Saturday, August 13, 2016

केकड़ों का स्‍वभाव

गर्मी का महिना चल रहा था। एक मछुआरा रोज की तरह मछलियां पकड़ने गया, लेकिन आज का दिन उसके लिए कुछ ज्‍यादा अच्‍छा नहीं था। लगभग शाम हो गई थी और वापस घर लौटने की इच्‍छा से उसने जब नदी में फैंके गए अपने जाल को बाहर निकाला, तो उसमें कुछ मछलियां और कुछ केकड़े फंस गए थे।
मछुआरे के पास दो टोकरियां थीं। इसलिए उसने एक टोकरी में मछलियां भर दी और उस पर ढक्‍कन लगा दिया जबकि दूसरी टोकरी में केकड़े भरकर उसे खुला ही छोड़ दिया।
नदी के किनारे टहलने वाले लोगों में से कुछ टोकरियों के पास रूक गए और उस मछुआरे की ये सारी हरकते देखने लगे। तभी उनमें से एक ने मछुआरे को सम्‍बोधित करते हुए कहा, “ओ मछुए… तुमने दिनभर जो मेहनत की है, उसे खराब करके अब घर खाली हाथ लौटना चाहते हो क्‍या?
मछुआरे ने उनकी ओर देखकर पूछा, “मैं कुछ समझा नहीं, आप ऐसा क्‍यों कह रहे हैं?
वह आदमी बोला, “तुमने एक टोकरी में मछलिया भरकर उसे ढ़क्‍कन से ढ़क दिया है, जबकि इस केकड़े वाली टोकरी को खुला ही किनारे पर क्‍यों छोड़ दिया है? देखो, केकड़े बाहर आने की कोशिश कर रहे हैं। एक-एक कर वे सारे टोकरी से बाहर आकर नदी में चले जाऐंगे।
मछुआरा उनकी ओर देखकर हंसते हुए कहने लगा, “साहब… आप चिंता मत कीजिए। मैं इन केकड़ों का स्‍वभाव जानता हूँ। ये रात भर उछल-कूद करते रहेंगे, लेकिन फिर भी ये इस टोकरी से बाहर नहीं आ सकते, क्‍योंकि जो केकड़े ऊपर चढ़ने की कोशिश करेंगे, नीचे वाले उनकी टांगे खींचकर ऊपर चढ़ने की कोशिश करेंगे और उसे भी नीचे ले जाऐंगे। जब तक इस टोकरी में एक से ज्‍यादा केकड़े मॉजूद हैं, एक भी केकड़ा बाहर नहीं निकल सकेगा।

No comments: