Friday, September 2, 2016

मानव धर्म एक

मुशीं फैज अली ने स्वामी विवेकानन्द से पूछा : "स्वामी जी हमें बताया गया है कि अल्लहा एक ही है।  यदि वह एक ही है, तो फिर संसार उसी ने बनाया होगा ? "स्वामी जी बोले, "सत्य है।". मुशी जी बोले ,"तो फिर इतने प्रकार के मनुष्य क्यों बनाये।  जैसे कि हिन्दु, मुसलमान, सिख्ख, ईसाइ और सभी को अलग-अलग धार्मिक ग्रंथ भी दिये। एक ही जैसे इंसान बनाने में उसे यानि की अल्लाह को क्या एतराज था। सब एक होते तो न कोई लङाई और न कोई झगङा होता। ".स्वामी हँसते हुए बोले, "मुंशी जी वो सृष्टी कैसी होती जिसमें एक ही प्रकार के फूल होते। केवल गुलाब होता, कमल या रंजनिगंधा या गेंदा जैसे फूल न होते!". फैज अली ने कहा सच कहा आपने  यदि  एक ही दाल होती  तो  खाने का स्वाद भी  एक ही होता। दुनिया तो  बङी फीकी सी हो जाती! स्वामी जी ने कहा, मुंशीजी! इसीलिये तो ऊपर वाले ने अनेक प्रकार के जीव-जंतु और इंसान बनाए  ताकि हम  पिंजरे का भेद भूलकर  जीव की एकता को पहचाने। मुशी जी ने पूछा, इतने मजहब क्यों ?स्वामी जी ने कहा, " मजहब तो मनुष्य ने बनाए हैं, प्रभु ने तो केवल धर्म बनाया है। "मुशी जी ने कहा कि, " ऐसा क्यों है कि  एक मजहब में कहा गया है कि गाय और सुअर खाओ  और दूसरे में कहा गया है कि  गाय मत खाओ, सुअर खाओ एवं तीसरे में कहा गया कि गाय खाओ सुअर न खाओ; इतना ही नही कुछ लोग तो ये भी कहते हैं कि मना करने पर जो इसे खाये उसे अपना दुश्मन समझो।" स्वामी जी जोर से हँसते हुए मुंशी जी से पूछे कि ,"क्या ये सब प्रभु ने कहा है ?" मुंशी जी बोले नही,"मजहबी लोग यही कहते हैं।" स्वामी जी बोले, "मित्र!  किसी भी देश या प्रदेश का भोजन  वहाँ की जलवायु की देन है। सागरतट पर बसने वाला व्यक्ति वहाँ खेती नही कर सकता, वह  सागर से पकङ कर  मछलियां ही खायेगा।
उपजाऊ भूमि के प्रदेश में  खेती हो सकती है। वहाँ  अन्न फल एवं शाक-भाजी उगाई जा सकती है। उन्हे अपनी खेती के लिए गाय और बैल बहुत उपयोगी लगे। उन्होने  गाय को अपनी माता माना, धरती को अपनी माता माना और नदी को माता माना ।
क्योंकि  ये सब  उनका पालन पोषण माता के समान ही करती हैं।" "अब जहाँ मरुभूमि है वहाँ खेती कैसे होगी? खेती नही होगी तो वे  गाय और बैल का क्या करेंगे? अन्न है नही  तो खाद्य के रूप में  पशु को ही खायेंगे। तिब्बत में कोई शाकाहारी कैसे हो सकता है? वही स्थिति अरब देशों में है। जापान में भी इतनी भूमि नही है कि कृषि पर निर्भर रह सकें। "स्वामी जी फैज अलि की तरफ मुखातिब होते हुए बोले, " हिन्दु कहते हैं कि  मंदिर में जाने से पहले या  पूजा करने से पहले  स्नान करो। मुसलमान नमाज पढने से पहले वाजु करते हैं।  क्या अल्लहा ने कहा है कि नहाओ मत, केवल लोटे भर पानी से  हांथ-मुँह धो लो? "फैज अलि बोला, क्या पता कहा ही होगा!  स्वामी जी ने आगे कहा, नहीं, अल्लहा ने नही कहा! अरब देश में इतना पानी कहाँ है कि वहाँ पाँच समय नहाया जाए।  जहाँ पीने के लिए पानी बङी मुश्किल से मिलता हो वहाँ कोई पाँच समय कैसे नहा सकता है। यह तो 
भारत में ही संभव है,  जहाँ नदियां बहती हैं, झरने बहते हैं, कुएँ जल देते हैं। तिब्बत में यदि पानी हो  तो वहाँ पाँच बार व्यक्ति यदि नहाता है तो ठंड के कारण ही मर जायेगा। यह सब  प्रकृति ने  सबको समझाने के लिये किया है। "स्वामी विवेका नंद जी ने आगे समझाते हुए कहा कि," मनुष्य की मृत्यु होती है। उसके शव का अंतिम संस्कार करना होता है। अरब देशों में वृक्ष नही होते थे, केवल रेत थी। अतः  वहाँ मृतिका समाधी का प्रचलन हुआ,  जिसे आप दफनाना कहते हैं। भारत में वृक्ष बहुत बङी संख्या में थे, लकडी.पर्याप्त उपलब्ध थी अतः भारत में  अग्नि संस्कार का प्रचलन हुआ। जिस देश में जो सुविधा थी  वहाँ उसी का प्रचलन बढा। वहाँ जो मजहब पनपा  उसने उसे अपने दर्शन से जोङ लिया। "फैज अलि विस्मित होते हुए बोला!  "स्वामी जी इसका मतलब है कि हमें  शव का अंतिम संस्कार  प्रदेश और देश के अनुसार करना चाहिये। मजहब के अनुसार नही। "स्वामी जी बोले , "हाँ! यही उचित है। " किन्तु अब लोगों ने उसके साथ धर्म को जोङ दिया। मुसलमान ये मानता है कि उसका ये शरीर कयामत के दिन उठेगा इसलिए वह शरीर को जलाकर समाप्त नही करना चाहता। हिन्दु मानता है कि उसकी आत्मा फिर से नया शरीर धारण करेगी  इसलिए  उसे मृत शरीर से  एक क्षंण भी मोह नही होता। "फैज अलि ने पूछा  कि, "एक मुसलमान के शव को जलाया जाए और एक हिन्दु के शव को दफनाया जाए  तो क्या  प्रभु नाराज नही होंगे? "स्वामी जी ने कहा," प्रकृति के नियम ही प्रभु का आदेश हैं। वैसे प्रभु कभी रुष्ट नही होते  वे प्रेमसागर हैं,  करुणा सागर है। "फैज अलि ने पूछा  तो हमें  उनसे डरना नही चाहिए? स्वामी जी बोले, "नही!  हमें तो  ईश्वर से प्रेम करना चाहिए  वो तो पिता समान है,  दया का सागर है  फिर उससे भय कैसा। डरते तो उससे हैं हम जिससे हम प्यार नही करते। "फैज अलि ने हाँथ जोङकर स्वामी विवेकानंद जी से पूछा, "तो फिर  मजहबों के कठघरों से  मुक्त कैसे हुआ जा सकता है? "स्वामी जी ने फैज अलि की तरफ देखते हुए  मुस्कराकर कहा, "क्या तुम सचमुच  कठघरों से मुक्त होना चाहते हो?" फैज अलि ने स्वीकार करने की स्थिति में  अपना सर हिला दिया।
स्वामी जी ने आगे समझाते हुए कहा, "फल की दुकान पर जाओ,  तुम देखोगे  वहाँ  आम, नारियल, केले, संतरे,अंगूर आदि अनेक फल बिकते हैं; किंतु वो दुकान तो फल की दुकान ही कहलाती है। वहाँ अलग-अलग नाम से फल ही रखे होते हैं। " फैज अलि ने  हाँ में सर हिला दिया। स्वामी विवेकानंद जी ने आगे कहा कि ,"अंश से अंशी की ओर चलो।  तुम पाओगे कि सब  उसी प्रभु के रूप हैं। "फैज अलि  अविरल आश्चर्य से  स्वामी विवेकानंद जी को  देखते रहे और बोले  "स्वामी जी  मनुष्य  ये सब क्यों नही समझता? "स्वामी विवेकानंद जी ने शांत स्वर में कहा, मित्र! प्रभु की माया को कोई नही समझता। मेरा मानना तो यही है कि, "सभी धर्मों का गंतव्य स्थान एक है। जिस प्रकार विभिन्न मार्गो से बहती हुई नदियां समुंद्र में जाकर गिरती हैं,  उसी प्रकार सब मतमतान्तर परमात्मा की ओर ले जाते हैं।  मानव धर्म एक है, मानव जाति एक है।"...

