Tuesday, October 31, 2017

नज़रिये

एक व्यक्ति काफी दिनों से चिंतित चल रहा था जिसके कारण वह काफी चिड़चिड़ा तथा तनाव में रहने लगा था। वह इस बात से परेशान था कि घर के सारे खर्चे उसे ही उठाने पड़ते हैं, पूरे परिवार की जिम्मेदारी उसी के ऊपर है, किसी ना किसी रिश्तेदार का उसके यहाँ आना जाना लगा ही रहता है, उसे बहुत ज्यादा आयकर चुकाना पड़ता है आदि - आदि*।

*इन्ही बातों को सोच सोच कर वह काफी परेशान रहता था तथा बच्चों को अक्सर डांट देता था तथा अपनी पत्नी से भी ज्यादातर उसका किसी न किसी बात पर झगड़ा चलता रहता था*।

*एक दिन उसका बेटा उसके पास आया और बोला पिताजी मेरा स्कूल का होमवर्क करा दीजिये, वह व्यक्ति पहले से ही तनाव में था तो उसने बेटे को डांट कर भगा दिया लेकिन जब थोड़ी देर बाद उसका गुस्सा शांत हुआ तो वह बेटे के पास गया तो देखा कि बेटा सोया हुआ है और उसके हाथ में उसके होमवर्क की कॉपी है। उसने कॉपी लेकर देखी और जैसे ही उसने कॉपी नीचे रखनी चाही, उसकी नजर होमवर्क के टाइटल पर पड़ी*।

*होमवर्क का टाइटल था*
〰〰〰〰〰〰

 *"वे चीजें जो हमें शुरू में अच्छी नहीं लगतीं लेकिन बाद में वे अच्छी ही होती हैं"।*

*इस टाइटल पर बच्चे को एक पैराग्राफ लिखना था जो उसने लिख लिया था। उत्सुकतावश उसने बच्चे का लिखा पढना शुरू किया बच्चे ने लिखा था* •••

● *मैं अपने फाइनल एग्जाम को बहुंत धन्यवाद् देता हूँ क्योंकि शुरू में तो ये बिलकुल अच्छे नहीं लगते लेकिन इनके बाद स्कूल की छुट्टियाँ पड़ जाती हैं*।

● *मैं ख़राब स्वाद वाली कड़वी दवाइयों को बहुत धन्यवाद् देता हूँ क्योंकि शुरू में तो ये कड़वी लगती हैं लेकिन ये मुझे बीमारी से ठीक करती हैं*।

● *मैं सुबह - सुबह जगाने वाली उस अलार्म घड़ी को बहुत धन्यवाद् देता हूँ जो मुझे हर सुबह बताती है कि मैं जीवित हूँ*।

● *मैं ईश्वर को भी बहुत धन्यवाद देता हूँ जिसने मुझे इतने अच्छे पिता दिए क्योंकि उनकी डांट मुझे शुरू में तो बहुत बुरी लगती है लेकिन वो मेरे लिए खिलौने लाते हैं, मुझे घुमाने ले जाते हैं और मुझे अच्छी अच्छी चीजें खिलाते हैं और मुझे इस बात की ख़ुशी है कि मेरे पास पिता हैं क्योंकि मेरे दोस्त सोहन के तो पिता ही नहीं हैं*।

*बच्चे का होमवर्क पढने के बाद वह व्यक्ति जैसे अचानक नींद से जाग गया हो। उसकी सोच बदल सी गयी। बच्चे की लिखी बातें उसके दिमाग में बार बार घूम रही थी। खासकर वह अन्तिम पंक्ति। उसकी नींद उड़ गयी थी। फिर वह व्यक्ति थोडा शांत होकर बैठा और उसने अपनी परेशानियों के बारे में सोचना शुरू किया*।

●● *मुझे घर के सारे खर्चे उठाने पड़ते हैं, इसका मतलब है कि मेरे पास घर है और ईश्वर की कृपा से मैं उन लोगों से बेहतर स्थिति में हूँ जिनके पास घर नहीं है*।

●● *मुझे पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है, इसका मतलब है कि मेरा परिवार है, बीवी बच्चे हैं और ईश्वर की कृपा से मैं उन लोगों से ज्यादा खुशनसीब हूँ जिनके पास परिवार नहीं हैं और वो दुनियाँ में बिल्कुल अकेले हैं*।

●● *मेरे यहाँ कोई ना कोई मित्र या रिश्तेदार आता जाता रहता है, इसका मतलब है कि मेरी एक सामाजिक हैसियत है और मेरे पास मेरे सुख दुःख में साथ देने वाले लोग हैं*।

●● *मैं बहुत ज्यादा आयकर चुकाता हूँ, इसका मतलब है कि मेरे पास अच्छी नौकरी/व्यापार है और मैं उन लोगों से बेहतर हूँ जो बेरोजगार हैं या पैसों की वजह से बहुत सी चीजों और सुविधाओं से वंचित हैं*।

*हे ! मेरे भगवान् ! तेरा बहुंत बहुंत शुक्रिया ••• मुझे माफ़ करना, मैं तेरी कृपा को पहचान नहीं पाया।*

_*इसके बाद उसकी सोच एकदम से बदल गयी, उसकी सारी परेशानी, सारी चिंता एक दम से जैसे ख़त्म हो गयी। वह एकदम से बदल सा गया। वह भागकर अपने बेटे के पास गया और सोते हुए बेटे को गोद में उठाकर उसके माथे को चूमने लगा और अपने बेटे को तथा ईश्वर को धन्यवाद देने लगा*।_

