ ये चांदी का पेन नसीब । ये मेरा नाहीं । प्रभु बोले – कोई नहीं , एक डुबकी और लगाता हूँ  डुबुक ….. इस बार प्रभु सोने का रत्न जडित पेन लेकर आये। बोले – “लीजिये गुरूजी , अपना पेन ।” गुरूजी बोले – ” क्यूँ मजाक करते हो प्रभु । इतना कीमती पेन और वो भी मेरा । मैं टीचर हूँ । थके हारे प्रभु ने कहा , ” चिंता ना करो गुरुदेव । अबके फाइनल डुबकी होगी । डुबुक ….  बड़ी देर बाद प्रभु उपर आये । हाथ में गुरूजी का जेल पेन लेकर ।बोले – ये है क्या ? गुरूजी चिल्लाए – हाँ यही है , यही है ।
प्रभु ने कहा – आपकी इमानदारी ने मेरा दिल जीत लिया गुरूजी । आप सच्चे गुरु हैं । आप ये तीनों पेन ले लो । गुरूजी ख़ुशी – ख़ुशी घर को चले ।

कहानी अभी बाकी है दोस्तों —
गुरूजी ने घर आते ही सारी कहानी पत्नी जी को सुनाई  चमचमाते हुवे कीमती पेन भी दिखाए । पत्नी को विश्वास ना हुवा , बोली तुम किसी का चुरा कर लाये हो । बहुत समझाने पर भी जब पत्नी जी ना मानी  तो गुरूजी उसे घटना स्थल की ओर ले चले । दोनों उस पत्थर पर बैठे ,  गुरूजी ने बताना शुरू किया कि कैसे – कैसे सब हुवा  पत्नी एक एक कड़ी को किसी शातिर पुलिसिये की तरह जोड़ रही थी कि  अचानक ……. डुबुक !!!  पत्नी का पैर फिसला , और वो गहरे पानी में समा गई । गुरूजी की आँखों के आगे तारे नाचने लगे । ये क्या हुवा ! जोर -जोर से रोने लगे । तभी अचानक पानी में ऊँची ऊँची लहरें उठने लगी । नदी का सीना चीरकर साक्षात वरुण देव प्रकट हुवे । बोले – क्या हुआ गुरूजी ? अब क्यूँ रो रहे हो ? गुरूजी ने रोते हु story प्रभु को सुनाई । प्रभु बोले – रोओ मत। धीरज रखो । मैं अभी आपकी पत्नी को निकाल कर लाता हूँ। प्रभु ने डुबकी लगाईं , और ….. थोड़ी देर में वो  कैटरीना को लेकर प्रकट हुवे ।  बोले –गुरूजी क्या यही आपकी पत्नी जी है ?? गुरूजी ने एक क्षण सोचा , और चिल्लाए – हाँ यही है , यही है । अब चिल्लाने की बारी प्रभु की थी । बोले – दुष्ट मास्टर । ठहर तुझे श्राप देता हूँ । गुरूजी बोले – माफ़ करें प्रभु । मेरी कोई गलती नहीं ।
अगर मैं इसे मना करता तो आप अगली डुबकी में प्रियंका चोपड़ा को लाते । मैं फिर भी मना करता तो आप मेरी पत्नी को लाते । फिर आप खुश होकर तीनों मुझे दे देते । अब आप ही बताओ भगवन ,  इस महंगाई के जमाने में 
7th pay Commission ने भी रुला दिया

अब मैं तीन – तीन बीबीयाँ कैसे पालता ।इन तीन तीन गृहलक्ष्मियों का बोझ प्रभू मुझसे नहीं उठेगा।
क्षमा करे प्रभू।
इसलिये सोचा , कैटरीना से ही काम चला लूँगा ।

Friday, June 1, 2018

प्रायश्चित के आंसू

सुनो खुशबू ..
मम्मी पापा आ रहे हैं कल ..... दस दिन
यही रूकेंगे.....एडजस्ट कर लेना....."राजेश ने खुशबू को
बैड पर लेटते हुए कहा।
"..कोई बात नही राजेश ... आने दिजिए आपको शिकायत का कोई मौका नही मिलेगा....."....खुशबू
ने रिप्लाई दिया .....

सुबह जब राजेश की आंख खुली ... खुशबू बिस्तर छोड़ चुकी थी। "चाय ले लो..खुशबू ने राजेश की तरफ चाय का कप बढाते हुए कहा..

