Sunday, February 26, 2017

क्लास रूम

क्लास रूम में प्रोफेसर ने एक सीरियस टॉपिक पर चर्चा प्रारंभ की। जैसे ही वे ब्लैकबोर्ड पर कुछ लिखने के लिए पलटे तो तभी एक शरारती छात्र ने सीटी बजाई। प्रोफेसर ने पलटकर सारी क्लास को घूरते हुए " सीटी किसने मारी " पूछा, लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया। प्रोफेसर ने शांति से अपना सामान समेटा और आज की
क्लास समाप्त बोलकर, बाहर की तरफ बढ़े। स्टूडेंट्स खुश हो गए कि, चलो अब फ्री हैं। अचानक प्रोफेसर रुके, वापस अपनी टेबल पर पहुँचे और बोले---"  चलो, मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ , इससे हमारे बचे हुए समय का उपयोग भी हो जाएगा। " सभी स्टूडेंट्स उत्सुकता और इंटरेस्ट के साथ कहानी सुनने लगे। प्रोफेसर बोले---" कल रात मुझे नींद नहीं आ रही थी तो मैंने सोचा कि, कार में पेट्रोल भरवाकर ले आता हूँ जिससे सुबह मेरा समय बच जाएगा। पेट्रोल पम्प से टैंक फुल कराकर मैं आधी रात को सूनसान पड़ी सड़कों पर ड्राइव का आनंद लेने लगा। अचानक एक चौराहे के कार्नर पर मुझे एक बहुत खूबसूरत लड़की शानदार ड्रेस पहने हुए अकेली खड़ी नजर आई। मैंने कार रोकी और उससे पूछा कि, क्या मैं उसकी कोई सहायता कर सकता हूँ तो उसने कहा
कि, उसे उसके घर ड्रॉप कर दें तो बड़ी मेहरबानी होगी। मैंने सोचा नींद तो वैसे भी नहीं आ रही है , चलो, इसे इसके घर छोड़ देता हूँ। वो मेरी बगल की सीट पर बैठी। रास्ते में हमने बहुत बातें कीं। वो बहुत इंटेलिजेंट थी, ढेरों टॉपिक्स पर उसका कमाण्ड था। जब कार उसके बताए एड्रेस पर पहुँची तो उतरने से पहले वो बोली कि,
वो मेरे नेचर और व्यवहार से बेहद प्रभावित हुई है और मुझसे प्यार करने लगी है। मैं खुद भी उसे पसंद करने लगा था। मैंने उसे बताया कि, " मैं यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हूँ। " वो बहुत खुश हुई फिर उसने मुझसे मेरा मोबाइल नंबर लिया और अपना नंबर दिया। अंत में उसने बताया की, उसका भाई भी यूनिवर्सिटी में ही पढ़ता है और उसने मुझसे रिक्वेस्ट की कि, मैं उसके भाई का ख़याल रखूँ। मैंने कहा कि, " तुम्हारे भाई के लिए कुछ भी करने पर मुझे बेहद खुशी होगी। क्या नाम है तुम्हारे भाई का...?? ". इस पर लड़की ने कहा कि, " बिना नाम बताए भी आप उसे पहचान सकते हैं क्योंकि वो सीटी बहुत ज्यादा और बहुत बढ़िया बजाता है। " जैसे ही प्रोफेसर ने सीटी वाली बात की तो, तुरंत क्लास के सभी स्टूडेंट्स उस छात्र की तरफ देखने लगे, जिसने प्रोफ़ेसर की पीठ पर सीटी बजाई थी। प्रोफेसर उस लड़के की तरफ घूमे और उसे घूरते हुए बोले- " बेटा, मैंने अपनी पी एच डी की डिग्री, मटर छीलकर हासिल नहीं की है, हरामखोर निकल क्लास से बाहर...!! "

Friday, February 24, 2017

तुलसी विवाह

`तुलसी(पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी जिस का नाम वृंदा था, राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी.जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था.
वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी.
एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा``` -
स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठ कर``` आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प
नही छोडूगी। जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके, सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गये।
सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता ।
फिर देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है।
भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे
ही वृंदा ने अपने पति को देखा, वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए,जैसे ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?
उन्होंने पूँछा - आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया, तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई, उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, और भगवान तुंरत पत्थर के हो गये।
सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगे और प्रार्थना करने लगे यब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे
सती हो गयी।
उनकी राख से एक पौधा निकला तब
भगवान विष्णु जी ने कहा –आज से
इनका नाम तुलसी है, और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और में
बिना तुलसी जी के भोग```
```स्वीकार नहीं करुगा। तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे। और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में```
```किया जाता है.देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है !

Wednesday, February 22, 2017

कलियुग

पाण्डवों का अज्ञातवाश समाप्त होने में कुछ समय शेष रह गया था।
पाँचो पाण्डव एवं द्रोपदी जंगल मे छूपने का स्थान ढूंढ रहे थे,
उधर शनिदेव की आकाश मंडल से पाण्डवों पर नजर पड़ी शनिदेव के मन में विचार आया कि इन सब में बुद्धिमान कौन है परिक्षा ली जाय।
शनिदेव ने एक माया का महल बनाया कई योजन दूरी में उस महल के चार कोने थे, पूरब, पश्चिम, उतर, दक्षिण।
अचानक भीम की नजर महल पर पड़ी
और वो आकर्षित हो गया ,
भीम, यधिष्ठिर से बोला- भैया मुझे महल देखना है भाई ने कहा जाओ ।
भीम महल के द्वार पर पहुंचा वहाँ शनिदेव दरबान के रूप में खड़े थे,
भीम बोला- मुझे महल देखना है!
शनिदेव ने कहा- महल की कुछ शर्त है ।
1- शर्त महल में चार कोने हैं आप एक ही कोना देख सकते हैं।
2-शर्त महल में जो देखोगे उसकी सार सहित व्याख्या करोगे।
3-शर्त अगर व्याख्या नहीं कर सके तो कैद कर लिए जाओगे।
भीम ने कहा- मैं स्वीकार करता हूँ ऐसा ही होगा ।
और वह महल के पूर्व छोर की ओर गया ।
वहां जाकर उसने अद्भूत पशु पक्षी और फूलों एवं फलों से लदे वृक्षों का नजारा देखा,
आगे जाकर देखता है कि तीन कुंए है अगल-बगल में छोटे कुंए और बीच में एक बडा कुआ।
बीच वाला बड़े कुंए में पानी का उफान आता है और दोनों छोटे खाली कुओं को पानी से भर देता है। फिर कुछ देर बाद दोनों छोटे कुओं में उफान आता है तो खाली पड़े बड़े कुंए का पानी आधा रह जाता है इस क्रिया को भीम कई बार देखता है पर समझ नहीं पाता और लौटकर दरबान के पास आता है।
दरबान - क्या देखा आपने ?
भीम- महाशय मैंने पेड़ पौधे पशु पक्षी देखा वो मैंने पहले कभी नहीं देखा था जो अजीब थे। एक बात समझ में नहीं आई छोटे कुंए पानी से भर जाते हैं बड़ा क्यों नहीं भर पाता ये समझ में नहीं आया।
दरबान बोला आप शर्त के अनुसार बंदी हो गये हैं और बंदी घर में बैठा दिया।
अर्जुन आया बोला- मुझे महल देखना है, दरबान ने शर्त बता दी और अर्जुन पश्चिम वाले छोर की तरफ चला गया।
आगे जाकर अर्जुन क्या देखता है। एक खेत में दो फसल उग रही थी एक तरफ बाजरे की फसल दूसरी तरफ मक्का की फसल ।
बाजरे के पौधे से मक्का निकल रही तथा
मक्का के पौधे से बाजरी निकल रही । अजीब लगा कुछ समझ नहीं आया वापिस द्वार पर आ गया।
दरबान ने पुछा क्या देखा,
अर्जुन बोला महाशय सब कुछ देखा पर बाजरा और मक्का की बात समझ में नहीं आई।
शनिदेव ने कहा शर्त के अनुसार आप बंदी हैं ।
नकुल आया बोला मुझे महल देखना है ।
फिर वह उत्तर दिशा की और गया वहाँ उसने देखा कि बहुत सारी सफेद गायें जब उनको भूख लगती है तो अपनी छोटी बछियों का दूध पीती है उसे कुछ समझ नहीं आया द्वार पर आया ।
शनिदेव ने पुछा क्या देखा ?
नकुल बोला महाशय गाय बछियों का दूध पीती है यह समझ नहीं आया तब उसे भी बंदी बना लिया।
सहदेव आया बोला मुझे महल देखना है और वह दक्षिण दिशा की और गया अंतिम कोना देखने के लिए क्या देखता है वहां पर एक सोने की बड़ी शिला एक चांदी के सिक्के पर टिकी हुई डगमग डोले पर गिरे नहीं छूने पर भी वैसे ही रहती है समझ नहीं आया वह वापिस द्वार पर आ गया और बोला सोने की शिला की बात समझ में नहीं आई तब वह भी बंदी हो गया।
चारों भाई बहुत देर से नहीं आये तब युधिष्ठिर को चिंता हुई वह भी द्रोपदी सहित महल में गये।
भाइयों के लिए पूछा तब दरबान ने बताया वो शर्त अनुसार बंदी है।
युधिष्ठिर बोला भीम तुमने क्या देखा ?
भीम ने कुंऐ के बारे में बताया
तब युधिष्ठिर ने कहा- यह कलियुग में होने वाला है एक बाप दो बेटों का पेट तो भर देगा परन्तु दो बेटे मिलकर एक बाप का पेट नहीं भर पायेंगे।
भीम को छोड़ दिया।
अर्जुन से पुछा तुमने क्या देखा ??
उसने फसल के बारे में बताया
युधिष्ठिर ने कहा- यह भी कलियुग में होने वाला है वंश परिवर्तन अर्थात ब्राह्मण के घर शूद्र की लड़की और शूद्र के घर बनिए की लड़की ब्याही जायेंगी।
अर्जुन भी छूट गया।
नकुल से पूछा तुमने क्या देखा तब उसने गाय का वृतान्त बताया ।
तब युधिष्ठिर ने कहा- कलियुग में माताऐं अपनी बेटियों के घर में पलेंगी बेटी का दाना खायेंगी और बेटे सेवा नहीं करेंगे ।
तब नकुल भी छूट गया।
सहदेव से पूछा तुमने क्या देखा, उसने सोने की शिला का वृतांत बताया,
तब युधिष्ठिर बोले- कलियुग में पाप धर्म को दबाता रहेगा परन्तु धर्म फिर भी जिंदा रहेगा खत्म नहीं होगा।।  आज के कलयुग में यह सारी बातें सच साबित हो रही है