*हमारे सामने जो भी परेशानियाँ हैं, हम जब तक उनको नकारात्मक नज़रिये से देखते रहेंगे तब तक हम परेशानियों से घिरे रहेंगे लेकिन जैसे ही हम उन्हीं चीजों को, उन्ही परिस्थितियों को सकारात्मक नज़रिये से देखेंगे, हमारी सोच एकदम से बदल जाएगी, हमारी सारी चिंताएं, सारी परेशानियाँ, सारे तनाव एक दम से ख़त्म हो जायेंगे और हमें मुश्किलों से निकलने के नए - नए रास्ते दिखाई देने लगेंगे।*

Saturday, October 28, 2017

रात को ढाई बजे

रात के एक बजा था, एक सेठ को नींद नहीं आ रही थी,
वह घर में चक्कर पर चक्कर लगाये जा रहा था।
पर चैन नहीं पड़ रहा था ।
आखिर मैं थक कर नीचे उतर आया और कार निकाली
 शहर की सड़कों पर निकल गया। रास्ते में एक मंदिर दिखा सोचा थोड़ी देर इस मंदिर में जाकर भगवान के पास बैठता हूँ। 
प्रार्थना करता हूं तो शायद शांति मिल जाये।
वह सेठ मंदिर के अंदर गया तो देखा, एक दूसरा आदमी पहले से ही भगवान की मूर्ति के सामने बैठा था, मगर उसका उदास चेहरा, आंखों में करूणा दर्श रही थी।
सेठ ने पूछा " क्यों भाई इतनी रात को मन्दिर में क्या कर रहे हो ?"
आदमी ने कहा " मेरी पत्नी अस्पताल में है, सुबह यदि उसका आपरेशन नहीं हुआ तो वह मर जायेगी और मेरे पास आपरेशन के लिए पैसा नहीं है "
उसकी बात सुनकर सेठ ने जेब में जितने रूपए थे  वह उस आदमी को दे दिए। अब गरीब आदमी के चहरे पर चमक आ गईं थीं ।
सेठ ने अपना कार्ड दिया और कहा इसमें फोन नम्बर और पता भी है और जरूरत हो तो निसंकोच बताना।
उस गरीब आदमी ने कार्ड वापिस दे दिया और कहा
"मेरे पास उसका पता है " इस पते की जरूरत नहीं है सेठजी
आश्चर्य से सेठ ने कहा "किसका पता है भाई
"उस गरीब आदमी ने कहा
"जिसने रात को ढाई बजे आपको यहां भेजा उसका"

Friday, October 27, 2017

कजूंस सेठ

एक दिन एक बहुत बड़े कजूंस सेठ के घर में कोई मेहमान आया
कजूंस ने अपने बेटे से कहा,
आधा किलो बेहतरीन मीट ले आओ। बेटा बाहर गया और कई घंटों बाद वापस आया।
कंजूस ने पूछा मीट कहाँ है।
बेटे ने कहना शुरू किया-" अरे पिताजी, मैं मीट की दुकान पर गया और कसाई से बोला कि सबसे अच्छा मीट दे दो। कसाई ने कहा कि ऐसा मीट दूंगा बिल्कुल मक्खन जैसा।
फिर मैंने सोचा कि क्यों न मक्खन ही ले लूं। मैं मक्खन लेने दुकान गया और बोला कि सबसे बढ़िया मक्खन दो। दुकान वाला बोला कि ऐसा मक्खन दूंगा बिल्कुल शहद जैसा।
मैने सोचा क्यों न शहद ही ले लूं। मै फिर गया शहद वाले के पास और उससे कहा कि सबसे मस्त वाला शहद चाहिए। वो बोला ऐसा शहद दूंगा बिल्कुल पानी जैसा साफ।
तो पिताजी फिर मैंने सोचा कि पानी तो अपने घर पर ही है और मैं चला आया खाली हाथ।
कंजूस बहुत खुश हुआ और अपने बेटे को शाबासी दी। लेकिन तभी उसके मन में कुछ शंका उतपन्न हुई।

"लेकिन बेटे तू इतनी देर घूम कर आया। चप्पल तो घिस गयी होंगी।"
"पिताजी ये तो उस मेहमान की चप्पल हैं जो घर पर आया है।"

