Sunday, November 6, 2016

जो तेरे भीतर बैठा है, वही मेरे भीतर भी बैठा

एक बुढ़िया दूसरे गांव जाने के लिए अपने घर से निकली। उसके पास एक गठरी भी थी। चलते-चलते वह थक गई। थकान की वजह से उसे गठरी का बोझ भारी लगने लगा था। तभी उसने देखा कि पीछे से एक घुड़सवार चला आ रहा है। बुढ़िया ने उसे आवाज दी। घुड़सवार पास आया और बोला, 'क्या बात है अम्मा, मुझे क्यों बुलाया?' 
बुढ़िया ने कहा, 'बेटा, मुझे सामने वाले गांव जाना है। बहुत थक गई हूं। गठरी उठाई नहीं जाती। तू भी शायद उधर ही जा रहा है। ये गठरी घोड़े पर रख ले। मुझे चलने में आसानी हो जाएगी।' घुड़सवार ने कहा, 'अम्मा, तू पैदल है। मैं घोड़े पर हूं। गांव अभी दूर है। पता नहीं तू कब तक वहां पहुंचेगी। मैं तो थोड़ी ही देर में पहुंच जाऊंगा। मुझे तो आगे जाना है। वहां क्या तेरा इंतजार करते थोड़े ही बैठा रहूंगा?' यह कहकर वह चल पड़ा। 
कुछ दूर जाने के बाद वह सोचने लगा, 'मैं भी कितना मूर्ख हूं। बुढ़िया ढंग से चल भी नहीं सकती। क्या पता, उसे ठीक से दिखाई भी देता हो या नहीं? वह मुझे गठरी दे रही थी। संभव है, उसमें कीमती सामान हो। मैं उसे लेकर भाग जाता तो कौन पूछता! बेकार ही मैंने उसे मना कर दिया।' 
गलती सुधारने की गरज से वह फिर बुढ़िया के पास आकर बोला,'अम्मा, लाओ अपनी गठरी। मैं ले चलता हूं। गांव में रुककर तेरी राह देखूंगा।' किंतु बुढ़िया ने कहा, 'ना बेटा, अब तू जा, मुझे गठरी नहीं देनी।' यह सुन घुड़सवार बोला, 'अभी तो तू कह रही थी कि ले चल! अब ले चलने को तैयार हुआ तो गठरी दे नहीं रही। यह उल्टी बात तुझे किसने समझाई?' 
बुढ़िया मुस्कराकर बोली, 'उसी ने समझाई है जिसने तुझे यह समझाया कि बुढ़िया की गठरी ले ले। जो तेरे भीतर बैठा है, वही मेरे भीतर भी बैठा है। जब तू लौटकर आया तभी मुझे शक हो गया कि तेरी नीयत में खोट आ गया है।'

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