Saturday, February 18, 2017

मनुष्य का भाग्य

एक आदमी ने नारदमुनि से पूछा मेरे भाग्य में कितना धन है... नारदमुनि ने कहा - भगवान विष्णु से पूछकर कल बताऊंगा नारदमुनि ने कहा- 1 रुपया रोज तुम्हारे भाग्य में है... आदमी बहुत खुश रहने लगा... उसकी जरूरते 1 रूपये में पूरी हो जाती थी...एक दिन उसके मित्र ने कहा में तुम्हारे सादगी जीवन और खुश देखकर बहुत प्रभावित हुआ हूं और अपनी बहन की शादी तुमसे करना चाहता हूँ... आदमी ने कहा मेरी कमाई 1 रुपया रोज की है इसको ध्यान में रखना... इसी में से ही गुजर बसर करना पड़ेगा तुम्हारी बहन को... मित्र ने कहा कोई बात नहीं मुझे रिश्ता मंजूर है... अगले दिन से उस आदमी की कमाई 11 रुपया हो गई... उसने नारदमुनि को बुलाया की हे मुनिवर मेरे भाग्य में 1 रूपया लिखा है फिर 11 रुपये क्यो मिल रहे है...?? नारदमुनि ने कहा - तुम्हारा किसी से रिश्ता या सगाई हुई है क्या...?? हाँ हुई है... तो यह तुमको 10 रुपये उसके भाग्य के मिल रहे है इसको जोड़ना शुरू करो तुम्हारे विवाह में काम आएंगे... एक दिन उसकी पत्नी गर्भवती हुई और उसकी कमाई 31 रूपये होने लगी...फिर उसने नारदमुनि को बुलाया और कहा है मुनिवर मेरी और मेरी पत्नी के भाग्य के 11 रूपये मिल रहे थे लेकिन अभी 31 रूपये क्यों मिल रहे है...क्या मै कोई अपराध कर रहा हूँ...?? मुनिवर ने कहा- यह तेरे बच्चे के भाग्य के 20 रुपये मिल रहे है... हर मनुष्य को उसका प्रारब्ध (भाग्य) मिलता है... किसके भाग्य से घर में धन दौलत आती है हमको नहीं पता...लेकिन मनुष्य अहंकार करता है कि मैने बनाया,,,मैंने कमाया,,,
मेरा है,,, मै कमा रहा हूँ,,, मेरी वजह से हो रहा है... हे प्राणी तुझे नहीं पता तू किसके भाग्य का खा कमा रहा है

Tuesday, February 14, 2017

सकारात्मक दृष्टीकोण

एक 6 वर्षका लडका अपनी 4 वर्ष की छोटी बहन के साथ बाजार से जा रहा था।
अचानक से उसे लगा की,उसकी बहन पीछे रह गयी है।
वह रुका, पिछे मुडकर देखा तो जाना कि, उसकी बहन एक खिलौने के दुकान के सामने खडी कोई चीज निहार रही है।
लडका पीछे आता है और बहन से पूछता है, "कुछ चाहिये तुम्हे ?" लडकी एक गुडिया की तरफ उंगली उठाकर दिखाती है।
बच्चा उसका हाथ पकडता है, एक जिम्मेदार बडे भाई की तरह अपनी बहन को वह गुडिया देता है। बहन बहुत खुश हो गयी है।
दुकानदार यह सब देख रहा था, बच्चे का व्यवहार देखकर आश्चर्यचकित भी हुआ ....
अब वह बच्चा बहन के साथ काउंटर पर आया और दुकानदार से पूछा, "सर, कितनी कीमत है इस गुडिया की ?"
दुकानदार एक शांत व्यक्ति था, उसने जीवन के कई उतार देखे होते थें। उन्होने बडे प्यार और अपनत्व से बच्चे पूछा, "बताओ बेटे, आप क्या दे सकते हो?"
बच्चा अपनी जेब से वो सारी सीपें बाहर निकालकर दुकानदार को देता है जो उसने थोडी देर पहले बहन के साथ समुंदर किनारे से चुन चुन कर लायी थी।
दुकानदार वो सब लेकर यू गिनता है जैसे पैसे गिन रहा हो।
सीपें ( शिंपले ) गिनकर वो बच्चे की तरफ देखने लगा तो बच्चा बोला,"सर कुछ कम है क्या?"
दुकानदार :-" नही नही, ये तो इस गुडिया की कीमत से ज्यादा है, ज्यादा मै वापस देता हूं" यह कहकर उसने 4 सीपें रख ली और बाकी की बच्चे को वापिस दे दी।
बच्चा बडी खुशी से वो सीपें जेब मे रखकर बहन को साथ लेकर चला गया।
यह सब उस दुकान का कामगार देख रहा था, उसने आश्चर्य से मालिक से पूछा, " मालिक ! इतनी महंगी गुडिया आपने केवल 4 सीपों के बदले मे दे दी ?"
दुकानदार मुस्कुराते हुये बोला,
"हमारे लिये ये केवल सीप है पर उस 6 साल के बच्चे के लिये अतिशय मूल्यवान है। और अब इस उम्र मे वो नही जानता की पैसे क्या होते है ?
पर जब वह बडा होगा ना...
और जब उसे याद आयेगा कि उसने सीपों के बदले बहन को गुडिया खरीदकर दी थी, तब उसे मेरी याद जरुर आयेगी, वह सोचेगा कि,,,,,,
"यह विश्व अच्छे मनुष्यों से भरा हुआ है।"
यही बात उसके अंदर सकारात्मक दृष्टीकोण बढाने मे मदद करेगी और वो भी अच्छा इंन्सान बनने के लिये प्रेरित होगा।

Friday, February 10, 2017

हमारे माँ-बाप

गुप्ता जी जब लगभग पैंतालीस वर्ष के थे तब उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया था। लोगों ने दूसरी शादी की सलाह दी परन्तु गुप्ता जी ने यह कहकर मना कर दिया कि पुत्र के रूप में पत्नी की दी हुई भेंट मेरे पास हैं, इसी के साथ पूरी जिन्दगी अच्छे से कट जाएगी।
पुत्र जब वयस्क हुआ तो गुप्ता जी ने पूरा कारोबार पुत्र के हवाले कर दिया। स्वयं कभी मंदिर और आॅफिस में बैठकर समय व्यतीत करने लगे।
पुत्र की शादी के बाद गुप्ता जी और अधिक निश्चित हो गये। पूरा घर बहू को सुपुर्द कर दिया।
पुत्र की शादी के लगभग एक वर्ष बाद दुपहरी में गुप्ता जी खाना खा रहे थे, पुत्र भी ऑफिस से आ गया था और हाथ–मुँह धोकर खाना खाने की तैयारी कर रहा था।
उसने सुना कि पिता जी ने बहू से खाने के साथ दही माँगा और बहू ने जवाब दिया कि आज घर में दही उपलब्ध नहीं है। खाना खाकर पिताजी ऑफिस चले गये।
पुत्र अपनी पत्नी के साथ खाना खाने बैठा। खाने में प्याला भरा हुआ दही भी था। पुत्र ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और खाना खाकर स्वयं भी ऑफिस चला गया।
लगभग दस दिन बाद पुत्र ने गुप्ता जी से कहा- ‘‘ पापा आज आपको कोर्ट चलना है,आज आपका विवाह होने जा रहा है।’’
पिता ने आश्चर्य से पुत्र की तरफ देखा और कहा-‘‘बेटा मुझे पत्नी की आवश्यकता नही है और मैं तुझे इतना स्नेह देता हूँ कि शायद तुझे भी माँ की जरूरत नहीं है, फिर दूसरा विवाह क्यों?’’
पुत्र ने कहा ‘‘ पिता जी, न तो मै अपने लिए माँ ला रहा हूँ न आपके लिए पत्नी,
मैं तो केवल आपके लिये दही का इन्तजाम कर रहा हूँ।
कल से मै किराए के मकान मे आपकी बहू के साथ रहूँगा तथा ऑफिस मे एक कर्मचारी की तरह वेतन लूँगा ताकि आपकी बहू को दही की कीमत का पता चले।’’

Wednesday, February 8, 2017

ईश्वर का इंसाफ.

एक अमीर ईन्सान था। उसने समुद्र मेँ अकेले घूमने के लिए एक नाव बनवाई। छुट्टी के दिन वह नाव लेकर समुद्र की सेर करने निकला। आधे समुद्र तक पहुंचा ही था कि अचानक एक जोरदार तुफान आया।
उसकी नाव पुरी तरह से तहस-नहस हो गई लेकिन वह लाईफ जैकेट की मदद से समुद्र मेँ कूद गया। जब तूफान शांत हुआ तब वह तैरता-तैरता एक टापू पर पहुंचा। लेकिन वहाँ भी कोई नही था।
टापू के चारो और समुद्र के अलावा कुछ भी नजर नही आ रहा था। उस आदमी ने सोचा कि जब मैंने पूरी जिदंगी मेँ किसी का कभी भी बुरा नही किया तो मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ ?
उस ईन्सान को लगा कि खुदा ने मौत से बचाया तो आगे का रास्ता भी खुदा ही बताएगा। धीरे-धीरे वह वहाँ पर उगे झाड-फल-पत्ते खाकर दिन बिताने लगा।
अब धीरे-धीरे उसकी आस टूटने लगी, खुदा पर से उसका यकीन उठने लगा। फिर उसने सोचा कि अब पूरी जिंदगी यही इस टापू पर ही बितानी है तो क्यूँ ना एक झोपडी बना लूँ ?
फिर उसने झाड की डालियो और पत्तो से एक छोटी सी झोपडी बनाई। उसने मन ही मन कहा कि आज से झोपडी मेँ सोने को मिलेगा आज से बाहर नही सोना पडेगा।
रात हुई ही थी कि अचानक मौसम बदला बिजलियाँ जोर जोर से कड़कने लगी! तभी अचानक एक बिजली उस झोपडी पर आ गिरी और झोपडी धधकते हुए जलने लगी।
यह देखकर वह ईन्सान टूट गया। आसमान की तरफ देखकर बोला या खुदा ये तेरा कैसा इंसाफ है ? तूने मुज पर अपनी रहम की नजर क्यूँ नहीं की ?
फीर वह इन्सान हताश होकर सर पर हाथ रखकर रो रहा था। कि अचानक एक नाव टापू के पास आई नाव से उतरकर दो आदमी बाहर आये। और बोले कि हम तुम्हे बचाने आये हैं। दूर से इस वीरान टापू मे जलता हुआ झोपडा देखा तो लगा कि कोई उस टापू पर मुसीबत मेँ है।
अगर तुम अपनी झोपडी नही जलाते तो हमे पता नही चलता कि टापू पर कोई है। उस आदमी की आँखो से आँसू गिरने लगे। उसने खुदा से माफी माँगी और बोला कि "या रब मुझे क्या पता कि तूने मुझे बचाने के लिए मेरी झोपडी जलाई थी। यक़ीनन तू अपने बन्दों का हमेशा ख्याल रखता है। तूने मेरे सब्र का इम्तेहान लिया लेकिन मैं उसमे फ़ैल हो गया, मुझे माफ़ फरमा दे।"
दिन चाहे सुख के हों या दुख के,
खुदा अपने बन्दों के साथ हमेशा रहता हैं।

Monday, February 6, 2017

बुजुर्ग दंपति

रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने वाले लड़के की नजरें अचानक एक बुजुर्ग दंपति पर पड़ी। उसने देखा कि वो बुजुर्ग
पति अपनी पत्नी का हाथ पकड़कर उसे सहारा देते हुए चल रहा था । थोड़ी दूर जाकर वो दंपति एक खाली जगह
देखकर बैठ गए । कपड़ो के पहनावे से वो गरीब ही लग रहेथे  तभी ट्रेन के आने के संकेत हुए और वो चाय वाला अपने काम में लग गया। शाम में जब वो चाय वाला वापिस स्टेशन पर आया तो देखाकि वो बुजुर्ग दंपति अभी भी उसी जगह बैठे हुए है । वो उन्हें देखकर कुछ सोच में पड़ गया । देर रात तक जब चाय वाले ने उन बुजुर्ग
दंपति को उसी जगह पर देखा तो वो उनके पास गया और उनसे पूछने लगा: बाबा आप सुबह से यहाँ क्या कर रहे है ? आपको जाना कहाँ है ? बुजुर्ग पति ने अपना जेब से कागज का एक टुकड़ा निकालकर चाय वाले को दिया और कहा: बेटा हम दोनों में से किसी को पढ़ना नहीं आता,इस कागज में मेरे बड़े बेटे का पता लिखा हुआ है ।मेरे छोटे बेटे ने कहा था कि अगर भैया आपको लेने ना आ पाये तो किसी को भी ये पता बता देना, आपको सही
जगह पहुँचा देगा । चाय वाले ने उत्सुकतावश जब वो कागज खोला तो उसके होश उड़ गये । उसकी आँखों से एकाएक आंसूओं की धारा बहने लगी ।
.उस कागज में लिखा था कि.........
"कृपया इन दोनों को आपके शहर के किसी वृध्दाश्रम में
भर्ती करा दीजिए, बहुत बहुत
मेहरबानी होगी..."

Thursday, February 2, 2017

जीवन की सच्चाई

एक आदमी की चार पत्नियाँ थी । वह अपनी चौथी पत्नी  से  बहुत प्यार  करता था और उसकी खूब देखभाल करता व उसको सबसे श्रेष्ठ देता । वह अपनी तीसरी पत्नी से भी प्यार करता था और हमेशा उसे अपने  मित्रों  को  दिखाना  चाहता था । हालांकि उसे हमेशा डर था की वह कभी भी किसी दुसरे इंसान के साथ भाग सकती है   वह अपनी दूसरी पत्नी से भी प्यार करता था । जब भी उसे कोई परेशानी आती तो वे अपनी दुसरे नंबर की पत्नी के  पास  जाता  और  वो  उसकी  समस्या सुलझा देती । वह अपनी पहली पत्नी से प्यार नहीं करता था जबकि पत्नी उससे बहुत गहरा प्यार करती थी और उसकी खूब देखभाल करती । एक दिन वह बहुत बीमार पड़  गया और  जानता था की जल्दी ही वह मर जाएगा । उसने  अपने  आप से कहा, "मेरी चार पत्नियां हैं, उनमें से मैं एक को अपने साथ ले जाता हूँ..जब मैं मरूं तो वह मरने में मेरा साथ दे ।" तब उसने चौथी पत्नी से अपने साथ आने को कहा तो वह बोली, "नहीं, ऐसा तो हो ही नहीं सकता और चली गयी । उसने तीसरी पत्नी से पूछा तो वह बोली की, "ज़िन्दगी बहुत अच्छी है यहाँ जब तुम मरोगे तो मैं दूसरी शादी कर लूंगी ।" उसने दूसरी पत्नी से कहा तो वह बोली, "माफ़ कर दो, इस बार मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकती ।,ज्यादा से ज्यादा मैं  तुम्हारे दफनाने तक तुम्हारे साथ रह सकती हूँ ।" अब तक उसका दिल बैठ  सा  गया और  ठंडा  पड़ गया । तब एक आवाज़ आई, "मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूँ । तुम जहाँ जाओगे मैं तुम्हारे साथ चलूंगी ।" उस आदमी ने जब देखा तो  वह  उसकी पहली पत्नी थी । वह बहुत बीमार सी हो गयी थी खाने पीने के अभाव में । वह आदमी पश्चाताप के आंसूं के साथ बोला, "मुझे तुम्हारी अच्छी देखभाल  करनी चाहिए थी और मैं कर सकता था ।" दरअसल हम सब की चार पत्नियां हैं जीवन में ।
1. चौथी पत्नी हमारा शरीर है । हम चाहें जितना सजा लें संवार लें पर जब हम मरेंगे तो यह हमारा साथ छोड़ देगा ।
2. तीसरी पत्नी है हमारी  जमा  पूँजी, रुतबा । जब हम मरेंगे तो ये दूसरों के पास चले जायेंगे।
3. दूसरी पत्नी है हमारे दोस्त व रिश्तेदार । चाहें वे कितने भी करीबी क्यूँ ना हों हमारे जीवन काल में पर मरने के बाद हद से हद वे हमारे अंतिम संस्कार तक साथ रहते हैं ।
4. पहली पत्नी हमारी आत्मा है, जो सांसारिक मोह माया में हमेशा उपेक्षित रहती है ।
यही वह चीज़ है जो हमारे साथ रहती है जहाँ भी हम जाएँ.......कुछ देना है तो  इसे दो.... देखभाल करनी है तो इसकी करो.... प्यार करना है तो इससे
करो...
         मिली थी जिन्दगी
      किसी के 'काम' आने के लिए..

           पर वक्त बीत रहा है
     कागज के टुकड़े कमाने के लिए..
   क्या करोगे इतना पैसा कमा कर..?
 ना कफन मे 'जेब' है ना कब्र मे 'अलमारी..'

       और ये मौत के फ़रिश्ते तो
           'रिश्वत' भी नही लेते...  
 

Tuesday, January 31, 2017

पापा से गुस्से

बड़े गुस्से से मैं घर से चला आया ..

इतना गुस्सा था की गलती से पापा के ही जूते पहन के निकल गया
मैं आज बस घर छोड़ दूंगा, और तभी लौटूंगा जब बहुत बड़ा आदमी बन जाऊंगा ...

जब मोटर साइकिल नहीं दिलवा सकते थे, तो क्यूँ इंजीनियर बनाने के सपने देखतें है .....
आज मैं पापा का पर्स भी उठा लाया था .... जिसे किसी को हाथ तक न लगाने देते थे ...

मुझे पता है इस पर्स मैं जरुर पैसो के हिसाब की डायरी होगी ....
पता तो चले कितना माल छुपाया है .....
माँ से भी ...

इसीलिए हाथ नहीं लगाने देते किसी को..

जैसे ही मैं कच्चे रास्ते से सड़क पर आया, मुझे लगा जूतों में कुछ चुभ रहा है ....
मैंने जूता निकाल कर देखा .....
मेरी एडी से थोडा सा खून रिस आया था ...
जूते की कोई कील निकली हुयी थी, दर्द तो हुआ पर गुस्सा बहुत था ..

और मुझे जाना ही था घर छोड़कर ...

जैसे ही कुछ दूर चला ....
मुझे पांवो में गिला गिला लगा, सड़क पर पानी बिखरा पड़ा था ....
पाँव उठा के देखा तो जूते का तला टुटा था .....

जैसे तेसे लंगडाकर बस स्टॉप पहुंचा, पता चला एक घंटे तक कोई बस नहीं थी .....

मैंने सोचा क्यों न पर्स की तलाशी Suren....

मैंने पर्स खोला, एक पर्ची दिखाई दी, लिखा था..
लैपटॉप के लिए 40 हजार उधार लिए
पर लैपटॉप तो घर मैं मेरे पास है ?

दूसरा एक मुड़ा हुआ पन्ना देखा, उसमे उनके ऑफिस की किसी हॉबी डे का लिखा था
उन्होंने हॉबी लिखी अच्छे जूते पहनना ......
ओह....अच्छे जुते पहनना ???
पर उनके जुते तो ...........!!!!

माँ पिछले चार महीने से हर पहली को कहती है नए जुते ले लो ...
और वे हर बार कहते "अभी तो 6 महीने जूते और चलेंगे .."
मैं अब समझा कितने चलेंगे

......तीसरी पर्ची ..........
पुराना स्कूटर दीजिये एक्सचेंज में नयी मोटर साइकिल ले जाइये ...
पढ़ते ही दिमाग घूम गया.....
पापा का स्कूटर .............
ओह्ह्ह्ह

मैं घर की और भागा........
अब पांवो में वो कील नही चुभ रही थी ....

मैं घर पहुंचा .....
न पापा थे न स्कूटर ..............
ओह्ह्ह नही
मैं समझ गया कहाँ गए ....

मैं दौड़ा .....
और
एजेंसी पर पहुंचा......
पापा वहीँ थे ...............

मैंने उनको गले से लगा लिया, और आंसुओ से उनका कन्धा भिगो दिया ..

.....नहीं...पापा नहीं........ मुझे नहीं चाहिए मोटर साइकिल...

बस आप नए जुते ले लो और मुझे अब बड़ा आदमी बनना है..

वो भी आपके तरीके से ...।।

"माँ" एक ऐसी बैंक है जहाँ आप हर भावना और दुख जमा कर सकते है...

और

"पापा" एक ऐसा क्रेडिट कार्ड है जिनके पास बैलेंस न होते हुए भी हमारे सपने पूरे करने की कोशिश करते है...
 

