Thursday, July 28, 2016

बीते हुए दिन

कभी हमारे जहाज भी चला करते थे। हवा में भी। पानी में भी। दो दुर्घटनाएं हुई। सब कुछ डूब गया।
जहाज हवा मे उड़ाना छूट गया। पानी में तैराना छूट गया। एक बार क्लास में हवाई जहाज उड़ाया।
मैडम के पिछबाड़े से टकराया। स्कूल से निकलने की नौबत आ गई। बहुत फजीहत हुई। कसम दिलाई गई।
औऱ जहाज उडा़ना छूट गया। वारिश के मौसम में,मां ने अठन्नी दी। चाय के लिए दूध लाना था।कोई मेहमान आया था। हमने गली की नाली में तैरते अपने जहाज में बिठा दी। तैरते जहाज के साथ हम चल रहे थे।
ठसक के साथ।खुशी खुशी। अचानक तेज बहाब आया। जहाज डूब गया। साथ में अठन्नी भी डूब गई।
ढूंढे से ना मिली। मेहमान बिना चाय पीये चला गया। फिर जमकर ठुकाई हुई। घंटे भर मुर्गा बनाया गया।
औऱ हमारा पानी में जहाज तैराना भी बंद हो गया।  आज प्लेन औऱ क्रूज के सफर की बातें उन दिनों की याद दिलाती हैं।  बच्चे ने आठ हजार का मोबाइल गुमाया तो मां बोली, कोई  बात नहीं, पापा दूसरा दिला देंगे।
हमें अठन्नी पर मिली सजा याद आ गई।  फिर भी आलम यह है कि आज भी हमारे सर मां-बाप के
चरणों में श्रद्धा से छुकते हैं। औऱ हमारे बच्चे 'यार पापा,यार मम्मी' कहकर बात करते हैं। हम प्रगतिशील से प्रगतिवान हो गये हैं।
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन।

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