अरे खुशबू... तुम आज इतनी जल्दी नहा ली..
हां तुमने ही तो रात को बताया था कि आज मम्मी पापा आने वाले हैं तो सोचा घर को थोड़ा अरेंज कर
लूं.....वैसे..किस वक्त तक आ जाएंगे वो लोग..
"दोपहर वाली गाड़ी से पहुंचेंगे चार तो बज ही जाऐंगे....
राजेश ने चाय का कप खत्म करते हुए जवाब दिया..

"खुशबू..देखना कभी पिछली बार की तरह....."नही
नही..पिछली बार जैसा कुछ भी नही होगा..खुशबू ने भी कप खत्म करते हुए राजेश को कहा और उठकर रसोई की तरफ बढ गई।.......
नाश्ता करने के बाद राजेश ने खुशबू से पूछा "..तुम तैयार नही हुई..क्या
बात..आज स्कूल की छुट्टी है..??.." नही..आज तुम
निकलो मैं आटो से पहुंच जाऊंगी..थोड़ा लेट
निकलूंगी..खुशबू ने लंच बाक्स थमाते हुए राजेश को
कहा।...."..बाय बाय..कहकर राजेश बाइक से आफिस
के लिए निकल गया। और खुशबू घर के काम में लग
गई......

"..मुझे तो बहुत डर लग रहा है मैं तुम्हारे कहने से राजेश
के पास जा तो रहा हूं लेकिन पिछली बार बहू से
जिस तरह खटपट हुई थी ...मेरा तो मन ही भर गया
।....ना जाने ये दस दिन कैसे जाने वाले हैं..राजेश के
पिताजी राजेश की मम्मी से कह रहे थे।...."..अजी..
भूल भी जाइये..बच्ची है.......कुछ हमारी भी तो
गलती थी....हम भी तो खुशबू से कुछ ज्यादा ही
उम्मीद लगाए बैठे थे....उन बातों को अब सालभर
बीत गया है..क्या पता कुछ बदलाव आ गया
हो...इंसान हर पल कुछ नया सीखता है....क्या पता
कौन सी ठोकर किस को क्या सिखा दे राजेश की
मां ने पिताजी को हौंसला देते हुए कहा......

दरअसल दो भाइयों में राजेश बड़ा था और श्रवण
छोटा।...राजेश गांव से दसवीं करके शहर आ गया आगे
पढने..... और श्रवण पढाई में कमजोर था इसलिए गांव
में ही पिताजी का खेती बाड़ी में हाथ बंटाने
लगा....राजेश बी टेक करके शहर में ही बीस हजार रू
की नौकरी करने लगा....खुशबू से कोचिंग सेन्टर में ही
राजेश की जान पहचान हुई थी यह बात मम्मी
पापा को राजेश ने खुशबू से शादी के कुछ दिन पहले
बताई....पिताजी कितने दिन तक नही माने थे इस
रिश्ते के लिए.....फिर भी बड़ा दिल रखकर जब
पिछली बार राजेश और खुशबू के पास शहर आए थे तो
मन में बड़ी उमंगे थी पर सात आठ दिन में ही खुशबू के
तेवर और बेटे की बेबसी के चलते वापस गांव की तरफ
हो लिए.....