Sunday, January 29, 2017

मूर्ख है हम

एक बार एक अजनबी किसी के घरगया। वह अंदर गया और मेहमान कक्ष मे बैठ गया। वह खाली हाथ आया था तो उसने सोचा कि कुछ उपहार देना अच्छा रहेगा। तो उसने वहा टंगी एक पेन्टिंग उतारी और जब घर का मालिक आया, उसने पेन्टिंग देते हुए कहा, यह मै आपके लिए लाया हुँ। घर का मालिक, जिसे पता था कि यह मेरी चीज मुझे ही भेंट दे रहा है, सन्न रह गया !!!!! अब आप ही बताएं कि क्या वह भेंट पा कर, जो कि पहले
से ही उसका है, उस आदमी को खुश होना चाहिए ?? मेरे ख्याल से नहीं.... लेकिन यही चीज हम भगवान के साथ
भी करते है। हम उन्हे रूपया, पैसा चढाते है और हर चीज जो उनकी ही बनाई है, उन्हें भेंट करते हैं! लेकिन मन मे भाव रखते है की ये चीज मै भगवान को दे रहा हूँ! और सोचते हैं कि ईश्वर खुश हो जाएगें। मूर्ख है हम! हम यह नहीं समझते कि उनको इन सब चीजो कि जरुरत नही। अगर आप सच मे उन्हे कुछ देना चाहते हैं तो अपनी श्रद्धा दीजिए, उन्हे अपने हर एक श्वास मे याद कीजिये और विश्वास मानिए प्रभु जरुर खुश होगा !! अजब हैरान हूँ भगवन तुझे कैसे रिझाऊं मैं; कोई वस्तु नहीं ऐसी जिसे तुझ पर चढाऊं मैं । भगवान ने जवाब दिया :" संसार की हर वसतु तुझे मैनें दी है। तेरे पास अपनी चीज सिरफ तेरा अहंकार है, जो मैनें नहीं दिया । उसी को तूं मेरे अरपण कर दे। तेरा
जीवन सफल हो

Friday, January 27, 2017

अंजुलि के फूल

युद्ध में अब तो बताओ संजय आज क्या हुआ रणभूमि में । "
" जी महाराज आज तो पांडव सेना बहुत बहादुरी से लड़ी कौरव सेना के बहुत से सैनिक और कुछ योद्धा भी मारे गये । "
" क्या पांडवो को कोई नुकसान नहीं पहुंचा ? "
" युद्ध में नुकसान तो होता ही है महाराज उनके भी कुछ सैनिक मारे गये । "

 महाराज जूता लेकर संजय पर पिल पड़े " भूतनी के खाता है हमारा और गाता है दुश्मन का । ये खबर तू पहले नहीं बोल सकता था । "
 जैसे तैसे जान छुड़ाकर संजय अलग हुए और प्रार्थना की " हे वासुदेव इस मुसीबत से बचाओ भले मुझे अपने यहां रख लो गाय गोरू के सानी पानी कर दिया करेंगे । "
 केशव मुस्कुराये " बेटा तू तो अच्छा भला टमटम चला रहा था , ये हर्षा भोगले बनने की खुजली तुझे खुद ही हुई थी अब भुगतो । "
 संजय बिलबिला उठे " माधव मजे मत लो इस झंझट से मुक्ति का उपाय बताओ । "
" बहुत आसान उपाय है देशभक्त बनो खबर ऐसे सुनाओ जिसमें कौरव की बड़ाई हो और पांडव की बुराई । "
 शाम को फिर जब महाराज ने युद्ध का हाल पूछा तो संजय ने सुनाआ " महाराज युद्ध की विभीषिका के बीच भी युवराज दुशासन शांत चित्त है उन्होंने भीम से कहा अगर मेरे कलेजे का खून पीने से ही आपको संतुष्टि मिलती है तो लो पिलो भाई । "
 धृतराष्ट प्रसन्न होते हुए बोले " हां वो बड़ा शांत लड़का है भाईयों का बड़ा आदर करता है मैंने देखा है वो दुर्योधन की भी हर बात मानता था । खैर तुम आगे सुनाओ । "
संजय उत्साहित होते हुए बोला " महाराज तब दुशासन ने अपना सीना खोल दिया और भल्ल भल्ल खून बहने रगा । लेकिन वो मोटी बुद्धि भीम देह ओतना बड़ा है लेकिन बुद्धि ढ़ेला भर भी नहीं है । खून लेने के लिए बाल्टी लोटा या गिलास कुछ लेके ही नहीं आया था । चुरूआ में खून लेकर द्रौपड़ी की तरफ दौड़ पड़ा । हा हा महाराज मुझे तो हंसी आ रही है कहाँ तेरह साल ने बिना धुले केश और कहाँ चुरूआ भर खून अरे इतना दिन में तो एकदम जट्टा हो गया होगा । शैम्पू भी करेगी तो कम से कम डेढ़ किलो शैम्पू लगेगा ।
देखिए इतना पर भी कहीं पांडवो को अक्ल आ जाए और युद्ध बंद हो जाए । लेकिन एक बात है महाराज शांति के लिए दुशासन का ये प्रयास इतिहास सदैव याद रखेगा । "
 महाराज गदगद होते हुए गले से मोतीयों की माला उतारकर संजय को देते हुए बोले " वाह संजय क्या खबर सुनाई आज उन सारे लोगों का मुंह बंद हो जाएगा जो कहते थे कि युद्ध का कारण कौरव हैं । अंतिम समय तक हमने युद्ध टालने की बहुत कोशिश की युद्ध शुरू के बाद भी दुशासन ने जान देकर भी इसे रोकने की कोशिश की । जिस किसी के मन में शांति की चाह होगी वो दुशासन का ये बलिदान अवश्य याद रखेगा । "
 संजय एक हाथ में मोतियों की माला लिए दुसरे हाथ से दोपहर की चोट सहलाते हुए मुस्कुरा उठा ।

Wednesday, January 25, 2017

बाँट कर खानेवाला कभी भूखा नहीं मरता

एक डलिया में संतरे बेचती बूढ़ी औरत से एक युवा अक्सर संतरे खरीदता । अक्सर, खरीदे संतरों से एक संतरा निकाल उसकी एक फाँक चखता और कहता, "ये कम मीठा लग रहा है, देखो !" बूढ़ी औरत संतरे को चखती और प्रतिवाद करती "ना बाबू मीठा तो है!" वो उस संतरे को वही छोड़,बाकी संतरे ले गर्दन झटकते आगे बढ़ जाता। युवा अक्सर अपनी पत्नी के साथ होता था, एक दिन पत्नी नें पूछा "ये संतरे हमेशा मीठे ही होते हैं, पर यह
नौटंकी तुम हमेशा क्यों करते हो ? "युवा ने पत्नी को एक मधुर मुस्कान के साथ बताया - "वो बूढ़ी माँ संतरे बहुत मीठे बेचती है, पर खुद कभी नहीं खाती, इस तरह मै उसे संतरा खिला देता हूँ । एक दिन, बूढ़ी माँ से, उसके पड़ोस में सब्जी बेचनें वाली औरत ने सवाल किया, ये झक्की लड़का संतरे लेते इतनी चख चख करता है, पर संतरे तौलते हुए मै तेरे पलड़े को देखती हूँ, तुम हमेशा उसकी चख चख में, उसे ज्यादा संतरे तौल देती है । बूढ़ी माँ नें साथ सब्जी बेचने वाली से कहा - "उसकी चख चख संतरे के लिए नहीं, मुझे संतरा खिलानें को लेकर
होती है, वो समझता है में उसकी बात समझती नही,मै बस उसका प्रेम देखती हूँ, पलड़ो पर संतरे अपनें आप बढ़ जाते हैं । मेरी हैसीयत से ज्यादा मेरी थाली मे तूने परोसा है. तू लाख मुश्किलें भी दे दे मालिक, मुझे तुझपे भरोसा है. एक बात तो पक्की है की... छीन कर खानेवालों का कभी पेट नहीं भरता और बाँट कर खानेवाला कभी भूखा नहीं मरता...!!!

