Saturday, June 25, 2016

हूं तो इंसान ही

मैं एक दुकान में खरीददारी कर रहा था, तभी मैंने उस दुकान के कैशियर को एक 5-6 साल की लड़की से
बात करते हुए देखा | कैशियर बोला :~ "माफ़ करना बेटी, लेकिन इस गुड़िया को  खरीदने के लिए तुम्हारे पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं|" फिर उस छोटी सी लड़की ने मेरी ओर  मुड़ कर मुझसे पूछा:~
"अंकल,
क्या आपको भी यही लगता है  कि मेरे पास पूरे पैसे नहीं हैं?''  मैंने उसके पैसे गिने  और उससे कहा:~ "हाँ बेटे,
यह सच है कि तुम्हारे पास इस गुड़िया को खरीदने के लिए पूरे पैसे नहीं हैं"| वह नन्ही सी लड़की
अभी भी अपने हाथों में गुड़िया थामे हुए खड़ी थी | मुझसे रहा नहीं गया | इसके बाद मैंने उसके पास जाकर उससे
पूछा कि यह गुड़िया वह किसे देना चाहती है? इस पर उसने उत्तर दिया कि यह वो गुड़िया है, जो उसकी बहन को बहुत प्यारी है | और वह इसे, उसके जन्मदिन के लिए उपहार में देना चाहती है | बच्ची ने कहा यह गुड़िया पहले मुझे  मेरी मम्मी को देना है,  जो कि बाद में मम्मी  जाकर मेरी बहन को दे देंगी"| यह कहते-कहते
  उसकी आँखें नम हो आईं थी मेरी बहन भगवान के घर गयी है... और मेरे पापा कहते हैं कि मेरी मम्मी भी जल्दी-ही भगवान से  मिलने जाने वाली हैं| तो, मैंने सोचा कि क्यों ना वो इस  गुड़िया को अपने साथ ले जाकर, मेरी बहन को दे दें...|" मेरा दिल धक्क-सा रह गया था | उसने ये सारी बाते  एक साँस में ही कह डालीं और फिर मेरी ओर देखकर बोली - "मैंने पापा से कह दिया है कि मम्मी से  कहना कि वो अभी ना जाएँ|  वो मेरा,
दुकान से लौटने तक का इंतजार करें|  फिर उसने मुझे एक बहुत प्यारा-  सा फोटो दिखाया जिसमें वह खिलखिला कर हँस  रही थी |  इसके बाद उसने मुझसे कहा:~ "मैं चाहती हूँ कि मेरी मम्मी, मेरी यह फोटो भी अपने साथ ले जायें, ताकि मेरी बहन मुझे भूल नहीं पाए| मैं अपनी मम्मी से बहुत प्यार करती हूँ और मुझे नहीं लगता कि वो मुझे ऐसे छोड़ने के लिए राजी होंगी, पर पापा कहते हैं कि  मम्मी को मेरी छोटी बहन के साथ रहने के लिए जाना ही पड़ेगा क्योंकि वो बहुत छोटी है, मुझसे भी छोटी है | उसने धीमी आवाज मैं बोला। इसके बाद फिर से उसने उस  गुड़िया को ग़मगीन आँखों-से खामोशी-से देखा|  मेरे हाथ जल्दी से अपने बटुए ( पर्स ) तक
पहुँचे और मैंने उससे कहा:~ "चलो एक बार  और गिनती करके देखते हैं  कि तुम्हारे पास गुड़िया के लिए पर्याप्त पैसे हैं या नहीं?'' उसने कहा-:"ठीक है| पर मुझे लगता है शायद मेरे पास पूरे पैसे हैं"| इसके बाद मैंने
उससे नजरें बचाकर  कुछ पैसे उसमें जोड़ दिए और फिर हमने उन्हें गिनना शुरू किया | ये पैसे उसकी
गुड़िया के लिए काफी थे यही नहीं, कुछ पैसे अतिरिक्त बच भी गए थेl | नन्ही-सी लड़की ने कहा:~ "भगवान्
का लाख-लाख शुक्र है मुझे इतने सारे पैसे देने के लिए!  फिर उसने  मेरी ओर देख कर कहा कि मैंने कल
रात सोने से पहले भगवान् से  प्रार्थना की थी कि मुझे इस गुड़िया को खरीदने के लिए पैसे दे देना,  ताकि मम्मी इसे मेरी बहन को दे सकें |  और भगवान् ने मेरी बात सुन ली| इसके अलावा मुझे मम्मी के लिए एक सफ़ेद गुलाब खरीदने के लिए भी पैसे चाहिए थे, पर मैं भगवान से इतने ज्यादा पैसे मांगने की हिम्मत नहीं कर पायी थी पर भगवान् ने तो मुझे इतने पैसे दे दिए हैं कि अब मैं गुड़िया के साथ-साथ एक सफ़ेद गुलाब भी खरीद सकती हूँ ! मेरी मम्मी को सफेद गुलाब बहुत पसंद हैं| "फिर हम वहा से निकल गए | मैं अपने दिमाग से उस छोटी- सी लड़की को  निकाल नहीं पा रहा था | फिर,मुझे दो दिन पहले  स्थानीय समाचार पत्र में छपी एक
घटना याद आ गयी जिसमें  एक शराबी  ट्रक ड्राईवर के बारे में लिखा था| जिसने नशे की हालत में मोबाईल फोन पर  बात करते हुए एक कार-चालक  महिला की कार को  टक्कर मार दी थी, जिसमें उसकी 3 साल की बेटी की
घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गयी थी  और वह महिला कोमा में  चली गयी थी| अब एक महत्वपूर्ण निर्णय उस परिवार को ये लेना था कि, उस महिला को जीवन रक्षक मशीन पर बनाए रखना है अथवा नहीं? क्योंकि वह कोमा से बाहर आकर, स्वस्थ हो सकने की अवस्था में नहीं थी | दोनों पैर , एक हाथ,आधा चेहरा कट चुका था । आॅखें जा चुकी थी । "क्या वह परिवार इसी छोटी-  लड़की का ही था?" मेरा मन रोम-रोम काँप उठा |
मेरी उस नन्ही लड़की के साथ हुई मुलाक़ात के 2 दिनों बाद मैंने अखबार में  पढ़ा कि उस महिला को बचाया नहीं जा सका,  मैं अपने आप को रोक नहीं सका और अखबार  में दिए पते पर जा पहुँचा,  जहाँ उस महिला को  अंतिम दर्शन के लिए  रखा गया था वह महिला श्वेत धवल कपड़ों में थी- अपने हाथ में एक सफ़ेद गुलाब और उस छोटी-सी लड़की का वही हॅसता हुआ फोटो लिए हुए और उसके सीने पर रखी हुई  थी -  वही गुड़िया |
मेरी आँखे नम हो गयी । दुकान में मिली बच्ची और सामने मृत ये महिला से मेरा तो कोई वास्ता नही था लेकिन हूं तो इंसान ही ।ये सब देखने के बाद अपने आप को सभांलना एक बडी चुनौती थी
मैं नम आँखें लेकर वहाँ से लौटा

No comments: