Friday, September 2, 2016

मानव धर्म एक

मुशीं फैज अली ने स्वामी विवेकानन्द से पूछा : "स्वामी जी हमें बताया गया है कि अल्लहा एक ही है।  यदि वह एक ही है, तो फिर संसार उसी ने बनाया होगा ? "स्वामी जी बोले, "सत्य है।". मुशी जी बोले ,"तो फिर इतने प्रकार के मनुष्य क्यों बनाये।  जैसे कि हिन्दु, मुसलमान, सिख्ख, ईसाइ और सभी को अलग-अलग धार्मिक ग्रंथ भी दिये। एक ही जैसे इंसान बनाने में उसे यानि की अल्लाह को क्या एतराज था। सब एक होते तो न कोई लङाई और न कोई झगङा होता। ".स्वामी हँसते हुए बोले, "मुंशी जी वो सृष्टी कैसी होती जिसमें एक ही प्रकार के फूल होते। केवल गुलाब होता, कमल या रंजनिगंधा या गेंदा जैसे फूल न होते!". फैज अली ने कहा सच कहा आपने  यदि  एक ही दाल होती  तो  खाने का स्वाद भी  एक ही होता। दुनिया तो  बङी फीकी सी हो जाती! स्वामी जी ने कहा, मुंशीजी! इसीलिये तो ऊपर वाले ने अनेक प्रकार के जीव-जंतु और इंसान बनाए  ताकि हम  पिंजरे का भेद भूलकर  जीव की एकता को पहचाने। मुशी जी ने पूछा, इतने मजहब क्यों ?स्वामी जी ने कहा, " मजहब तो मनुष्य ने बनाए हैं, प्रभु ने तो केवल धर्म बनाया है। "मुशी जी ने कहा कि, " ऐसा क्यों है कि  एक मजहब में कहा गया है कि गाय और सुअर खाओ  और दूसरे में कहा गया है कि  गाय मत खाओ, सुअर खाओ एवं तीसरे में कहा गया कि गाय खाओ सुअर न खाओ; इतना ही नही कुछ लोग तो ये भी कहते हैं कि मना करने पर जो इसे खाये उसे अपना दुश्मन समझो।" स्वामी जी जोर से हँसते हुए मुंशी जी से पूछे कि ,"क्या ये सब प्रभु ने कहा है ?" मुंशी जी बोले नही,"मजहबी लोग यही कहते हैं।" स्वामी जी बोले, "मित्र!  किसी भी देश या प्रदेश का भोजन  वहाँ की जलवायु की देन है। सागरतट पर बसने वाला व्यक्ति वहाँ खेती नही कर सकता, वह  सागर से पकङ कर  मछलियां ही खायेगा।
उपजाऊ भूमि के प्रदेश में  खेती हो सकती है। वहाँ  अन्न फल एवं शाक-भाजी उगाई जा सकती है। उन्हे अपनी खेती के लिए गाय और बैल बहुत उपयोगी लगे। उन्होने  गाय को अपनी माता माना, धरती को अपनी माता माना और नदी को माता माना ।
क्योंकि  ये सब  उनका पालन पोषण माता के समान ही करती हैं।" "अब जहाँ मरुभूमि है वहाँ खेती कैसे होगी? खेती नही होगी तो वे  गाय और बैल का क्या करेंगे? अन्न है नही  तो खाद्य के रूप में  पशु को ही खायेंगे। तिब्बत में कोई शाकाहारी कैसे हो सकता है? वही स्थिति अरब देशों में है। जापान में भी इतनी भूमि नही है कि कृषि पर निर्भर रह सकें। "स्वामी जी फैज अलि की तरफ मुखातिब होते हुए बोले, " हिन्दु कहते हैं कि  मंदिर में जाने से पहले या  पूजा करने से पहले  स्नान करो। मुसलमान नमाज पढने से पहले वाजु करते हैं।  क्या अल्लहा ने कहा है कि नहाओ मत, केवल लोटे भर पानी से  हांथ-मुँह धो लो? "फैज अलि बोला, क्या पता कहा ही होगा!  स्वामी जी ने आगे कहा, नहीं, अल्लहा ने नही कहा! अरब देश में इतना पानी कहाँ है कि वहाँ पाँच समय नहाया जाए।  जहाँ पीने के लिए पानी बङी मुश्किल से मिलता हो वहाँ कोई पाँच समय कैसे नहा सकता है। यह तो 