Monday, January 23, 2017

"गुरुर"

 किसी राजा के पास एक बकरा था । एक बार उसने एलान किया की जो कोई इस बकरे को जंगल में चराकर तृप्त करेगा मैं उसे आधा राज्य दे दूंगा। किंतु बकरे का पेट पूरा भरा है या नहीं इसकी परीक्षा मैं खुद करूँगा।
इस एलान को सुनकर एक मनुष्य राजा के पास आकरकहने लगा कि बकरा चराना कोई बड़ी बात नहीं है।
वह बकरे को लेकर जंगल में गया और सारे दिन उसे घास चराता रहा,, शाम तक उसने बकरे को खूब घास खिलाई और फिर सोचा की सारे दिन इसने इतनी घास खाई है अब तो इसका पेट भर गया होगा तो अब इसको राजा के पास ले चलूँ,, बकरे के साथ वह राजा के पास गया,, राजा ने थोड़ी सी हरी घास बकरे के सामने रखीतो बकरा उसे खाने लगा। इस पर राजा ने उस मनुष्य से कहा की तूने उसे पेट भर खिलाया ही नहीं वर्ना वह घास क्यों खाने लगता। बहुत जनो ने बकरे का पेट भरने का प्रयत्न किया किंतु ज्यों ही दरबार में उसके सामने घास डाली जाती तो वह फिर से खाने लगता। एक विद्वान् ब्राह्मण ने सोचा इस एलान का कोई तो रहस्य है, तत्व है,, मैं युक्ति से काम लूँगा,,वह बकरे को चराने के लिए ले गया। जब भी बकरा घास खाने के लिए जाता तो वह उसे लकड़ी से मारता,, सारे दिन में ऐसा कई बार हुआ,, अंत में बकरे ने सोचा की यदि मैं घास खाने का प्रयत्न करूँगा तो मार खानी पड़ेगी। शाम को वह ब्राह्मण बकरे को लेकर राजदरबार में लौटा, बकरे को तो उसने बिलकुल घास नहीं खिलाई थी फिर भी राजा से कहा मैंने इसको भरपेट खिलाया है। अत: यह अब बिलकुल घास नहीं खायेगा,, लो कर लीजिये परीक्षा.... राजा ने घास डाली लेकिन उस बकरे ने उसे खाया तो क्या देखा और सूंघा तक नहीं.... बकरे के मन में यह बात बैठ गयी थी कि अगर घास खाऊंगा तो मार पड़ेगी.... अत: उसने घास नहीं खाई.... मित्रों " यह बकरा हमारा मन ही है " बकरे को घास चराने ले जाने वाला ब्राह्मण " आत्मा" है। राजा "परमात्मा" है। मन को मारो नहीं,,, मन पर अंकुश रखो.... मन सुधरेगा तो जीवन भी सुधरेगा। अतः मन को विवेक रूपी लकड़ी से रोज पीटो..कमाई छोटी या बड़ी हो सकती है...पर रोटी की साईज़ लगभग सब घर में
एक जैसी ही होती है...!!
 बहुत सुन्दर सन्देश
अगर आप किसी को छोटा देख रहे हो, तो आप उसे; या तो "दूर" से देख रहे हो, या अपने "गुरुर" से देख रहे हो !

Wednesday, January 18, 2017

जो होता है, अच्छे के लिए होता

एक बार भगवान से उनका सेवक कहता है, भगवान- आप एक जगह खड़े-खड़े थक गये होंगे, एक दिन के लिए मैं आपकी जगह मूर्ति बन कर खड़ा हो जाता हूं, आप मेरा रूप धारण कर घूम आओ l भगवान मान जाते हैं, लेकिन शर्त रखते हैं कि जो भी लोग प्रार्थना करने आयें, तुम बस उनकी प्रार्थना सुन लेना कुछ बोलना नहीं, मैंने उन सभी के लिए प्लानिंग कर रखी है, सेवक मान जाता है l सबसे पहले मंदिर में बिजनेस मैन आता है और
कहता है, भगवान मैंने एक नयी फैक्ट्री डाली है, उसे खूब सफल करना l वह माथा टेकता है, तो उसका पर्स नीचे
गिर जाता है l वह बिना पर्स लिये ही चला जाता है l सेवक बेचैन हो जाता है. वह सोचता है कि रोक कर उसे बताये कि पर्स गिर गया, लेकिन शर्त की वजह से वह नहीं कह पाता l इसके बाद एक गरीब आदमी आता है और
भगवान को कहता है कि घर में खाने को कुछ नहीं. भगवान मदद करो l तभी उसकी नजर पर्स पर पड़ती है. वह
भगवान का शुक्रिया अदा करता है और पर्स लेकर चला जाता है l अब तीसरा व्यक्ति आता है, वह नाविक होता
है l वह भगवान से कहता है कि मैं 15 दिनों के लिए जहाज लेकर समुद्र की यात्रा पर जा रहा हूं, यात्रा में कोई अड़चन न आये भगवान.. तभी पीछे से बिजनेस मैन पुलिस के साथ आता है और कहता है कि मेरे बाद ये नाविक आया है l इसी ने मेरा पर्स चुरा लिया है,पुलिस नाविक को ले जा रही होती है तभी सेवक बोल पड़ता
है l अब पुलिस सेवक के कहने पर उस गरीब आदमी को पकड़ कर जेल में बंद कर देती है. रात को भगवान आते हैं, तो सेवक खुशी खुशी पूरा किस्सा बताता है l भगवान कहते हैं, तुमने किसी का काम बनाया नहीं, बल्कि बिगाड़ा है l वह व्यापारी गलत धंधे करता है,अगर उसका पर्स गिर भी गया, तो उसे फर्क नहीं पड़ता था l इससे उसके पाप ही कम होते, क्योंकि वह पर्स गरीब इंसान को मिला था. पर्स  मिलने पर उसके बच्चे भूखों नहीं मरते. रही बात नाविक की, तो वह जिस यात्रा पर जा रहा था, वहां तूफान आनेवाला था, अगर वह जेल में रहता, तो जान बच जाती. उसकी पत्नी विधवा होने से बच जाती. तुमने सब गड़बड़ कर दी l कई बार हमारी लाइफ में भी ऐसी प्रॉब्लम आती है, जब हमें लगता है कि ये मेरे साथ ही क्यों हुआ l लेकिन इसके पीछे भगवान की प्लानिंग
होती है l जब भी कोई प्रॉब्लमन आये. उदास मत होना l इस कहानी को याद करना और सोचना कि जो भी
होता है, अच्छे के लिए होता है l