"अरे भागवान..उठ जाओ..स्टेशन आ गया उतरना नही
है क्या.... राजेश के पिताजी की आवाज से माँ की
नींद टूटी ..सामान उठाकर दोनो स्टेशन से बाहर आ
गए और आटो में बैठकर दोनो राजेश के घर के लिए
रवाना हो गए..घर पहुंचे तो खुशबू घर पर ही
थी...जाते ही खुशबू ने दोनो के पैर छुए.....चाय
पिलाई ....नहाने के लिए गरम पानी किया ....
पिताजी नहाने चले गए और खुशबू रसोई में खाना
बनाने लगी। थोड़ी देर में राजेश भी आ गया।
फिर बैठकर सबने थोड़ी देर बातें की और खाना
खाया। अगले दिन सुबह पांच बजे पिताजी उठे तो
खुशबू पहले ही उठ चुकी थी पिताजी को उठते ही
गरम पानी पीने की आदत थी खुशबू ने पहले से ही
पिताजी के लिए पानी गरम कर रखा था नहा
धोकर पिताजी को मंदिर जाने की आदत थी..खुशबू
ने उनको जल से भरकर लौटा दे दिया..नाश्ता भी
पिताजी की पसंद का तैयार था..सबको नाश्ता
करवाकर खुशबू राजेश के साथ चली गई ...तो
पिताजी ने चैन की सांस ली..
चलो अब चार पांच घण्टे तो सूकून से निकलेंगे.....दिन
के खाने की तैयारी भी खुशबू करके गई थी...... स्कूल
से आते ही खुशबू फिर से रसोई में घुस गई ...
शाम को हम दोनों को लेकर खुशबू पास के पार्क में
गई वहां उसने हमारा परिचय वहां बैठे बुजुर्गों से
करवाया.....अगले दिन सण्डे था.... खुशबू , राजेश और
हम दोनो चिड़ियाघर देखने गए..हमारे लिए ताज्जुब
की बात ये थी कि प्रोग्राम खुशबू ने बनाया
था..खुशबू ने खूब अच्छे से चिड़ियाघर दिखाया और
शाम को इण्डिया गेट की सैर भी करवाई.....खाना
पीना भी हम सबने बाहर ही किया.. इस
खुशमिजाज रूटीन से पता ही नही चला वक्त कब
पंख लगाकर उड़ गया..
कहां तो हम सोच रहे थे कि दस दिन कैसे गुजरेंगे और
कहां पन्द्रह दिन बीत चुके थे...।
आखिर कल जब श्रवण का फोन आया कि फसल
तैयार हो गई है और काटने के लिए तैयार है तो हमें
अगले ही दिन गांव वापसी का प्रोग्राम बनाना
पड़ा।
रात का खाना खाने के बाद हम कमरे में सोने चले गए
तो खुशबू हमारे कमरे में आ गई उसकी आंखों से आंसू बह
रहे थे।
मैने पूछा.."क्या बात है बहू..रो क्यों रही हो.?.......
तो खुशबू ने पूछा "..पिताजी, मां जी.....पहले आप
लोग एक बात बताइये..पिछले पन्द्रह दिनों में कभी
आपको यह महसूस हुआ की आप अपनी बहू के पास है
या बेटी के पास......"नही बेटा सच कहूं तो तुमने
हमारा मन जीत लिया..हमें किसी भी पल यह नही
लगा की हम अपनी बहू के पास रह रहें हैं तुमने हमारा
बहुत ख्याल रखा लेकिन एक बात बताओ
बेटा......"तुम्हारे अंदर इतना बदलाव आया कैसे..??

"पिताजी..पिछले साल मेरे भाई की शादी हुई
थी।...मेरे मायके की माली हालात बहुत ज्यादा
बढिया नही है।...इन छुट्टियों में जब मैं वहां रहने गई
तो मैने अपने माता पिता को एक एक चीज के लिए
तरसते देखा..बात बात पर भाभी के हाथों तिरस्कृत
होते देखा..मेरा भाई चाहकर भी कुछ नही कर
सकता था।...मैं वहां उनके साथ हो रहे बर्ताव से बहुत
दुखी थी....उस वक्त मुझे अपनी करनी याद आ रही
थी..कि किस तरह का सलूक मैंने आप दोनो के साथ
किया था।
""किसी ने यह बात सच ही कही है कि जैसा बोओगे
वैसा काटोगे।""

मैं अपने मां बाप का भविष्य तो नही बदल सकती
लेकिन खुद को बदल कर मैं ये उम्मीद तो अपने आप में
जगा ही सकती हूं कि कभी मेरी भाभी में भी
बदलाव आएगा और मेरे मां बाप भी सुखी
होंगे......खुशबू की बात सुनकर मेरी आंखे भर आई।
मैने बहू को खींचकर गले से लगा लिया....."हां बेटा
अवश्य एक दिन अवश्य ऐसा होगा...

खुशबू अब भी रोए जा रही थी उसकी आंखों से जो
आंसू गिर रहे थे वो शायद उसके पिछली गलतियों के
प्रायश्चित के आंसू थे..