Wednesday, August 31, 2016

माँ का बिल

अनमोल "

● “ये बिल क्या होता है माँ ?” 8 साल के बेटे ने माँ से पूछा।

● माँ ने समझाया -- “जब हम किसी से कोई सामान लेते हैं या काम कराते हैं, तो वह उस सामान या काम के बदले हम से पैसे लेता है, और हमें उस काम या सामान की एक सूची बना कर देता है, इसी को हम बिल कहते हैं।”

● लड़के को बात अच्छी तरह समझ में आ गयी। रात को सोने से पहले, उसने माँ के तकिये के नीचे एक कागज़ रखा, जिस में उस दिन का हिसाब लिखा था।

● पास की दूकान से सामन लाया          5रु
पापा के लिए कंघा लाया                                           5 रु
दादाजी का सर दबाया                                              १० रु
माँ की चाभी ढूंढी                                                               १० रु
कुल                                                                                           ३० रु

यह सिर्फ आज का बिल है , इसे आज ही चुकता कर दे तो अच्छा है।

● सुबह जब वह उठा तो उसके तकिये के नीचे ३० रु. रखे थे। यह देख कर वह बहुत खुश हुआ कि ये बढ़िया काम मिल गया।

● तभी उस ने एक और कागज़ वहीं रखा देखा। जल्दी से उठा कर, उसने कागज़ को पढ़ा। माँ ने लिखा था --
• जन्म से अब तक पालना पोसना --  रु ००
• बीमार होने पर रात रात भर
छाती से लगाये घूमना --                    रु ००
• स्कूल भेजना और घर पर
होम वर्क कराना  --                                            रु ००
• सुबह से रात तक खिलाना, पिलाना,
कपडे सिलाना, प्रेस करना --                      रु ००
• अधिक तर मांगे पूरी करना --                                      रु ००
कुल                                                                                             रु ००