Monday, October 23, 2017

सही रास्ते

एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा की प्रभु मैंने पृथ्वी पर देखा है कि जो व्यक्ति पहले से ही अपने प्रारब्ध से दुःखी है आप उसे और ज्यादा दुःख प्रदान करते हैं और जो सुख में है आप उसे दुःख नहीं देते है। भगवान ने इस बात को समझाने के लिए माता पार्वती को धरती पर चलने के लिए कहा और दोनों ने इंसानी रूप में पति-पत्नी का रूप लिया और एक गावं के पास डेरा जमाया । शाम के समय भगवान ने माता पार्वती से कहा की हम मनुष्य रूप में यहां आए है इसलिए यहां के नियमों का पालन करते हुए हमें यहां भोजन करना होगा। इसलिए मैं भोजन कि सामग्री की व्यवस्था करता हूं, तब तक तुम भोजन बनाओ।
जब भगवान के जाते ही माता पार्वती रसोई में चूल्हे को बनाने के लिए बाहर से ईंटें लेने गईं और गांव में कुछ जर्जर हो चुके मकानों से ईंटें लाकर चूल्हा तैयार कर दिया। चूल्हा तैयार होते ही भगवान वहां पर बिना कुछ लाए ही प्रकट हो गए। माता पार्वती ने उनसे कहा आप तो कुछ लेकर नहीं आए, भोजन कैसे बनेगा। भगवान बोले - पार्वती अब तुम्हें इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। भगवान ने माता पार्वती से पूछा की तुम चूल्हा बनाने के लिए इन ईटों को कहा से लेकर आई तो माता पार्वती ने कहा - प्रभु इस गावं में बहुत से ऐसे घर भी हैं जिनका रख रखाव सही ढंग से नहीं हो रहा है। उनकी जर्जर हो चुकी दीवारों से मैं ईंटें निकाल कर ले आई। भगवान ने फिर कहा - जो घर पहले से ख़राब थे तुमने उन्हें और खराब कर दिया। तुम ईंटें उन सही घरों की दीवार से भी तो ला सकती थीं।माता पार्वती बोली - प्रभु उन घरों में रहने वाले लोगों ने उनका रख रखाव बहुत सही तरीके से किया है और वो घर सुंदर भी लग रहे हैं
ऐसे में उनकी सुंदरता को बिगाड़ना उचित नहीं होता।भगवान बोले - पार्वती यही तुम्हारे द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर है। जिन लोगो ने अपने घर का रख रखाव अच्छी तरह से किया है यानि सही कर्मों से अपने जीवन को सुंदर बना रखा है उन लोगों को दुःख कैसे हो सकता है।मनुष्य के जीवन में जो भी सुखी है वो अपने कर्मों के द्वारा सुखी है, और जो दुखी है वो अपने कर्मों के द्वारा दुखी है । इसलिए हर एक मनुष्य को अपने जीवन में ऐसे ही कर्म करने चाहिए की, जिससे इतनी मजबूत व खूबसूरत इमारत खड़ी हो कि कभी भी कोई भी उसकी एक ईंट भी निकालने न पाए। प्रिय बंधुओ व मित्रो, यह काम जरा भी मुश्किल नहीं है। केवल सकरात्मक सोच और निः स्वार्थ भावना की आवश्यकता है । इसलिए जीवन में हमेशा सही रास्ते का ही चयन करें और उसी पर चलें।
सीख: 1.हमेशा अच्छे कर्म करें।
2. जीवन में हमेशा सही रास्ते का चयन करें

Friday, October 20, 2017

भ्रम


एक बार हनुमान जी ने प्रभु श्रीराम से कहा कि अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर सीता माँ को मारने के लिए दौड़ा, तब मुझे लगा कि इसकी तलवार छीन कर इसका सिर काट लेना चाहिये, किन्तु अगले ही क्षण मैंने देखा कि मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया, यह देखकर मैं गदगद् हो गया...

ओह प्रभू आपने कैसी शिक्षा दी, यदि मैं कूद पड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मैं न होता तो क्या होता ?

बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मुझे भी लगता कि यदि मैं न होता तो माँ सीता को कौन बचाता ? पर आपने उन्हें बचाया ही नही, बल्कि बचाने का काम रावण की पत्नी को ही सौंप दिया, तब मैं समझ गया कि आप जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं...

आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बंदर आया हुआ है और वह लंका जलायेगा... तो मैं बड़ी चिंता मे पड़ गया कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नहीं है और त्रिजटा कह रही है...तो मैं क्या करुँ ?

पर जब रावण के सैनिक तलवार लेकर मुझे मारने के लिये दौड़े तो मैंने अपने को बचाने की तनिक भी चेष्टा नहीं की, और जब विभीषण ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो मैं समझ गया कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय भी कर दिया है...

आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नहीं जायेगा पर पूंछ में  कपड़ा लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाये... तो मैं गदगद् हो गया कि उस लंका वाली संत त्रिजटा की बात सच होने जा रही है...वरना लंका को जलाने के लिए मैं कहाँ से घी, तेल, कपड़ा लाता और कहाँ आग ढूँढ़ता ?
पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया...

जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है ?

इसलिये संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं...

इसलिये ऐसा भ्रम पालना उचित नहीं है कि मैं न होता तो यह कार्य कैसे होता और वह कार्य कैसे होता ?

Tuesday, October 17, 2017

प्रणाम का महत्व

महाभारत का युद्ध चल रहा था -
एक दिन दुर्योधन के व्यंग्य से आहत होकर "भीष्म पितामह" घोषणा कर देते हैं कि -

"मैं कल पांडवों का वध कर दूँगा"

उनकी घोषणा का पता चलते ही पांडवों के शिविर में बेचैनी बढ़ गई -

भीष्म की क्षमताओं के बारे में सभी को पता था इसलिए सभी किसी अनिष्ट की आशंका से परेशान हो गए|

तब -

श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा अभी मेरे साथ चलो -

श्री कृष्ण द्रौपदी को लेकर सीधे भीष्म पितामह के शिविर में पहुँच गए -

शिविर के बाहर खड़े होकर उन्होंने द्रोपदी से कहा कि - अन्दर जाकर पितामह को प्रणाम करो -

द्रौपदी ने अन्दर जाकर पितामह भीष्म को प्रणाम किया तो उन्होंने - 
"अखंड सौभाग्यवती भव" का आशीर्वाद दे दिया , फिर उन्होंने द्रोपदी से पूछा कि !!