Wednesday, May 30, 2018

नर्क में जाने की छूट

एक बार एक व्यक्ति मरकर नर्क में पहुँचा, तो वहाँ उसने देखा कि प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी देश के नर्क में जाने  की छूट है । उसने सोचा, चलो अमेरिका वासियों के नर्क में जाकर देखें, जब वह वहाँ पहुँचा तो द्वार पर पहरेदार से उसने पूछा - क्यों भाई अमेरिकी नर्क में क्या-क्या होता है ? पहरेदार बोला - कुछ खास नहीं, सबसे पहले आपको एक इलेक्ट्रिक चेयर पर एक घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा,  फ़िर एक कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे  बरसायेगा...  ! यह सुनकरवह व्यक्ति बहुत घबराया और उसने रूस के नर्क  की ओर रुख किया, और वहाँ के पहरेदार से भी वही पूछा, रूस के पहरेदार ने भी लगभग  वही वाकया सुनाया जो वह अमेरिका के नर्क  में सुनकर आया था । फ़िर वह व्यक्ति एक-  एक करके सभी देशों के नर्कों के दरवाजे  जाकर आया, सभी जगह उसे  भयानक किस्से सुनने को मिले । अन्त में  जब वह एक जगह पहुँचा, देखा तो दरवाजे पर लिखा था "भारतीय नर्क" और उस दरवाजे के बाहर उस नर्क में  जाने के लिये लम्बी लाईन लगी थी, लोग भारतीय नर्क में जाने को उतावले हो रहे थे,  उसने सोचा कि जरूर यहाँ सजा कम मिलती होगी... तत्काल उसने पहरेदार से  पूछा कि सजा क्या है ? पहरेदार ने  कहा - कुछ खास नहीं...सबसे पहले  आपको एक इलेक्ट्रिक चेयर पर एक  घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा, फ़िर एक  कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर  आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे बरसायेगा...  ! चकराये हुए व्यक्ति ने उससे पूछा - यही सब तो बाकी देशों के नर्क  में भी हो रहा है, फ़िर यहाँ इतनी भीड  क्यों है ? पहरेदार बोला - इलेक्ट्रिक चेयर
 तो वही है, लेकिन बिजली नहीं है, कीलों वाले बिस्तर में से कीलें कोई निकाल ले गया है, और कोडे़ मारने वाला दैत्य
सरकारी कर्मचारी है, आता है, दस्तखत  करता है और चाय-नाश्ता करने चला जाता है...और कभी गलती से  जल्दी वापस आ भी गया तो एक-दो कोडे़  मारता है और पचास लिख देता है...चलो आ
 जाओ अन्दर !!!

कलम का उपयोग

जब भगवान राम के राजतिलक में निमंत्रण छुट जाने से नाराज भगवान् चित्रगुप्त ने रख दी  थी कलम !!उस समय परेवा काल शुरू हो चुका था 

 परेवा के दिन कायस्थ समाज कलम का प्रयोग नहीं करते हैं  यानी किसी भी तरह का का हिसाब - किताब नही करते है आखिर ऐसा क्यूँ  है ?
कि पूरी दुनिया में कायस्थ समाज के लोग  दीपावली के दिन पूजन के  बाद कलम रख देते है और फिर  यमदुतिया के दिन  कलम- दवात  के पूजन के बाद ही उसे उठाते है I

इसको लेकर सर्व समाज में कई सवाल अक्सर लोग कायस्थों से करते है ?
ऐसे में अपने ही इतिहास से अनभिग्य कायस्थ युवा पीढ़ी इसका कोई समुचित उत्तर नहीं दे पाती है I जब इसकी खोज की गई तो इससे सम्बंधित एक बहुत रोचक घटना का संदर्भ हमें किवदंतियों में मिला I