ये अभी तक का पूरा बिल है, इसे जब चुकता करना चाहो कर देना।

● लड़के की आँखे भर आयी, सीधा जा कर माँ के पैरों में झुक गया और मुश्किल से बोल पाया --“तेरे बिल में मोल तो लिखा ही नहीं है माँ, ये तो अनमोल है, इसे चुकता करने लायक धन तो हमारे पास कभी भी नहीं होगा। मुझे माफ़ कर देना , माँ।“

● माँ ने हँसते हुए उसे गले से लगा लिया ।

Monday, August 29, 2016

हमेशा अच्छा करो

एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी..।
वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी, जिसे कोई भी ले सकता था..।
एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा..।"
दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा..
वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।"
वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी की- "कितना अजीब व्यक्ति है, एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका.।"
एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली- "मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी.।"
और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी, और जैसे ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह बोली- "हे भगवन, मैं ये क्या करने जा रही थी.?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दिया..। एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी..।
हर रोज़ कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी ले के: "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा" बड़बड़ाता हुआ चला गया..।
इस बात से बिलकुल बेख़बर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है..।
हर रोज़ जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था..। महीनों से उसकी कोई ख़बर नहीं थी..।
ठीक उसी शाम को उसके दरवाज़े पर एक दस्तक होती है.. वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है.. अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है..।
वह पतला और दुबला हो गया था.. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था, भूख से वह कमज़ोर हो गया था..।
जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा- "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ.. आज जब मैं घर से एक मील दूर था, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया.. मैं मर गया होता..।
लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था.. उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया.. भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे.. मैंने उससे खाने को कुछ माँगा.. उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि- "मैं हर रोज़ यही खाता हूँ, लेकिन आज मुझसे ज़्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है.. सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो.।"
जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी, माँ का चेहरा पीला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाज़े का सहारा लीया..।
उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था, अगर उसने वह रोटी आग में जला के नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत..?
और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।।
निष्कर्ष
हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको, फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या ना हो..।

Wednesday, August 24, 2016

आनदं की अनुभूति

एक बार स्वामी रामदास जी भिक्षा मांगते हुए किसी घर के सामने खड़े हुए और उन्होने आवाज लगाई,
"रघुवीर समर्थ !'
घर की स्त्री बाहर आई। उसने उनकी झोली में भिक्षा डाली और कहा, महात्मा जी कोई उपदेश दीजिये।
स्वामी रामदास जी बोले,
" आज नहीं कल दूंगा!'
दूसरे दिन स्वामी रामदास जी ने पुन: उस घर के सामने आवाज लगाई,
" रघुवीर समर्थ!'
उस घर की स्त्री ने उस दिन खीर बनाई थी। वह खीर का कटोरा लेकर बाहर आई।
स्वामी जी ने अपना कमंडल आगे कर दिया।
वह स्त्री जब खीर डालने लगी तो उसने देखा कि कमंडल में कूड़ा भरा है। उसके हाथ ठिठक गए। वह बोली,
" महाराज कमंडल तो गदां है!'
रामदास जी बोले, " हां गंदा तो है, किंतु खीर इसमें डाल दो।'
स्त्री बोली, " नहीं महाराज तब तो खीर खराब हो जाएगी।
लावों कमंडल मै धो लाती हू।'
स्वामी जी बोले, मतलब जब कमंडल साफ होगा तभी खीर डालोगी।'
स्त्री बोली, "जी महाराज।' स्वामी जी बोले, " मेरा भी यही उपदेश है। मन में जब तक चिंताओ का कूड़ा-- करकट और बुरे संस्कार रुपी गोबर भरा है।
तब तक उपदेशामृत का कोई लाभ नहीं होगा।
मन साफ हो, तभी आनदं की अनुभूति प्राप्त होती है।

Sunday, August 21, 2016

चींटी और टिड्डा

एक समय की बात है एक चींटी और एक टिड्डा था .
गर्मियों के दिन थे,🐜चींटी दिन भर मेहनत करती और अपने रहने के लिए घर को बनाती, खाने के लिए भोजन भी इकठ्ठा करती जिस से की सर्दियों में उसे खाने पीने की दिक्कत न हो और वो आराम से अपने घर में रह सके !!
जबकि 🐝टिड्डा दिन भर मस्ती करता गाना गाता और 🐜चींटी को बेवकूफ समझता !!
मौसम बदला और सर्दियां आ गयीं !!
 🐜चींटी अपने बनाए मकान में आराम से रहने लगी उसे खाने पीने की कोई दिक्कत नहीं थी परन्तु
🐝 टिड्डे के पास रहने के लिए न घर था और न खाने के लिए खाना !!
वो बहुत परेशान रहने लगा .
दिन तो उसका जैसे तैसे कट जाता परन्तु ठण्ड में रात काटे नहीं कटती !!

एक दिन टिड्डे को उपाय सूझा और उसने एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई.
सभी  न्यूज़ चैनल वहां पहुँच गए !

🐝 टिड्डे ने कहा कि ये कहाँ का इन्साफ है की एक देश में एक समाज में रहते हुए 🐜चींटियाँ तो आराम से रहें और भर पेट खाना खाएं और और हम 🐝टिड्डे ठण्ड में भूखे पेट ठिठुरते रहें ..........?

मिडिया ने मुद्दे को जोर - शोर से उछाला, और जिस से पूरी विश्व बिरादरी के कान खड़े हो गए.... !
बेचारा 🐝टिड्डा सिर्फ इसलिए अच्छे खाने और घर से महरूम रहे की वो गरीब है और जनसँख्या में कम है बल्कि 🐜चीटियाँ बहुसंख्या में हैं और अमीर हैं तो क्या आराम से जीवन जीने का अधिकार उन्हें मिल गया !
बिलकुल नहीं !!
ये 🐝टिड्डे के साथ अन्याय है !
 इस बात पर कुछ समाजसेवी, 🐜चींटी के घर के सामने धरने पर बैठ गए तो कुछ भूख हड़ताल पर,
कुछ ने 🐝टिड्डे के लिए घर की मांग की.
कुछ राजनीतिज्ञों ने इसे पिछड़ों के प्रति अन्याय बताया.

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने🐝 टिड्डे के वैधानिक अधिकारों को याद दिलाते हुए भारत सरकार की निंदा की !

सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर
🐝 टिड्डे के समर्थन में बाड़ सी आ गयी, विपक्ष के नेताओं ने भारत बंद का एलान कर दिया. कमुनिस्ट पार्टियों ने समानता के अधिकार के तहत 🐜चींटी पर "कर" लगाने और 🐝टिड्डे को अनुदान की मांग की,

एक नया क़ानून लाया गया "पोटागा" (प्रेवेंशन ऑफ़ टेरेरिज़म अगेंस्ट ग्रासहोपर एक्ट).
🐝टिड्डे के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर दी गयी.

अंत में पोटागा के अंतर्गत🐜 चींटी पर फाइन लगाया गया उसका घर सरकार ने अधिग्रहीत कर टिड्डे को दे दिया ....!
इस प्रकरण को मीडिया ने पूरा कवर किया और 🐝 टिड्डे को इन्साफ दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की  !!
समाजसेवकों ने इसे समाजवाद की स्थापना कहा तो किसी ने न्याय की जीत, कुछ राजनीतिज्ञों ने उक्त शहर का नाम बदलकर 🐝"टिड्डा नगर" कर दिया !
रेल मंत्री ने🐝 "टिड्डा रथ" के नाम से नयी रेल चलवा दी और कुछ नेताओं ने इसे समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन की संज्ञा दी ।।
🐜चींटी भारत छोड़कर अमेरिका चली गयी और वहां उसने फिर से मेहनत की और एक कंपनी की स्थापना की जिसकी दिन रात
 तरक्की होने लगी तथा अमेरिका के विकास में सहायक सिद्ध हुई !!

🐜चींटियाँ मेहनत करतीं रहीं और 🐝टिड्डे खाते रहे ........!
फलस्वरूप धीरे धीरे 🐜चींटियाँ भारत छोड़कर जाने लगीं और 🐝टिड्डे झगड़ते रहे ........!
 एक दिन खबर आई की अतिरिक्त आरक्षण की मांग को लेकर सैंकड़ों 🐝🐝🐝टिड्डे मारे गए.........!

ये सब देखकर अमेरिका में बैठी 🐜चींटी ने कहा " इसीलिए शायद भारत आज भी विकासशील देश है"

Saturday, August 13, 2016

केकड़ों का स्‍वभाव

गर्मी का महिना चल रहा था। एक मछुआरा रोज की तरह मछलियां पकड़ने गया, लेकिन आज का दिन उसके लिए कुछ ज्‍यादा अच्‍छा नहीं था। लगभग शाम हो गई थी और वापस घर लौटने की इच्‍छा से उसने जब नदी में फैंके गए अपने जाल को बाहर निकाला, तो उसमें कुछ मछलियां और कुछ केकड़े फंस गए थे।
मछुआरे के पास दो टोकरियां थीं। इसलिए उसने एक टोकरी में मछलियां भर दी और उस पर ढक्‍कन लगा दिया जबकि दूसरी टोकरी में केकड़े भरकर उसे खुला ही छोड़ दिया।
नदी के किनारे टहलने वाले लोगों में से कुछ टोकरियों के पास रूक गए और उस मछुआरे की ये सारी हरकते देखने लगे। तभी उनमें से एक ने मछुआरे को सम्‍बोधित करते हुए कहा, “ओ मछुए… तुमने दिनभर जो मेहनत की है, उसे खराब करके अब घर खाली हाथ लौटना चाहते हो क्‍या?
मछुआरे ने उनकी ओर देखकर पूछा, “मैं कुछ समझा नहीं, आप ऐसा क्‍यों कह रहे हैं?
वह आदमी बोला, “तुमने एक टोकरी में मछलिया भरकर उसे ढ़क्‍कन से ढ़क दिया है, जबकि इस केकड़े वाली टोकरी को खुला ही किनारे पर क्‍यों छोड़ दिया है? देखो, केकड़े बाहर आने की कोशिश कर रहे हैं। एक-एक कर वे सारे टोकरी से बाहर आकर नदी में चले जाऐंगे।
मछुआरा उनकी ओर देखकर हंसते हुए कहने लगा, “साहब… आप चिंता मत कीजिए। मैं इन केकड़ों का स्‍वभाव जानता हूँ। ये रात भर उछल-कूद करते रहेंगे, लेकिन फिर भी ये इस टोकरी से बाहर नहीं आ सकते, क्‍योंकि जो केकड़े ऊपर चढ़ने की कोशिश करेंगे, नीचे वाले उनकी टांगे खींचकर ऊपर चढ़ने की कोशिश करेंगे और उसे भी नीचे ले जाऐंगे। जब तक इस टोकरी में एक से ज्‍यादा केकड़े मॉजूद हैं, एक भी केकड़ा बाहर नहीं निकल सकेगा।