"वत्स, तुम इतनी रात में अकेली यहाँ कैसे आई हो, क्या तुमको श्री कृष्ण यहाँ लेकर आये है" ?

तब द्रोपदी ने कहा कि -

"हां और वे कक्ष के बाहर खड़े हैं" तब भीष्म भी कक्ष के बाहर आ गए और दोनों ने एक दूसरे से प्रणाम किया -

भीष्म ने कहा -

"मेरे एक वचन को मेरे ही दूसरे वचन से काट देने का काम श्री कृष्ण ही कर सकते है"

शिविर से वापस लौटते समय श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि -

*"तुम्हारे एक बार जाकर पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पतियों को जीवनदान मिल गया है "* -

*" अगर तुम प्रतिदिन भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य, आदि को प्रणाम करती होती और दुर्योधन- दुःशासन, आदि की पत्नियां भी पांडवों को प्रणाम करती होंती, तो शायद इस युद्ध की नौबत ही न आती "* -
......तात्पर्य्......

वर्तमान में हमारे घरों में जो इतनी समस्याए हैं उनका भी मूल कारण यही है कि -

*"जाने अनजाने अक्सर घर के बड़ों की उपेक्षा हो जाती है "*

*" यदि घर के बच्चे और बहुएँ प्रतिदिन घर के सभी बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें तो, शायद किसी भी घर में कभी कोई क्लेश न हो "*

बड़ों के दिए आशीर्वाद कवच की तरह काम करते हैं उनको कोई "अस्त्र-शस्त्र" नहीं भेद सकता -

"निवेदन 🙏 सभी इस संस्कृति को सुनिश्चित कर नियमबद्ध करें तो घर स्वर्ग बन जाय।"

*क्योंकि*:-

*प्रणाम प्रेम है।*
*प्रणाम अनुशासन है।*
प्रणाम शीतलता है।              
प्रणाम आदर सिखाता है।
*प्रणाम से सुविचार आते है।*
प्रणाम झुकना सिखाता है।
प्रणाम क्रोध मिटाता है।
प्रणाम आँसू धो देता है।
*प्रणाम अहंकार मिटाता है।*
*प्रणाम हमारी संस्कृति है।*

Saturday, October 14, 2017

Women Empowerment Story

ये कहानी है, 62 वर्षीय कुमकुम भान्ति की, जो बेसिक शिक्षा विभाग के अन्तर्गत एक प्राइमरी स्कूल में 44+ साल से कार्यरत हैं। ये एक मिसाल हैं अपने साथ की और आने वाली पीढ़ियों की बेटियों के लिए। अपनी मेहनत और लगन से इन्होंने साबित किया है कि एक बेटी किसी भी वक़्त में, किसी भी मुश्किल में खुद को हारने नहीं देती।
कुमकुम भान्ती का महज़ 17 साल की थीं जब उनके पिता जी की मृत्यु हो गई थी। पिता सरकारी सेवा में थे इसलिए उनकी नौकरी अनुकम्पा के तौर पर कुमकुम को मिलीथी। लेकिन उम्र 18 वर्ष से कम थी। 4 महीने के इंतज़ार के बाद 18 साल का होते ही इन्हें बेसिक शिक्षा विद्यालय में बतौर अध्यापिका नियुक्त किया गया।
महज़ 18 साल की उम्र में नौकरी और घर दोनों की ज़िम्मेदारियां उठाना कम चुनौतीपूर्ण नहीं था। घर में मां के साथ छोटी बहन को संभालने का दारोमरदार उनके ऊपर ही था।
एक शिक्षिका की ज़िम्मेदारियों से न्याय करने के लिए आगे पढ़ाई की भी ज़रूरत थी। कुमकुम ने...फिर घर और नौकरी के साथ पढ़ाई की भी जिम्मेदारी उठाई। डा.भीमराव अम्बेडकर युनिवर्सिटी से उन्होंने प्राइवेट स्नातक और स्नातकोत्तर  किया। लगन और मेहनत देखकर सरकार ने बीटीसी करवाने में उनकी मदद की।
एक बेटी के तौर पर कुमकुम ने खुद को साबित किया...लेकिन एक बहू के तौर पर भी चुनौतियां कम नहीं थीं। ससुराल की कमज़ोर आर्थिक स्थिति उनके सामने एक चुनौती बनकर सामने आई। एक पत्नी के तौर पर, एक मां के तौर पर हर ज़िम्मेदारी इस बेटी ने पूरी तरह से उठाई।
बच्चों की परवरिश, उनकी पढ़ाई....उनका भविष्य। शायद ही ज़िंदगी का कोई पड़ाव होगा जहां उन्हें चुनौतियां ना मिली हों, जहां उन्हें खुद को साबित ना करना पड़ा हो।

Tuesday, October 10, 2017

पहनावा

इतना तो समझा देना तेरी बहु को की कोई घर आये तो अदब से रहे ...
कितने दिन के लिए आते है मेंहमान इससे तेरी ही इज़्ज़त की फजीती होगी,, 
तेरी बहु का तो क्या जाएगा....
ओर सच कहे तो आजकल की बहुओ में संस्कार नाम की चीज़ ही नही होती...

ये सुनके पहले तो कविता थोड़ी सकपकाई समझ नही पा रहती थी कि जीजी किस बात की चर्चा कर रही है..

तो उसने पूछा ऐसा क्या हुआ जीजी मेरी बहु से कोई गलती हो गई क्या...
कुछ कह दिया क्या उसने ओर ये कब हुआ क्या मैं उस वक्त नही थी घर पे....

तू नही थी तभी तो, 
तू तेरे दूसरे बेटे के गई हुई थी..
कहा कुछ नही उसने, 
हम गए तो 
हमारे पैर छुए 
चाय नास्ता भी कराया...
आदर सत्कार भी किया 
बहुत प्यार से बोली भी ...
खाना भी बहुत स्वादिष्ट बनाया था,,...
हम अच्छे से सोये भी...

तो क्या कमी रह गई जीजी 
फिर आप ऐसा क्यों बोली...

अरे कविता हम गए 
जब वो पैजामे टीशर्ट में थी 
हमे तो देखकर बहुत बुरा लगा, 
तेरे जीजाजी को ये पसंद नही है....
कमसे कम साड़ी ही पहन लेती हमे दिखाने को मन खुश हो जाता ..
बस यही बात खटक  गई....
हमारी बहुओ को देखो कोई भी घर आता है 
तो अदब से रहती है साडी में...
तूने कुछ सिखाया नही तेरी बहु को ।

सही कहा जीजी आपने 
आपकी बहु बहुत अदब में रहती है 
पिछली बार मेरा जाना हुआ था आपके बेटे के यहाँ।
बहुत ही सुशील लग रही थी साड़ी में ..
आई मेरे पास 
मेरे कंधे पे हाथ रख कर बोली आओ मौसीजी बताओ ओर कैसे आना हुआ...

मैंने कहा बहुत दिन हो गये थे, तो मिलने आ गई...

तो कहने लगी क्या करे मौसीजी वक़्त ही नही मिलता मिलने का 
व्यस्त रहते है...
ओर बात तो फोन पे भी हो जाती है....

बहुत देर बात करने के बाद मुझे याद आया गला सुख रहा है...
तो मैंने पानी मांग लिया पीने को...

बहु ने कहा मौसीजी चाय बनालू क्या... 

मैने कहा रहने दे क्यों परेशान होती है ,
मैं घर से चाय पीकर आई हूं.. 

अच्छा ठीक है 
फिर मौसीजी आप रुको 
में मार्केट जा रही हु 
आपके साथ ही निकल लूंगी... 

समझ आ गया था की बहू के पास समय नही है 
मैने बेग उठाया और घर की ओर रवानगी कर ली।

अगर संस्कार 
ऐसे साड़ी पहन कर निभाये जाते है तो 
अच्छा है मैने अपनी बहू को नही दिए...

क्या करूँ 
वो बस दुसरो की इज़्ज़त करे 
प्यार करे और उनकी भावनाओं की कद्र करे,
मैं उसमे ही खुश हूं...

ये कहकर दोनो बहनो में कभी न मिटने वाली एक खटक हो गई....

पता नही क्यों लोग संस्कार प्यार इज़्ज़त को वेषभूषा से आंकते है...
इज़्ज़त देने से मिलती है 
और प्यार को पाने के लिए प्यार देना पड़ता है..

Monday, October 9, 2017

बुढापे की लाठी



लोगों से अक्सर सुनते आये हैं कि बेटा बुढ़ापे की लाठी होता है।इसलिये लोग अपने जीवन मे एक "बेटा" की कामना ज़रूर रखते हैं ताकि बुढ़ापे अच्छे से कट जाए।ये बात सच भी है क्योंकि बेटा ही घर में बहु लाता है।बहु के आ जाने के बाद एक बेटा अपनी लगभग सारी जिम्मेदारी अपनी पत्नी के कंधे में डाल देता है।और फिर बहु बन जाती है अपने बूढ़े सास-ससुर की बुढ़ापे की लाठी।जी हाँ मेरा तो यही मनाना है वो बहु ही होती है जिसके सहारे बूढ़े सास-ससुर अपनी जीवन व्यतीत करते हैं।एक बहु को अपने सास-ससुर की पूरी दिनचर्या मालूम होती।कौन कब और कैसी चाय पीते है, क्या खाना बनाना है, शाम में नाश्ता में क्या देना,रात को हर हालत में 9 बजे से पहले खाना बनाना है।अगर सास-ससुर बीमार पड़ जाए तो पूरे मन या बेमन से बहु ही देखभाल करती है।अगर एक दिन के लिये बहु बीमार पड़ जाए या फिर कही चले जाएं,बेचारे सास-ससुर को ऐसा लगता है जैसा उनकी लाठी ही किसी ने छीन ली हो।वे चाय नाश्ता से लेकर खाना के लिये छटपटा जाएंगे।कोई पूछेगा नही उन्हें,उनका अपना बेटा भी नही क्योंकि बेटा को फुर्सत नही है,और अगर बेटे को फुरसत मिल जाये भी तो वो कुछ नही कर पायेगा क्योंकि उसे ये मालूम ही नही है कि माँ-बाबूजी को सुबह से रात तक क्या क्या देना है।क्योंकि बेटा के चंद सवाल है और उसकी ज़िम्मेदारी खत्म जैसे माँ-बाबूजी को खाना खाएं,चाय पियें, नाश्ता किये, लेकिन कभी भी ये जानने की कोशिश नही करते कि वे क्या खाते हैं कैसी चाय पीते हैं।ये लगभग सारे घर की कहानी है।मैंने तो ऐसी बहुएं देखी है जिसने अपनी सास की बीमारी में तन मन से सेवा करती थी,बिल्कुल एक बच्चे की तरह,जैसे बच्चे सारे काम बिस्तर पर करते हैं ठीक उसी तरह उसकी सास भी करती थी और बेचारी बहु उसको साफ करती थी।और बेटा ये बचकर निकल जाता था कि मैं अपनी माँ को ऐसी हालत में नही देख सकता इसलिये उनके पास नही जाता था।ऐसे की कई बहु के उदाहरण हैं।मैंने अपनी माँ और चाची को दादा-दादी की ऐसे ही सेवा करते देखा है।ऐसे ही कई उदाहरण आपलोगो ने भी देखा होगा,आपलोग में से ही कई बहुयें ने अपनी सास-ससुर की ऐसी सेवा की होगी या कर रही होगी।कभी -कभी ऐसा होता है कि बेटा संसार छोड़ चला जाता है,तब बहु ही होती है जो उसके माँ-बाप की सेवा करती है, ज़रूरत पड़ने पर नौकरी करती है।लेकिन अगर बहु दुनिया से चले जाएं तो बेटा फिर एक बहु ले आता है, क्योंकि वो नही कर पाता अपने माँ-बाप की सेवा,उसे खुद उस बहु नाम की लाठी की ज़रूरत पड़ती है।इसलिये मेरा मानना है कि बहु ही होती ही बुढ़ापे की असली लाठी लेकिन अफसोस "बहु" की त्याग और सेवा उन्हें भी नही दिखती जिसके लिये सारा दिन वो दौड़-भाग करती रहती है।

Wednesday, October 4, 2017

प्रसंग जिंदगी का

एक 6 साल का छोटा सा बच्चा अक्सर परमात्मा से मिलने की जिद किया करता था। उसकी चाहत थी की एक समय की रोटी वो परमात्मा के साथ खाये।

एक  दिन उसने 1 थैले में 5, 6 रोटियां रखीं और परमात्मा को ढूंढने निकल पड़ा।
चलते चलते वो बहुत दूर निकल आया संध्या का समय हो गया।

उसने देखा नदी के तट पर 1 बुजुर्ग बूढ़ा बैठा हैं, और ऐसा लग रहा था जैसे उसी के इन्तजार में वहां बैठा उसका रास्ता देख रहा हों।

वो 6 साल का मासूम बालक,बुजुर्ग बूढ़े के पास जा कर बैठ गया,।अपने थैले में से रोटी निकाली और खाने लग गया।और उसने अपना रोटी वाला हाँथ बूढे की ओर बढ़ाया और मुस्कुरा के देखने लगा,बूढे ने रोटी ले ली,। बूढ़े के झुर्रियों वाले चेहरे पर अजीब सी ख़ुशी आ गई आँखों में ख़ुशी के आंसू भी थे,,,,
बच्चा बुढ़े को देखे जा रहा था, जब बुढ़े ने रोटी खा ली बच्चे ने एक और रोटी बूढ़े को दी।

बूढ़ा अब बहुत खुश था। बच्चा भी बहुत खुश था। दोनों ने आपस में बहुत प्यार और स्नेह केे पल बिताये।
जब रात घिरने लगी तो बच्चा इजाज़त ले घर की ओर चलने लगा।
वो बार बार पीछे मुड़ कर देखता , तो पाता बुजुर्ग बूढ़ा उसी की ओर देख रहा था।
बच्चा घर पहुंचा तो माँ ने अपने बेटे को आया देख जोर से गले से लगा लिया और चूमने लगी,बच्चा बहूत खुश था। 

माँ ने अपने बच्चे को इतना खुश पहली बार देखा तो ख़ुशी का कारण पूछा, तो बच्चे ने बताया !
माँ,....आज मैंने परमात्मा के सांथ बैठ कर रोटी खाई,आपको पता है उन्होंने भी मेरी रोटी खाई,,,माँ परमात्मा् बहुत बूढ़े हो गये हैं,,,मैं आज बहुत खुश हूँ माँ

उस तरफ बुजुर्ग बूढ़ा भी जब अपने गाँव पहूँचा तो गाव वालों ने देखा बूढ़ा बहुत खुश हैं,तो किसी ने उनके इतने खुश होने का कारण पूछा????
बूढ़ा बोलां,,,,मैं 2 दिन से नदी के तट पर अकेला भूखा बैठा था,,मुझे पता था परमात्मा आएंगे और मुझे खाना खिलाएंगे।

आज भगवान् आए थे, उन्होंने मेरे साथ बैठ कर रोटी खाई मुझे भी बहुत प्यार से खिलाई,बहुत प्यार से मेरी और देखते थे, जाते समय मुझे गले भी लगाया,,परमात्मा बहुत ही मासूम हैं बच्चे की तरह दिखते हैं।

  असल में बात सिर्फ इतनी है की दोनों के दिलों में परमात्मा के लिए प्यार बहुत सच्चा है। और परमात्मा ने दोनों को,दोनों के लिये, दोनों में ही (परमात्मा) खुद को भेज दिया। *जब मन परमात्मा में रम जाता है तो मन को हर एक में वो ही नजर आने लग जाता है क्योंकि परमात्मा प्रेम का सागर है।