भारत में ही संभव है,  जहाँ नदियां बहती हैं, झरने बहते हैं, कुएँ जल देते हैं। तिब्बत में यदि पानी हो  तो वहाँ पाँच बार व्यक्ति यदि नहाता है तो ठंड के कारण ही मर जायेगा। यह सब  प्रकृति ने  सबको समझाने के लिये किया है। "स्वामी विवेका नंद जी ने आगे समझाते हुए कहा कि," मनुष्य की मृत्यु होती है। उसके शव का अंतिम संस्कार करना होता है। अरब देशों में वृक्ष नही होते थे, केवल रेत थी। अतः  वहाँ मृतिका समाधी का प्रचलन हुआ,  जिसे आप दफनाना कहते हैं। भारत में वृक्ष बहुत बङी संख्या में थे, लकडी.पर्याप्त उपलब्ध थी अतः भारत में  अग्नि संस्कार का प्रचलन हुआ। जिस देश में जो सुविधा थी  वहाँ उसी का प्रचलन बढा। वहाँ जो मजहब पनपा  उसने उसे अपने दर्शन से जोङ लिया। "फैज अलि विस्मित होते हुए बोला!  "स्वामी जी इसका मतलब है कि हमें  शव का अंतिम संस्कार  प्रदेश और देश के अनुसार करना चाहिये। मजहब के अनुसार नही। "स्वामी जी बोले , "हाँ! यही उचित है। " किन्तु अब लोगों ने उसके साथ धर्म को जोङ दिया। मुसलमान ये मानता है कि उसका ये शरीर कयामत के दिन उठेगा इसलिए वह शरीर को जलाकर समाप्त नही करना चाहता। हिन्दु मानता है कि उसकी आत्मा फिर से नया शरीर धारण करेगी  इसलिए  उसे मृत शरीर से  एक क्षंण भी मोह नही होता। "फैज अलि ने पूछा  कि, "एक मुसलमान के शव को जलाया जाए और एक हिन्दु के शव को दफनाया जाए  तो क्या  प्रभु नाराज नही होंगे? "स्वामी जी ने कहा," प्रकृति के नियम ही प्रभु का आदेश हैं। वैसे प्रभु कभी रुष्ट नही होते  वे प्रेमसागर हैं,  करुणा सागर है। "फैज अलि ने पूछा  तो हमें  उनसे डरना नही चाहिए? स्वामी जी बोले, "नही!  हमें तो  ईश्वर से प्रेम करना चाहिए  वो तो पिता समान है,  दया का सागर है  फिर उससे भय कैसा। डरते तो उससे हैं हम जिससे हम प्यार नही करते। "फैज अलि ने हाँथ जोङकर स्वामी विवेकानंद जी से पूछा, "तो फिर  मजहबों के कठघरों से  मुक्त कैसे हुआ जा सकता है? "स्वामी जी ने फैज अलि की तरफ देखते हुए  मुस्कराकर कहा, "क्या तुम सचमुच  कठघरों से मुक्त होना चाहते हो?" फैज अलि ने स्वीकार करने की स्थिति में  अपना सर हिला दिया।
स्वामी जी ने आगे समझाते हुए कहा, "फल की दुकान पर जाओ,  तुम देखोगे  वहाँ  आम, नारियल, केले, संतरे,अंगूर आदि अनेक फल बिकते हैं; किंतु वो दुकान तो फल की दुकान ही कहलाती है। वहाँ अलग-अलग नाम से फल ही रखे होते हैं। " फैज अलि ने  हाँ में सर हिला दिया। स्वामी विवेकानंद जी ने आगे कहा कि ,"अंश से अंशी की ओर चलो।  तुम पाओगे कि सब  उसी प्रभु के रूप हैं। "फैज अलि  अविरल आश्चर्य से  स्वामी विवेकानंद जी को  देखते रहे और बोले  "स्वामी जी  मनुष्य  ये सब क्यों नही समझता? "स्वामी विवेकानंद जी ने शांत स्वर में कहा, मित्र! प्रभु की माया को कोई नही समझता। मेरा मानना तो यही है कि, "सभी धर्मों का गंतव्य स्थान एक है। जिस प्रकार विभिन्न मार्गो से बहती हुई नदियां समुंद्र में जाकर गिरती हैं,  उसी प्रकार सब मतमतान्तर परमात्मा की ओर ले जाते हैं।  मानव धर्म एक है, मानव जाति एक है।"...

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