Friday, August 12, 2016

छोटे बदलाव

एक लड़का सुबह सुबह दौड़ने को जाया करता था | आते जाते वो एक बूढी महिला को देखता था | वो बूढी महिला तालाब के किनारे छोटे छोटे कछुवों की पीठ को साफ़ किया करती थी | एक दिन उसने इसके पीछे का कारण जानने की सोची
वो लड़का महिला के पास गया और उनका अभिवादन कर बोला ” नमस्ते आंटी ! मैं आपको हमेशा इन कछुवों की पीठ को साफ़ करते हुए देखता हूँ आप ऐसा किस वजह से करते हो ?”  महिला ने उस मासूम से लड़के को देखा और  इस पर लड़के को जवाब दिया ” मैं हर रविवार यंहा आती हूँ और इन छोटे छोटे कछुवों की पीठ साफ़ करते हुए सुख शांति का अनुभव लेती हूँ |”  क्योंकि इनकी पीठ पर जो कवच होता है उस पर कचता जमा हो जाने की वजह से इनकी गर्मी पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है इसलिए ये कछुवे तैरने में मुश्किल का सामना करते है | कुछ समय बाद तक अगर ऐसा ही रहे तो ये कवच भी कमजोर हो जाते है इसलिए कवच को साफ़ करती हूँ |
यह सुनकर लड़का बड़ा हैरान था | उसने फिर एक जाना पहचाना सा सवाल किया और बोला “बेशक आप बहुत अच्छा काम कर रहे है लेकिन फिर भी आंटी एक बात सोचिये कि इन जैसे कितने कछुवे है जो इनसे भी बुरी हालत में है जबकि आप सभी के लिए ये नहीं कर सकते तो उनका क्या क्योंकि आपके अकेले के बदलने से तो कोई बड़ा बदलाव नहीं आयेगा न |
महिला ने बड़ा ही संक्षिप्त लेकिन असरदार जवाब दिया कि भले ही मेरे इस कर्म से दुनिया में कोई बड़ा बदलाव नहीं आयेगा लेकिन सोचो इस एक कछुवे की जिन्दगी में तो बदल्वाव आयेगा ही न | तो क्यों हम छोटे बदलाव से ही शुरुआत करें |

Monday, August 8, 2016

क्यों भटकाया?'

विद्यार्थी धन्वंतरी की पीठ में एक फोड़ा हो गया था। उस फोड़े के उपचार के लिए संजीवनी बूटी की बेहद जरूरत थी। आरोग्य आश्रम के अधिष्ठाता ने धन्वंतरी से कहा, 'इसके लिए तो तुम्हें स्वयं परिश्रम करना होगा। तुम अकेले जाओ और संजीवनी बूटी को वन में खोजो। बूटी मिलने पर उसे फोड़े पर लगा लेना।' 
अधिष्ठाता की बात शिरोधार्य करके धन्वंतरी संजीवनी बूटी की खोज में निकल पड़े। बूटी खोजते-खोजते पूरा एक वर्ष व्यतीत हो गया। उन्होंने वन के कोने-कोने में संजीवनी बूटी को खूब खोजा। इस अंतराल में लगभग एक हजार बूटियों को उन्होंने खोजा और उनकी परीक्षा कर डाली, पर संजीवनी का पता नहीं चला। इधर उनका फोड़ा बढ़ता ही जा रहा था। 
इतने दिन के कठोर परिश्रम से निढाल होकर वे एक दिन आश्रम के अधिष्ठाता के पास पहुंचे। आश्रम के अधिष्ठाता आचार्य धन्वंतरी की असफलता ताड़ गए। सिर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने धन्वंतरी से धैर्य रखने को कहा। दूसरे दिन वे स्वयं धन्वंतरी को लेकर एक वन में पहुंचे और संजीवनी बूटी तुरंत खोज निकाली। उसे फोड़े पर लगा दिया। 
संजीवनी बूटी के असर से धीरे-धीरे फोड़ा ठीक होने लगा। एक दिन अवसर पाकर धन्वंतरी ने आचार्य से पूछा, 'गुरुजी! जब आपको संजीवनी बूटी मिलने के स्थान का ठीक-ठीक पता ही था तो फिर आपने मुझे एक वर्ष तक क्यों भटकाया?' 

Saturday, August 6, 2016

एक सफ़र

एक अंग्रेज ट्रेन से सफ़र कर रहा था ..... सामने एक बच्चा बैठा था... अंग्रेज ने बच्चे से पूछा यहाँ  सबसे ज्यादा खतरनाक कौन सी समाज  हैं ??? बच्चा:" महाराष्ट्रीयन,पंजाबी, गुजराती, हरयाणवी,और सबसे ज्यादा तो  लाला कायस्थ अंग्रेज : "क्यों ... क्या ये बाकी कम खतरनाक हैं क्या ???" बच्चा : " नहीं ... ये सब खुद में महाभारत हैं ....." अंग्रेज : 'ओह ~~~ इनके पास जाना डेंजरस है'.. [कुछ देर पश्चात] अंग्रेज : 'मैं कैसे जान सकता हूँ कि कौन सा व्यक्ति कितना खतरनाक है ?' बच्चा: 'बैठा रह शान्ति से ... अभी दस घंटे के सफ़र में सबसे मिलवा दूंगा'.... कुछ ही देर बाद हरियाणा का एक चौधरी मूंछों पे ताव देता हुआ बैठ गया । बच्चा: 'भाई ये हरियाणवी है ...' अंग्रेज : 'इससे बात कैसे करूँ?' बच्चा: "चुपचाप बैठा रह और मूंछों पर ताव देता रह.. ये खुद बात करेगा तेरे से'... अंग्रेज ने अपनी सफाचट मूछों पर ताव दिया.. चौधरी उठा और अंग्रेज के दो कंटाप जड़े - 'बिन खेती के ही हल चला रिया है तू ..? थोड़ी देर बाद एक मराठी आ के बैठ गया ... बच्चा : 'भाई ये मराठी है ...' अंग्रेज : 'इससे बात कैसे करूँ ?' बच्चा : 'इससे बोल कि बाम्बे बहुत बढ़िया ..' अंग्रेज ने मराठी से यही बोल दिया.. मराठी उठा और थप्पड़ लगाया - "साले बाम्बे नहीं मुम्बई ... समझा क्या" थोड़ी देर बाद एक गुजराती सामने आकर बैठ गया। बच्चा : 'भाई ये गुजराती है ...' अंग्रेज गाल सहलाते हुए : 'इससे कैसे बात करूँ ?' बच्चा : 'इससे बोल सोनिया गांधी जिंदाबाद ...' अंग्रेज ने गुजराती से यही कह दिया गुजराती ने कसकर घूंसा मारा - 'नरेन्द्र मोदी जिंदाबाद...एक ही विकल्प- मोदी'..
थोड़ी देर बाद एक सरदार जी आकर बैठ गए । बच्चा : 'देख भाई ये पंजाबी है ...' अंग्रेज ने कराहते हुए पूछा - 'इससे कैसे बात करूँ ..' बच्चा : 'बात न कर बस पूछ ले कि 12 बज गए क्या ?' अंग्रेज ने ठीक यही किया ... अंग्रेज : 'ओ सरदार जी 12 बज गए क्या ? सरदार जी ने आव देखा न ताव अंग्रेज को उठा के नीचे पटक दिया... सरदार : साले खोतया नू ... तेरे को मैं मनमोहन सिंह लगता हूँ जो चुप रहूँगा'.... पहले से परेशान अंग्रेज बिलबिला गया . खीझ के बच्चे से  बोला : इन सबसे
मिलवा दिया अब लाला कायस्थ से भी मिलवा दो बच्चा  बोला - "तेरे को पिटवा कौन रहा । है

Thursday, August 4, 2016

भावनाऐं ही भाग्‍य

राह पर चलते भिखारियों को देखकर हमेंशा दु:खी होता और भगवान से प्रार्थना करता कि:
हे भगवान! मुझे इस लायक तो बनाता कि मैं इन बेचारे भिखारियों को कम से कम 1 रूपया दे सकता।
भगवान ने उसकी सुन ली और उसे एक अच्‍छी Multi-National Company में कम्‍पनी में Job मिल गई। अब उसे जब भी कोई भिखारी दिखाई देता, वह उन्‍हें 1 रूपया अवश्‍य देता, लेकिन वह 1 रूपया देकर सन्‍तुष्‍ट नहीं था। इसलिए वह जब भी भिखारियों को 1 रूपए का दान देता, ईश्‍वर से प्रार्थना करता कि:
हे भगवान! 1 रूपए में इन बेचारों का क्‍या होगा? कम से कम मुझे ऐसा तो बनाता कि मैं इन बेचारे भिखारियों को 10 रूपया दे सकता। एक रूपए में आखिर होता भी क्‍या है।
संयोग से कुछ समय बाद उसी MNC (Multi-National Company) में उसकी तरक्‍की हो गई और वह उसी कम्‍पनी में Manager बन गया, जिससे उसका Standard High होगा। उसने अच्‍छी सी महंगी Car खरीद ली, बडा घर बनवा लिया। फिर भी उसे जब भी कोई भिखारी दिखाई देता, वह अपनी अपनी कार रोककर उन्‍हें 100 रूपया दे देता, मगर फिर भी उसे खुशी नहीं थी। वह अब भी भगवान से प्रार्थना करता कि:
100 रूपए में इन बेचारों का क्‍या भला होता होगा? काश मैं ऐसा बन पाता कि जो भी भिखारी मेरे सामने से गुजरता, वो भिखारी ही न रह जाता।
संयोग से नियति ने फिर उसका साथ दिया और वो Corporate जगत का Chairman चुन लिया गया। अब उसके पास धन की कोई कमी नहीं थी। मंहगी Car, बंगला, First Class AC Rail Ticket आदि उसके लिए अब पुरानी बातें हो चुकी थीं। अब वह हमेंशा अपने स्‍वयं के Private हवाई जहाज में ही सफर करता था और एक शहर से दूसरे शहर नहीं बल्कि एक देश से दूसरे देश में घूमता था, लेकिन उसकी प्रार्थनाऐं अभी भी वैसी ही थीें, जैसी तब थीं, जब वह एक गरीब व्‍यक्ति था।

Wednesday, August 3, 2016

आप भी बुढे होगे


एक बेटा अपने वृद्ध पिता को रात्रि भोज के लिए एक अच्छे रेस्टॉरेंट में लेकर गया।
खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया।