कहते है जब भगवान् राम दशानन रावण को मार कर अयोध्या लौट रहे थे, तब उनके खडाऊं को राजसिंहासन पर रख कर राज्य चला रहे राजा भरत ने  गुरु वशिष्ठ को भगवान् राम के राज्यतिलक के लिए सभी देवी देवताओं को सन्देश भेजने की  व्यवस्था करने को कहा I गुरु वशिष्ठ ने ये काम अपने शिष्यों को सौंप कर राज्यतिलक की तैयारी शुरू कर दीं I
ऐसे में जब राज्यतिलक में सभी देवीदेवता आ गए तब भगवान् राम ने अपने अनुज भरत से पूछा भगवान चित्रगुप्त नहीं दिखाई दे रहे है इस पर जब खोज बीन हुई तो पता चला की गुरु वशिष्ठ के शिष्यों ने भगवान चित्रगुप्त को निमत्रण पहुंचाया ही नहीं था जिसके चलते भगवान् चित्रगुप्त नहीं आये I इधर भगवान् चित्रगुप्त सब जान  चुके थे और इसे प्रभु राम की महिमा समझ रहे थे । फलस्वरूप उन्होंने गुरु वशिष्ठ की इस भूल को अक्षम्य मानते हुए यमलोक में सभी प्राणियों का लेखा जोखा लिखने वाली कलम को उठा कर किनारे रख दिया I
सभी देवी देवता जैसे ही राजतिलक से लौटे तो पाया की स्वर्ग और नरक के सारे काम रुक गये थे , प्राणियों का का लेखा जोखा ना लिखे जाने के चलते ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा था की किसको कहाँ भेजे I 
*#तब गुरु वशिष्ठ की इस गलती को समझते हुए भगवान राम ने अयोध्या में भगवान् विष्णु द्वारा स्थापित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर 
( श्री अयोध्या महात्मय में भी इसे श्री धर्म हरि मंदिर कहा गया है धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्म-हरि जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होता।) 
*में गुरु वशिष्ठ के साथ जाकर भगवान चित्रगुप्त की स्तुति की और गुरु वशिष्ठ की गलती के लिए क्षमायाचना की, जिसके बाद  भगवान राम के आग्रह मानकर भगवान चित्रगुप्त ने लगभग ४ पहर (२४ घंटे बाद ) पुन: *कलम दवात की पूजा करने के पश्चात उसको उठाया और प्राणियों का लेखा जोखा लिखने का कार्य आरम्भ किया I कहते तभी से कायस्थ दीपावली की पूजा के पश्चात कलम को रख देते हैं और *#यमदुतिया के दिन भगवान चित्रगुप्त का विधिवत कलम दवात पूजन करके ही कलम को धारण करते है*

कहते है तभी से कायस्थ ब्राह्मणों के लिए भी पूजनीय हुए और इस घटना के पश्चात मिले वरदान के फलस्वरूप सबसे दान लेने वाले ब्राह्मणों से  दान लेने का हक़ सिर्फ कायस्थों को ही है I

Monday, May 28, 2018

आदतें नस्लों का पता देती हैं

एक बादशाह के दरबार मे एक अजनबी नौकरी की तलब के लिए हाज़िर हुआ ।

क़ाबलियत पूछी गई, 
कहा, 
"सियासी हूँ ।" ( अरबी में सियासी  अक्ल ओ तदब्बुर से मसला हल करने वाले मामला फ़हम को कहते हैं ।) 

बादशाह के पास सियासतदानों की भरमार थी, उसे खास "घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज" बना लिया। 
चंद दिनों बाद बादशाह ने उस से अपने सब से महंगे और अज़ीज़ घोड़े के मुताल्लिक़ पूछा, 
उसने कहा, "नस्ली नही  हैं ।"

बादशाह को ताज्जुब हुआ, उसने जंगल से साईस को बुला कर दरियाफ्त किया..
उसने बताया, घोड़ा नस्ली हैं, लेकिन इसकी पैदायश पर इसकी मां मर गई थी, ये एक गाय का दूध पी कर उसके साथ पला है। 

बादशाह ने अपने मसूल को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं हैं ?" 
 
""उसने कहा "जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे करके, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुह में लेकर सर उठा लेता हैं ।"""

बादशाह उसकी फरासत से बहुत मुतास्सिर हुआ, उसने मसूल के घर अनाज ,घी, भुने दुंबे, और परिंदों का आला गोश्त बतौर इनाम भिजवाया। 

और उसे मलिका के महल में तैनात कर दिया। 
चंद दिनो बाद , बादशाह ने उस से बेगम के बारे में राय मांगी, उसने कहा, "तौर तरीके तो मलिका जैसे हैं लेकिन शहज़ादी नहीं हैं ।"

बादशाह के पैरों तले जमीन निकल गई, हवास दुरुस्त हुए तो अपनी सास को बुलाया, मामला उसको बताया, सास ने कहा "हक़ीक़त ये हैं,  कि आपके वालिद ने मेरे खाविंद से हमारी बेटी की पैदायश पर ही रिश्ता मांग लिया था, लेकिन हमारी बेटी 6 माह में ही मर गई थी, लिहाज़ा हम ने आपकी बादशाहत से करीबी ताल्लुक़ात क़ायम करने के लिए किसी और कि बच्ची को अपनी बेटी बना लिया।"

बादशाह ने अपने मुसाहिब से पूछा "तुम को कैसे इल्म हुआ ?"