Monday, January 16, 2017

किसान की मन की बात

एक किसान की मन की बात कहते हैं.. इन्सान सपना देखता है तो वो ज़रूर पूरा होता है. मगर किसान के सपने
कभी पूरे नहीं होते। बड़े अरमान और कड़ी मेहनत से फसल तैयार करता है, और जब तैयार हुई फसल को बेचने मंडी जाता है। बड़ा खुश होते हुए जाता है... बच्चों से कहता है... आज तुम्हारे लिये नये कपड़े लाऊंगा फल और मिठाई भी लाऊंगा।। पत्नी से कहता है.. तुम्हारी साड़ी भी कितनी पुरानी हो गई है फटने भी लगी है आज एक साड़ी नई लेता आऊंगा।। पत्नी:–”अरे नही जी..!” “ये तो अभी ठीक है..!” “आप तो अपने लिये जूते ही लेते आना कितने पुराने हो गये हैं और फट भी तो गये हैं..!” जब किसान मंडी पहुँचता है। ये उसकी मजबूरी है..
वो अपने माल की कीमत खुद नहीं लगा पाता। व्यापारी उसके माल की कीमत अपने हिसाब से तय करते हैं...
एक साबुन की टिकिया पर भी उसकी कीमत लिखी होती है.। एक माचिस की डिब्बी पर भी उसकी कीमत लिखी होती है.। लेकिन किसान अपने माल की कीमत खु़द नहीं कर पाता .। खैर.. माल बिक जाता है, लेकिन कीमत
उसकी सोच अनुरूप नहीं मिल पाती.। माल तौलाई के बाद जब पेमेन्ट मिलता है.. वो सोचता है.. इसमें से दवाई वाले को देना है, खाद वाले को देना है, मज़दूर को देना है , अरे हाँ, बिजली का बिल भी तो जमा करना है. सारा हिसाब लगाने के बाद कुछ बचता ही नहीं.।। वो मायूस हो घर लौट आता है।। बच्चे उसे बाहर ही इन्तज़ार करते हुए मिल जाते हैं... “पिताजी..! पिताजी..!” कहते हुये उससे लिपट जाते हैं और पूछते हैं:- “हमारे नये कपडे़ नहीं ला़ये..?” पिता:–”वो क्या है बेटा.., कि बाजार में अच्छे कपडे़ मिले ही नहीं, दुकानदार कह रहा था, इस बार दिवाली पर अच्छे कपडे़ आयेंगे तब ले लेंगे..!” पत्नी समझ जाती है, फसल कम भाव में बिकी है, वो बच्चों को समझा कर बाहर भेज देती है.। पति:–”अरे हाँ..!” “तुम्हारी साड़ी भी नहीं ला पाया..!” पत्नी:–”कोई बात नहीं जी, हम बाद में ले लेंगे लेकिन आप अपने जूते तो ले आते..!” पति:– “अरे वो तो मैं भूल ही गया..!” पत्नी भी पति के साथ सालों से है पति का मायूस चेहरा और बात करने के तरीके से ही उसकी परेशानी समझ जाती है
लेकिन फिर भी पति को दिलासा देती है .। और अपनी नम आँखों को साड़ी के पल्लू से छिपाती रसोई की ओर चली जाती है.। फिर अगले दिन.. सुबह पूरा परिवार एक नयी उम्मीद , एक नई आशा एक नये सपने के साथ नई फसल की तैयारी के लिये जुट जाता है.। ये कहानी... हर छोटे और मध्यम किसान की ज़िन्दगी में हर साल दोहराई जाती है। हम ये नहीं कहते कि हर बार फसल के सही दाम नहीं मिलते, लेकिन...
जब भी कभी दाम बढ़ें, मीडिया वाले कैमरा ले के मंडी पहुच जाते हैं और खबर को दिन में दस दस बार दिखाते हैं.  कैमरे के सामने शहरी महिलायें हाथ में बास्केट ले कर अपना मेकअप ठीक करती मुस्कराती हुई कहती हैं...
सब्जी के दाम बहुत बढ़ गये हैं हमारी रसोई का बजट ही बिगड़ गया.। कभी अपने बास्केट को कोने में रख कर किसी खेत में जा कर किसान की हालत तो देखिये.। वो किस तरह फसल को पानी देता है.।। 25 लीटर दवाई से भरी हुई टंकी पीठ पर लाद कर छिङ़काव करता है| 20 किलो खाद की तगाड़ी उठा कर खेतों में घूम-घूम कर फसल को खाद देता है अघोषित बिजली कटौती के चलते रात-रात भर बिजली चालू होने के इन्तज़ार में जागता है.||चिलचिलाती धूप में सिर का पसीना पैर तक बहाता है.| ज़हरीले जन्तुओं का डर होते भी खेतों में नंगे पैर घूमता है.  जिस दिन ये वास्तविकता आप अपनी आँखों से देख लेंगे, उस दिन आपके किचन में रखी हुई सब्ज़ी, प्याज़, गेहूँ, चावल, दाल, फल, मसाले, दूध सब सस्ते लगने लगेंगे.||

Saturday, January 14, 2017

धागे और पतंग

एक बेटे ने पिता से पूछा - पापा ये 'सफल जीवन' क्या होता है ? पिता, बेटे को पतंग उड़ाने ले गए। बेटा पिता को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था... थोड़ी देर बाद बेटा बोला, पापा.. ये धागे की वजह से पतंग और ऊपर नहीं जा पा रही है, क्या हम इसे तोड़ दें !! ये और ऊपर चली जाएगी... पिता ने धागा तोड़ दिया .. पतंग थोड़ा सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आइ और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई... तब पिता ने बेटे को जीवन का दर्शन समझाया .,,,,
बेटा..
'जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं.. हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं
जैसे :
            घर,
          परिवार,
        अनुशासन,
        माता-पिता,गुरू आदि
और हम उनसे आजाद होना चाहते हैं... वास्तव में यही वो धागे होते हैं जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं.. इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे  परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा जो  बिन धागे की पतंग का हुआ...'
"अतः
 जीवन में यदि तुम ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो तो, कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना.."
" धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही 'सफल जीवन' कहते हैं

Thursday, January 12, 2017

माँ की ममता

बेटे के जन्मदिन पर .....
रात के 1:30 बजे फोन आता है, बेटा  फोन उठाता है तो माँ बोलती है....
"जन्म दिन मुबारक लल्ला"
बेटा गुस्सा हो जाता है और माँ  से कहता है - सुबह फोन करती। इतनी रात को नींद खराब क्यों की? कह
कर फोन रख देता है। थोडी देर बाद पिता का फोन आता है। बेटा पिता पर गुस्सा नहीं करता, बल्कि कहता है ..." सुबह फोन करते " फिर पिता ने कहा - मैनें तुम्हे इसलिए फोन किया है कि तुम्हारी माँ पागल है, जो तुम्हे इतनी रात को फोन किया। वो तो आज से 25 साल पहले ही पागल हो गई थी। जब उसे डॉक्टर ने ऑपरेशन करने को कहा और उसने मना किया था। वो मरने के लिए तैयार हो गई, पर ऑपरेशन नहीं करवाया।
रात के 1:30 को तुम्हारा जन्म हुआ। शाम 6 बजे से रात 1:30 तक वो प्रसव पीड़ा से परेशान थी ।
लेकिन तुम्हारा जन्म होते ही वो सारी पीड़ा भूल गय ।उसके ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा । तुम्हारे जन्म से
पहले डॉक्टर ने दस्तखत करवाये थे, कि अगर कुछ हो जाये, तो हम जिम्मेदार नहीं होंगे।
तुम्हे साल में एक दिन फोन किया, तो तुम्हारी नींद खराब हो गई......मुझे तो रोज रात को 25 साल से, रात के 1:30 बजे उठाती है और कहती है, देखो हमारे लल्ला का जन्म इसी वक्त हुआ था। बस यही कहने के लिए तुम्हे फोन किया था। इतना कहके पिता फोन रख देते हैं। बेटा सुन्न हो जाता है। सुबह माँ के घर जा कर माँ के पैर पकड़कर माफी मांगता है....तब माँ कहती है, देखो जी मेरा लाल आ गया। फिर पिता से माफी मांगता है, तब पिता कहते हैं .....आज तक ये कहती थी, कि हमे कोई चिन्ता नहीं;हमारी चिन्ता करने वाला हमारा लाल है।
पर अब तुम चले जाओ, मैं  तुम्हारी माँ से कहूंगा कि चिन्ता मत करो। मैं तुम्हारा हमेशा की तरह आगे भी
ध्यान रखुंगा। तब माँ कहती है -माफ कर दो, बेटा है। सब जानते हैं दुनियाँ में एक माँ ही है, जिसे जैसा चाहे कहो, फिर भी वो गाल पर प्यार से हाथ फेरेगी। पिता अगर तमाचा न मारे, तो बेटा सर पर बैठ जाये। इसलिए पिता का सख्त होना भी जरुरी है।
*माता पिता को आपकी*
*दौलत नही, बल्कि*
*आपका प्यार और*
*वक्त चाहिए। उन्हें प्यार*
*दीजिए। माँ की ममता*
*तो अनमोल है।*

Tuesday, January 10, 2017

राम नाम की महिमा

महादेव जी को एक बार बिना कारण के किसी को प्रणाम करते देखकर पार्वती जी ने पूछा आप किसको प्रणाम करते रहते हैं?
शिव जी ने अपनी धर्मपत्नी पार्वती जी से कहते हैं की, हे देवी! जो व्यक्ति एक बार *राम* कहता है उसे मैं तीन बार प्रणाम करता हूँ।