रेस्टॉरेंट में बैठे दुसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को घृणा की नजरों से देख रहे थे लेकिन वृद्ध का बेटा शांत था।

खाने के बाद बिना किसी शर्म के बेटा, वृद्ध को वॉश रूम ले गया। उसके कपड़े साफ़ किये, उसका चेहरा साफ़ किया, उसके बालों में कंघी की,चश्मा पहनाया और फिर बाहर लाया।

सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे।बेटे ने बिल पे किया और वृद्ध के साथ 
बाहर जाने लगा।

तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने बेटे को आवाज दी और उससे पूछा " क्या तुम्हे नहीं लगता कि यहाँ 
अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो ?? "

बेटे ने जवाब दिया" नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़ कर 
नहीं जा रहा। "

वृद्ध ने कहा " बेटे, तुम यहाँ 
छोड़ कर जा रहे हो, 
प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा (सबक) और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद (आशा)। "

दोस्तो आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता पिता को अपने साथ बाहर ले जाना पसँद नही करते

और कहते है क्या करोगो आप से चला तो जाता
नही ठीक से खाया भी नही जाता आपतो घर पर ही रहो वही अच्छा होगा.

क्या आप भूल गये जब आप छोटे थे और आप के माता पिता आप को अपनी गोद मे उठा कर ले जाया 
करते थे,

आप जब ठीक से खा नही 
पाते थे तो माँ आपको अपने हाथ से खाना खिलाती थी और खाना गिर जाने पर डाँट नही प्यार जताती थी

फिर वही माँ बाप बुढापे मे बोझ क्यो लगने लगते है???
माँ बाप भगवान का रूप होते है उनकी सेवा कीजिये और प्यार दीजिये...

क्योकि एक दिन आप भी बुढे होगे फिर अपने बच्चो से सेवा की उम्मीद मत करना.

Tuesday, August 2, 2016

जीवन का आनन्द

एक पुराना ग्रुप कॉलेज छोड़ने के बहुत दिनों बाद मिला।
वे सभी अच्छे केरियर के साथ खूब पैसे कमा रहे थे।

वे अपने सबसे फेवरेट प्रोफेसर के घर जाकर मिले।

प्रोफेसर साहब उनके काम के बारे में पूछने लगे। धीरे-धीरे बात लाइफ में बढ़ती स्ट्रेस और काम के प्रेशर पर आ गयी।

इस मुद्दे पर सभी एक मत थे कि, भले वे अब आर्थिक रूप से बहुत मजबूत हों पर उनकी लाइफ में अब वो मजा नहीं रह गया जो पहले हुआ करता था।

प्रोफेसर साहब बड़े ध्यान से उनकी बातें सुन रहे थे,  वे अचानक ही उठे और थोड़ी देर बाद किचन से लौटे और बोले,

"डीयर स्टूडेंट्स, मैं आपके लिए गरमा-गरम
कॉफ़ी बना कर लाया हूँ ,
लेकिन प्लीज आप सब किचन में जाकर अपने-अपने लिए कप्स लेते आइये।"

लड़के तेजी से अंदर गए, वहाँ कई तरह के कप रखे हुए थे, सभी अपने लिए अच्छा से अच्छा कप उठाने में लग गये,

किसी ने क्रिस्टल का शानदार कप उठाया तो किसी ने पोर्सिलेन का कप सेलेक्ट किया, तो किसी ने शीशे का कप उठाया।

सभी के हाथों में कॉफी आ गयी । तो प्रोफ़ेसर साहब बोले,

"अगर आपने ध्यान दिया हो तो, जो कप दिखने में अच्छे और महंगे थे। आपने उन्हें ही चुना और साधारण दिखने वाले कप्स की तरफ ध्यान नहीं दिया।

जहाँ एक तरफ अपने लिए सबसे अच्छे की चाह रखना
एक नॉर्मल बात है। वहीँ दूसरी तरफ ये हमारी लाइफ में प्रोब्लम्स और स्ट्रेस लेकर आता है।

फ्रेंड्स, ये तो पक्का है कि कप, कॉफी की क्वालिटी
में कोई बदलाव नहीं लाता।
ये तो बस एक जरिया है जिसके माध्यम से आप कॉफी पीते है।
असल में जो आपको चाहिए था। वो बस कॉफ़ी थी, कप नहीं,

पर फिर भी आप सब सबसे अच्छे कप के पीछे ही गए
और अपना लेने के बाद दूसरों के कप निहारने लगे।"

अब इस बात को ध्यान से सुनिये ...
"ये लाइफ कॉफ़ी की तरह है ;
हमारी नौकरी, पैसा, पोजीशन, कप की तरह हैं।

ये बस लाइफ जीने के साधन हैं, खुद लाइफ नहीं !
और हमारे पास कौन सा कप है।
ये न हमारी लाइफ को डिफाइन करता है और ना ही उसे चेंज करता है।

इसीलिए कॉफी की चिंता करिये कप की नहीं।"

"दुनिया के सबसे खुशहाल लोग वो नहीं होते ,
जिनके पास सबकुछ सबसे बढ़िया होता है,
खुशहाल वे होते हैं, जिनके पास जो होता है ।
बस उसका सबसे अच्छे से यूज़ करते हैं,
एन्जॉय करते हैं और भरपूर जीवन जीते हैं!