""उसने कहा, "उसका खादिमों के साथ सुलूक जाहिलों से भी बदतर हैं । एक खानदानी इंसान का दूसरों से व्यवहार करने का एक मुलाहजा एक अदब होता हैं, जो शहजादी में बिल्कुल नहीं । """

बादशाह फिर उसकी फरासत से खुश हुआ और बहुत से अनाज , भेड़ बकरियां बतौर इनाम दीं साथ ही उसे अपने दरबार मे मुतय्यन कर दिया। 

कुछ वक्त गुज़रा, मुसाहिब को बुलाया,अपने बारे में दरियाफ्त किया ।

मुसाहिब ने कहा "जान की अमान ।"

बादशाह ने वादा किया । 

उसने कहा, "न तो आप बादशाह ज़ादे हो न आपका चलन बादशाहों वाला है।"

बादशाह को ताव आया, मगर जान की अमान दे चुका था, सीधा अपनी वालिदा के महल पहुंचा ।

वालिदा ने कहा, 
"ये सच है, तुम एक चरवाहे के बेटे हो, हमारी औलाद नहीं थी तो तुम्हे लेकर हम ने पाला ।"

बादशाह ने मुसाहिब को बुलाया और पूछा , बता, "तुझे कैसे इल्म हुआ ????"

उसने कहा "बादशाह जब किसी को "इनाम ओ इकराम" दिया करते हैं, तो हीरे मोती जवाहरात की शक्ल में देते हैं....लेकिन आप भेड़, बकरियां, खाने पीने की चीजें इनायत करते हैं...ये असलूब बादशाह ज़ादे का नही,  किसी चरवाहे के बेटे का ही हो सकता है।" 
किसी इंसान के पास कितनी धन दौलत, सुख समृद्धि, रुतबा, इल्म, बाहुबल हैं ये सब बाहरी मुल्लम्मा हैं । 
इंसान की असलियत, उस के खून की किस्म उसके व्यवहार, 
उसकी नियत से होती हैं...

*तब चाय बेचने बाले की सोच, पकौडें बेचने से ऊपर नही उठ सकती,

**इंसान की हैसियत बदल जाती है,
पर समझ और औकात नहीं..

Friday, May 25, 2018

स्त्री की चाहत

एक विद्वान को फांसी लगने वाली थी।

राजा ने कहा, आपकी जान बख्श दुंगा यदि सही उत्तर बता देगा तो
प्रशन : आखिर स्त्री चाहती क्या है?

विद्वान ने कहा, मोहलत मिले तो पता कर के बता सकता हूँ।

राजा ने एक साल की मोहलत दे दी और साथ में बताया कि अगर उतर नही मिला तो फांसी पर चढा दिये जाओगे,

विद्वान बहुत घूमा बहुत लोगों से मिला पर कहीं से भी कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला।

आखिर में किसी ने कहा दूर एक जंगल में एक चुड़ैल रहती है वही बता सकती है।

चुड़ैल ने कहा कि मै इस शर्त पर बताउंगी  यदि तुम मुझसे शादी करो।

उसने सोचा, जान बचाने के लिए शादी की सहमति देदी।

शादी होने के बाद चुड़ैल ने कहा, चूंकि तुमने मेरी बात मान ली है, तो मैंने तुम्हें खुश करने के लिए फैसला किया है कि 12 घन्टे मै चुड़ैल और 12 घन्टे खूबसूरत परी बनके रहूंगी,
अब तुम ये बताओ कि दिन में चुड़ैल रहूँ या रात को।
उसने सोचा यदि वह दिन में चुड़ैल हुई तो दिन नहीं कटेगा, रात में हुई तो रात नहीं कटेगी।

अंत में उस विद्वान कैदी ने कहा, जब तुम्हारा दिल  करे परी बन जाना, जब दिल करे चुड़ैल बनना।

ये बात सुनकर चुड़ैल ने प्रसन्न हो के कहा, चूंकि तुमने मुझे अपनी मर्ज़ी की  करने की छूट देदी है, तो मै हमेशा ही परी बन के रहा करूँगी।

यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है।

स्त्री अपनी मर्जी का करना चाहती है। 

*यदि स्त्री को अपनी मर्ज़ी का करने देंगे तो*,

*वो परी बनी रहेगी वरना चुड़ैल*

Wednesday, May 23, 2018

भाग्य

एक सेठ जी थे
जिनके पास काफी दौलत थी.
सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े घर में की थी. 
परन्तु बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण उसका पति जुआरी, शराबी निकल गया.  
जिससे सब धन समाप्त हो गया. 
 बेटी की यह हालत देखकर सेठानी जी रोज सेठ जी से कहती कि आप दुनिया की मदद करते हो, 
मगर अपनी बेटी परेशानी में होते हुए उसकी मदद क्यों नहीं करते हो?
सेठ जी कहते कि 
"जब उनका भाग्य उदय होगा तो अपने आप सब मदद करने को तैयार हो जायेंगे..."
एक दिन सेठ जी घर से बाहर गये थे कि, तभी उनका दामाद घर आ गया.
सास ने दामाद का आदर-सत्कार किया और बेटी की मदद करने का विचार उसके मन में आया कि क्यों न मोतीचूर के लड्डूओं में अर्शफिया रख दी जाये... 

यह सोचकर सास ने लड्डूओ के बीच में अर्शफिया दबा कर रख दी और दामाद को टीका लगा कर विदा करते समय पांच किलों शुद्ध देशी घी के लड्डू, जिनमे अर्शफिया थी, दिये...
दामाद लड्डू लेकर घर से चला,
दामाद ने सोचा कि इतना वजन कौन लेकर जाये क्यों न यहीं मिठाई की दुकान पर बेच दिये जायें और दामाद ने वह लड्डुयों का पैकेट मिठाई वाले को बेच दिया और पैसे जेब में डालकर चला गया.
उधर सेठ जी बाहर से आये तो उन्होंने सोचा घर के लिये मिठाई की दुकान से मोतीचूर के लड्डू लेता चलू और सेठ जी ने दुकानदार से लड्डू मांगे...मिठाई वाले ने वही लड्डू का पैकेट सेठ जी को वापिस बेच दिया. 
सेठ जी लड्डू लेकर घर आये.. सेठानी ने जब लड्डूओ का वही पैकेट देखा तो सेठानी ने लड्डू फोडकर देखे, अर्शफिया देख कर अपना माथा पीट लिया
सेठानी ने सेठ जी को दामाद के आने से लेकर जाने तक और लड्डुओं में अर्शफिया छिपाने की बात कह डाली...
सेठ जी बोले कि भाग्यवान मैंनें पहले ही समझाया था कि अभी उनका भाग्य नहीं जागा... 
देखा मोहरें ना तो दामाद के भाग्य में थी और न ही मिठाई वाले के भाग्य में.
इसलिये कहते हैं कि भाग्य से 
ज्यादा
और... 
समय
से पहले न किसी को कुछ मिला है और न मीलेगा!ईसी लिये ईशवर जितना दे उसी मै संतोष करो...
झूला जितना पीछे जाता है, उतना ही आगे आता है।एकदम बराबर।
सुख और दुख दोनों ही जीवन में बराबर आते हैं।
जिंदगी का झूला पीछे जाए, तो डरो मत, वह आगे भी आएगा।
बहुत ही खूबसूरत लाईनें.
.किसी की मजबूरियाँ पे न हँसिये,
कोई मजबूरियाँ ख़रीद कर नहीं लाता..!
डरिये वक़्त की मार से,बुरा वक़्त किसीको बताकर नही आता..!
अकल कितनी भी तेज ह़ो,नसीब के बिना नही जीत सकती..!
बीरबल अकलमंद होने के बावजूद,कभी बादशाह नही बन सका...!!
""ना तुम अपने आप को गले लगा सकते हो, ना ही तुम अपने कंधे पर सर रखकर रो सकते हो एक दूसरे के लिये जीने का नाम ही जिंदगी है!
इसलिये वक़्त उन्हें दो जो तुम्हे चाहते हों दिल से!
रिश्ते पैसो के मोहताज़ नहीं होते क्योकि कुछ रिश्ते मुनाफा नहीं देते पर जीवन अमीर जरूर बना देते है!!