Monday, September 25, 2017

सफल जीवन का राज

एक औरत ने तीन संतों को अपने घर के सामने  देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी। औरत ने कहा –  “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।” संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?” औरत – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।” संत –“हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर  हों।” शाम को उस औरत का पति घर आया और  औरत ने उसे यह सब बताया। पति – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के  लिए कहा। संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ नहीं जाते।” “पर क्यों?” – औरत ने पूछा। उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है”  फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा  “इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं।  हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है।  आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर  लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।” औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब  बताया।  उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और  बोला –“यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित
करना चाहिए।  हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।” पत्नी – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को  आमंत्रित करना चाहिए।” उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी।  वह उनके पास आई और बोली –  “मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना  चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।” “तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम
को ही बुलाना चाहिए” – उसके माता-पिता ने कहा। औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा –  “आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में  प्रवेश कर भोजन गृहण करें।” प्रेम घर की ओर बढ़ चले।  बाकी के दो संत भी उनके पीछे चलने लगे। औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा –  “मैंने तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था। आप लोग भीतर क्यों जा रहे हैं?” उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और  सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता  तो केवल वही भीतर जाता।  आपने प्रेम को आमंत्रित किया है।  प्रेम कभी अकेला नहीं जाता।  प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता  उसके पीछे जाते हैं। इस कहानी को एक बार, 2 बार, 3 बार
पढ़ें अच्छा लगे तो प्रेम के साथ रहें,   प्रेम बाटें, प्रेम दें और प्रेम लें  क्यों कि प्रेम ही 
सफल जीवन का राज है।

Saturday, September 23, 2017

माँ की जादू की झप्पी

बर्तनों की आवाज़ देर रात तक आ रही थी...रसोई का नल चल रहा है माँ रसोई में है.... तीनों बहुऐं अपने-अपने कमरे में सोने जा चुकी.... माँ रसोई में है... माँ का काम बकाया रह गया था पर काम तो सबका था पर माँ तो अब भी सबका काम अपना ही मानती है.... दूध गर्म करके ठण्ड़ा करके जावण देना है... ताकि सुबह बेटों को ताजा दही मिल सके... सिंक में रखे बर्तन माँ को कचोटते हैं चाहे तारीख बदल जाये, सिंक साफ होना चाहिये.... बर्तनों की आवाज़ से  बहू-बेटों की नींद खराब हो रही है बड़ी बहू ने बड़े बेटे से कहा  "तुम्हारी माँ को नींद नहीं आती क्या? ना खुद सोती है और ना ही हमें सोने देती है" मंझली ने मंझले बेटे से कहा " अब देखना सुबह चार बजे फिर खटर-पटर चालू हो जायेगी, तुम्हारी माँ को चैन नहीं है क्या?" छोटी ने छोटे बेटे से कहा " प्लीज़ जाकर ये ढ़ोंग बन्द करवाओ कि रात को सिंक खाली रहना चाहिये" माँ अब तक बर्तन माँज चुकी थी । झुकी कमर कठोर हथेलियां लटकी सी त्वचा जोड़ों में तकलीफ आँख में पका मोतियाबिन्द माथे पर टपकता पसीना पैरों में उम्र की लड़खडाहट मगर.... दूध का गर्म पतीला वो आज भी अपने पल्लू  से उठा लेती है और... उसकी अंगुलियां जलती नहीं है, क्यों कि वो माँ है । दूध ठण्ड़ा हो चुका... जावण भी लग चुका... घड़ी की सुईयां थक गई... मगर... माँ ने फ्रिज में से भिण्ड़ी निकाल ली और... काटने लगी उसको नींद नहीं आती है, क्यों कि वो माँ है । कभी-कभी सोचता हूं कि माँ जैसे विषय पर लिखना, बोलना, बनाना, बताना, जताना क़ानूनन  बन्द होना चाहिये....
क्यों कि यह विषय निर्विवाद है क्यों कि यह रिश्ता स्वयं कसौटी है । रात के बारह बजे सुबह की भिण्ड़ी कट गई... अचानक याद आया कि गोली तो ली ही नहीं... बिस्तर पर तकिये के नीचे रखी थैली निकाली.. मूनलाईट की रोशनी में  गोली के रंग के हिसाब से मुंह में रखी और  गटक कर पानी पी लिया... बगल में एक नींद ले चुके बाबूजी ने कहा " आ गई" "हाँ, आज तो कोई काम ही नहीं था"  माँ ने जवाब दिया । और...  लेट गई, कल की चिन्ता में पता नहीं नींद आती होगी या नहीं पर सुबह वो थकान रहित होती हैं, क्यों कि वो माँ है । सुबह का अलार्म बाद में बजता है माँ की नींद पहले खुलती है  याद नहीं कि कभी भरी सर्दियों में भी माँ गर्म पानी से नहायी हो उन्हे सर्दी नहीं लगती, क्यों कि वो माँ है । अखबार पढ़ती नहीं, मगर उठा कर लाती है चाय पीती नहीं, मगर बना कर लाती है जल्दी खाना खाती नहीं, मगर बना देती है.... क्यों कि वो माँ है । माँ पर बात जीवनभर खत्म ना होगी..
 


Tuesday, September 19, 2017

बुजुर्गों का सम्मान

बूढ़ा पिता अपने IAS बेटे के चेंबर में  जाकर उसके कंधे पर हाथ रख कर खड़ा हो गया ! और प्यार से अपने पुत्र से पूछा..."इस दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान कौन है"?पुत्र ने पिता को बड़े प्यार से हंसते हुए कहा "मेरे अलावा कौन हो सकता है पिताजी "!पिता को इस जवाब की  आशा नहीं थी, उसे विश्वास था कि उसका बेटा गर्व से कहेगा पिताजी इस दुनिया के सब से शक्तिशाली इंसान आप हैैं, जिन्होंने मुझे इतना योग्य बनाया ! उनकी आँखे छलछला आई ! वो चेंबर के गेट को खोल कर बाहर निकलने लगे ! उन्होंने एक बार पीछे मुड़ कर पुनः बेटे से पूछा एक बार फिर बताओ इस दुनिया का सब से शक्तिशाली इंसान कौन है ???*
             पुत्र ने  इस बार कहा...
              "पिताजी आप हैैं,
             इस दुनिया के सब से
           शक्तिशाली इंसान "!
पिता सुनकर आश्चर्यचकित हो गए उन्होंने कहा "अभी तो तुम अपने आप को इस दुनिया का सब से शक्तिशाली इंसान बता रहे थे अब तुम मुझे बता रहे हो " ??? पुत्र ने हंसते हुए उन्हें अपने सामने बिठाते  हुए कहा .."पिताजी उस समय आप का हाथ मेरे कंधे पर था, जिस पुत्र के कंधे पर या सिर पर पिता का हाथ हो वो पुत्र तो दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान ही होगा ना,,,,,बोलिए पिताजी"  !पिता की आँखे भर आई उन्होंने अपने पुत्र को कस कर के अपने गले लगा लिया ! तब में चन्द पंक्तिया लिखता हुं"
       जो पिता के पैरों को छूता है वो कभी गरीब नहीं होता। जो मां के पैरों को छूता है  वो कभी बदनसीब नही होता। जो भाई के पैराें को छुता हें वो कभी गमगीन नही होता। जो बहन के पैरों को छूता है वो कभी चरित्रहीन नहीं होता। जो गुरू के पैरों को छूता है  उस जेसा कोई खुशनसीब नहीं होता....... अच्छा दिखने के लिये मत जिओ बल्कि अच्छा बनने के लिए  जिओजो  झुक सकता है वह सारी दुनिया को झुका सकता है  अगर बुरी आदत समय पर न बदली जाये तो बुरी आदत समय बदल देती है चलते रहने से ही सफलता है, रुका हुआ तो पानी भी बेकार हो जाता है  झूठे दिलासे से स्पष्ट इंकार बेहतर है अच्छी सोच, अच्छी भावना, अच्छा विचार मन को हल्का करता है मुसीबत सब प आती है कोई बिखर जाता हे और कोई निखर जाता हें "तेरा मेरा"करते एक दिन चले जाना है...
जो भी कमाया यही रहे जाना हे

Saturday, September 16, 2017

बनिए की बुद्धी

एक गाँव में एक बनिया  रहता था, उसकी ख्याति दूर दूर तक फैली थी।
एक बार वहाँ के राजा ने उसे चर्चा पर बुलाया। काफी देर चर्चा के बाद उसने कहा –
“महाशय, आप बहुत बड़े  सेठ  है, इतना बड़ा कारोबार है पर आपका लडका इतना मूर्ख क्यों है ? उसे भी कुछ सिखायें।
उसे तो सोने चांदी में मूल्यवान क्या है यह भी नही पता॥” यह कहकर वह जोर से हंस पडा.. 
बनिए  को बुरा लगा, वह घर गया व लडके से पूछा “सोना व चांदी में अधिक मूल्यवान क्या है ?”
“सोना”, बिना एकपल भी गंवाए उसके लडके ने कहा।
“तुम्हारा उत्तर तो ठीक है, फिर राजा ने ऐसा क्यूं कहा-? सभी के बीच मेरी खिल्ली भी उठाई।”
लडके के समझ मे आ गया, वह बोला “राजा गाँव के पास एक खुला दरबार लगाते हैं,
जिसमें सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति भी शामिल होते हैं। यह दरबार मेरे स्कूल जाने के मार्ग मे ही पडता है। 
मुझे देखते हि बुलवा लेते हैं, अपने एक हाथ मे सोने का व दूसरे मे चांदी का सिक्का रखकर, जो अधिक मूल्यवान है वह ले लेने को कहते हैं...
ओर मैं चांदी का सिक्का ले लेता हूं। सभी ठहाका लगाकर हंसते हैं व मजा लेते हैं। ऐसा तकरीबन हर दूसरे दिन होता है।”
“फिर तुम सोने का सिक्का क्यों नही उठाते, चार लोगों के बीच अपनी फजिहत कराते हो व साथ मे मेरी भी।”
लडका हंसा व हाथ पकडकर पिता  को अंदर ले गया ऒर कपाट से एक पेटी निकालकर दिखाई जो चांदी के सिक्कों से भरी हुई थी।
यह देख बनिया  हतप्रभ रह गया। 
लडका बोला “जिस दिन मैंने सोने का सिक्का उठा लिया उस दिन से यह खेल बंद हो जाएगा।
वो मुझे मूर्ख समझकर मजा लेते हैं तो लेने दें, यदि मैं बुद्धिमानी दिखाउंगा तो कुछ नही मिलेगा।”
बनिए का  बेटा हु अक़्ल से काम लेता हूँ
मूर्ख होना अलग बात है व समझा जाना अलग.. स्वर्णिम मॊके का फायदा उठाने से बेहतर है, हर मॊके को स्वर्ण मे तब्दील करना।
जैसे समुद्र सबके लिए समान होता है, कुछ लोग पानी के अंदर टहलकर आ जाते हैं, कुछ मछलियाँ ढूंढ पकड लाते हैं .. व कुछ मोती चुन कर आते हैं|
बनिए की बुद्धी पे शक मत करना