सदा हंसते रहो। सादगी से जियो।
सबसे प्रेम करो। सबकी केअर करो।
जीवन का आनन्द लो

Thursday, July 28, 2016

बीते हुए दिन

कभी हमारे जहाज भी चला करते थे। हवा में भी। पानी में भी। दो दुर्घटनाएं हुई। सब कुछ डूब गया।
जहाज हवा मे उड़ाना छूट गया। पानी में तैराना छूट गया। एक बार क्लास में हवाई जहाज उड़ाया।
मैडम के पिछबाड़े से टकराया। स्कूल से निकलने की नौबत आ गई। बहुत फजीहत हुई। कसम दिलाई गई।
औऱ जहाज उडा़ना छूट गया। वारिश के मौसम में,मां ने अठन्नी दी। चाय के लिए दूध लाना था।कोई मेहमान आया था। हमने गली की नाली में तैरते अपने जहाज में बिठा दी। तैरते जहाज के साथ हम चल रहे थे।
ठसक के साथ।खुशी खुशी। अचानक तेज बहाब आया। जहाज डूब गया। साथ में अठन्नी भी डूब गई।
ढूंढे से ना मिली। मेहमान बिना चाय पीये चला गया। फिर जमकर ठुकाई हुई। घंटे भर मुर्गा बनाया गया।
औऱ हमारा पानी में जहाज तैराना भी बंद हो गया।  आज प्लेन औऱ क्रूज के सफर की बातें उन दिनों की याद दिलाती हैं।  बच्चे ने आठ हजार का मोबाइल गुमाया तो मां बोली, कोई  बात नहीं, पापा दूसरा दिला देंगे।
हमें अठन्नी पर मिली सजा याद आ गई।  फिर भी आलम यह है कि आज भी हमारे सर मां-बाप के
चरणों में श्रद्धा से छुकते हैं। औऱ हमारे बच्चे 'यार पापा,यार मम्मी' कहकर बात करते हैं। हम प्रगतिशील से प्रगतिवान हो गये हैं।
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन।

Tuesday, July 26, 2016

एकता की ताकत

एक व्यापारी था, बहुत ही बुद्धिमान और बहूत ही धनवान, उसका करोड़ो का कारोबार था, उसके शहर में आए दिन कोई न कोई चोरी होती रहती थी ,
मगर चोर कभी भी पकड़ा नही गया, क्योंकि वो हर बार चकमा देकर भाग जाता था,
उस व्यापारी ने अपने बारे में ये अफवाह फेला रखी थी की रत को उसे कुछ दिखाई नही देता क्योंकि उसे रतोंधी नामक बीमारी हे, उधर जब चोरों को ये पता चला की उसे रतोंधी नामक बीमारी हे, तो उन चोरो ने व्यापारी के घर चोरी करने की योजना बनाई, अभी तक चोर उसके घर पर चोरी करने में सफल नही हो सके थे,
एक रात जब चोर उस व्यापारी के घर चोरी करने पहोंचा तो व्यापारी की अंक खुल गई, 
और उसने चोर को देख लिया पर सोचा चोर के पास कोई हथियार भी हो सकता हे, फिर उसने एक चाल सोची, और वो अपने पास सो रही अपनी पत्नी से जोर से बोला सुनती हो अभी अभी मेने एक सुंदर सपना देखा हे , पत्नी ने पूछा क्या देखा हे”, 
सुबहा होते ही कच्चे रेशम के दाम दोगुने होने वाले हें, अपने घर तो ढेर सारा रेशम का धागा हे न?”’ हाँ हे तो मगर रात को क्या करना हे, पत्नी ने पुच्छा ,
पत्नी को नही पता था की घर में चोर घुसा हुआ हे, पति ने इशारे से बताया की चोर खम्बे के पिच्छे छुपा हुआ हे, अगर मुझे रतोंधी नही होती तो इसी वक्त सारा धागा नाप कर देखता की आखिर कितना मुनाफा सूरज निकलते ही हो जाएगा,
रहने भी दो पत्नी बोली सुबहा ही नाप कर देखलेना, 
पति बोला क्या मुझे अपने ही घर में नही पता चलेगा की कोंसी चीज कन्हा हे आओ उठ कर नापे की रेशम कितना हे बस खम्बे के चरों और लपेट लपेट कर अंदाजा लगा लूँगा की धागा कितना हे.
ठीक हे में तो सो रही हु आप ही नाप लो, उसकी पत्नी ने कहा और सोने का नाटक करने लगी, इधर व्यापारी ने अन्धे पन का नाटक करते हुए रेशम को खम्बे के चरों और लपेटना शुरू करदिया, 
इस तरह वो खम्बे के पास से कई बार गुजरा जंहा चोर खम्बे से सटकर खड़ा था , व्यापारी बार बार ये ही दिखा रहा था की उसे कुछ नही दिख रहा इस तरहां उसने खम्बे के कई चकर लगाये और चोर के लिए अब हिलना भी मुस्किल हो गया 
चोर ने ये सोचा था की रेशम के धागों को तोडकर वो एक दम से भाग निकलेगा, मगर उन कोमल धागों ने मिलकर इतना मजबूत रूप धारण कर लिया की वो उनमें बंध कर ही रहगया,
इसके बाद व्यापारी ने पुलिस को फोन कर दिया और चोर को उनके हवाले कर दिया, चोर ने ये जाल लिया की कच्चे धागे जुडकर जब एक हो जाते हें तो वो भी मजबूत हो जाते हें, अर्थात एकता की ताकत सबसे मजबूत हे