पार्वती जी ने एक बार शिव जी से पूछा आप श्मशान में क्यूँ जाते हैं और ये चिता की भस्म शरीर पे क्यूँ लगते हैं?
उसी समय शिवजी पार्वती जी को श्मशान ले गए। वहाँ एक शव अंतिम संस्कार के लिए लाया गया। लोग *राम नाम सत्य है* कहते हुए शव को ला रहे थे।
शिव जी ने कहा की देखो पार्वती इस श्मशान की ओर जब लोग आते हैं तो *राम* नाम का स्मरण करते हुए आते हैं। और इस शव के निमित्त से कई लोगों के मुख से मेरा अतिप्रिय दिव्य *राम* नाम निकलता है उसी को सुनने मैं श्मशान में आता हूँ, और इतने लोगो के मुख से *राम* नाम का जप करवाने में निमित्त बनने वाले इस शव का मैं सम्मान करता हूँ, प्रणाम करता हूँ, और अग्नि में जलने के बाद उसकी भस्म को अपने शरीर पर लगा लेता हूँ। *राम* नाम बुलवाने वाले के प्रति मुझे इतना प्रेम है।

एक बार शिवजी कैलाश पर पहुंचे और पार्वती जी से बहुजन माँगा। पार्वती जी विष्णु सहस्रनाम का पाठ कर रहीं थी। पार्वती जी ने कहा अभी पाठ पूरा नही हुआ, कृपया थोड़ी देर प्रतीक्षा कीजिए। शिव जी ने कहा की इसमें तो समय और श्रम दोनों लगेंगे। संत लोग जिस तरह से सहस्र नाम को छोटा कर लेते हैं और नित्य जपते हैं वैसा उपाय कर लो।
पार्वती जी ने पूछा वो उपाय कैसे करते हैं? मैं सुन्ना चाहती हूँ।
शिव जी ने बताया, केवल एक बार *राम* कह लो तुम्हे सहस्र नाम, भगवान के एक हज़ार नाम लेने का फल मिल जाएगा। एक *राम* नाम हज़ार दिव्य नामों के समान है। पार्वती जी ने वैसा ही किया।

पार्वत्युवाच -
*केनोपायेन लघुना विष्णोर्नाम सहस्रकं?*
*पठ्यते पण्डितैर्नित्यम् श्रोतुमिच्छाम्यहं प्रभो।।*
ईश्वर उवाच-
*श्री राम राम रामेति, रमे रामे मनोरमे।*
*सहस्र नाम तत्तुल्यम राम नाम वरानने।।*

यह *राम* नाम सभी आपदाओं को हरने वाला, सभी सम्पदाओं को देने वाला दाता है, सारे संसार को विश्राम/शान्ति प्रदान करने वाला है। इसीलिए मैं इसे बार बार प्रणाम करता हूँ।

*आपदामपहर्तारम् दातारम् सर्वसंपदाम्।*
*लोकाभिरामम् श्रीरामम् भूयो भूयो नमयहम्।।*

 भव सागर के सभी समस्याओं और दुःख के बीजों को भूंज के रख देनेवाला/समूल नष्ट कर देने वाला, सुख संपत्तियों को अर्जित करने वाला, यम दूतों को खदेड़ने/भगाने वाला केवल *राम* नाम का गर्जन(जप) है।

*भर्जनम् भव बीजानाम्, अर्जनम् सुख सम्पदाम्।*
*तर्जनम् यम दूतानाम्, राम रामेति गर्जनम्।*

प्रयास पूर्वक स्वयम् भी *राम* नाम जपते रहना चाहिए और दूसरों को भी प्रेरित करके *राम* नाम जपवाना चाहिए। इस से अपना और दोसरों का तुरन्त कल्याण हो जाता है। यही सबसे सुलभ और अचूक उपाय है।  इसीलिए हमारे देश में प्रणाम *राम राम* कहकर किया जाता है।

Sunday, January 8, 2017

अहंकार युक्त जीवन

एक पति-पत्नी में तकरार हो गयी ---
पति कह रहा था :
"मैं नवाब हूँ इस शहर का लोग इसलिए मेरी इज्जत करते
है और तुम्हारी इज्जत मेरी वजह से है।"
पत्नी कह रही थी :
"आपकी इज्जत मेरी वजह से है। मैं चाहूँ तो आपकी
इज्जत एक मिनट में बिगाड़ भी सकती हूँ और बना भी सकती हूँ।"
नवाब को तैश आ गया।
नवाब बोला :" ठीक है दिखाओ मेरी इज्जत खराब
करके।"
बात आई गई हो गयी।
नवाब के घर शाम को महफ़िल जमी थी दोस्तों की हंसी मजाक हो रहा था कि
अचानक नवाब को अपने बेटे के रोने की आवाज आई ।
वो जोर जोर से रो रहा था और नवाब की पत्नी बुरी तरह उसे डांट रही थी।
नवाब ने जोर से आवाज देकर पूछा कि क्या हुआ बेगम क्यों डाँट रही हो?
तो बेगम ने अंदर से कहा कि देखिये न---आपका बेटा खिचड़ी मांग रहा है और जब भर पेट खा चुका है।
नवाब ने कहा कि दे दो थोड़ी सी और बेगम ने कहा घर में और भी तो लोग है सारी इसी को कैसे दे दूँ?
पूरी महफ़िल शांत हो गयी ।
लोग कानाफूसी करने लगे कि कैसा नवाब है ?
जरा सी खिचड़ी के लिए इसके घर में झगड़ा होता है।
नवाब की पगड़ी उछल गई।
सभी लोग चुपचाप उठ कर चले
गए घर में अशांति हो रही है देख कर।
नवाब उठ कर अपनी बेगम के पास आया और बोला कि मैं मान गया तुमने आज मेरी इज्जत तो उतार दी लोग भी कैसी-कैसी बातें कर रहे थे।
अब तुम यही इज्जत वापस लाकर दिखाओ।
बेगम बोली :"इसमे कौन सी बड़ी बात है आज जो लोगमहफ़िल में थे उन्हें आप फिर किसी बहाने से निमंत्रण दीजिये।"
ऐसे ही नवाब ने सबको बुलाया बैठक और मौज मस्ती के बहाने।
सभी मित्रगण बैठे थे । हंसी मजाक चल रहा था
कि फिर वही नवाब के बेटे की रोने की आवाज आई ---
नवाब ने आवाज देकर पूछा :
बेगम क्या हुआ क्यों रो रहा है हमारा बेटा ?" बेगम ने कहा फिर वही खिचड़ी खाने की जिद्द कर रहा है।"
लोग फिर एक दूसरे का मुंह देखने लगे कि यार एक मामूली खिचड़ी के लिए इस नवाब के घर पर रोज झगड़ा होता है।
नवाब मुस्कुराते हुए बोला "अच्छा बेगम तुम एक काम करो तुम खिचड़ी यहाँ लेकर आओ .. हम खुद अपने हाथों से अपने बेटे को देंगे ।
वो मान जाएगा और सभी मेहमानो को भी खिचड़ी खिलाओ। "
बेगम ने आवाज दी '' जी नवाब साहब''
बेगम बैठक खाने में आ गई पीछे नौकर खाने का सामान सर पर रख आ रहा था। हंडिया नीचे रखी और मेहमानो को भी देना शुरू किया अपने बेटे के साथ।
सारे नवाब के दोस्त हैरान -जो परोसा जा रहा था वो चावल की खिचड़ी तो कत्तई नहीं थी।
उसमे खजूर-पिस्ता-काजू बादाम-किशमिश -गरी इत्यादि से मिला कर बनाया हुआ सुस्वादिष्ट व्यंजन था।
अब लोग मन ही मन सोच रहे थे कि ये खिचड़ी है?
नवाब के घर इसे खिचड़ी बोलते हैं तो -मावा-मिठाई किसे बोलते होंगे ?
नवाब की इज्जत को चार-चाँद लग गए ।
लोग नवाब की रईसी की बातें करने लगे।
नवाब ने बेगम के सामने हाथ
जोड़े और कहा "मान गया मैं कि घर की औरत इज्जत बना
भी सकती है बिगाड़ भी सकती है---
और जिस व्यक्ति को
घर में इज्जत हासिल नहीं उसे दुनियाँ मे कहीं इज्जत नहीं
मिलती।"
सृष्टि मे यह सिद्धांत हर जगह लागू हो जाएगा ।
अहंकार युक्त जीवन में सृष्टि जब चाहे हमारे अहंकार की
इज्जत उतार सकती है और नम्रता युक्त जीवन मे इज्ज़त
बना सकती है ...!!